बिहार में जल-संसाधनों के विकास के लिए विशेष कार्य-दल की रिपोर्ट (मई 2009)

‘‘राज्य का जल-संसाधन विभाग बहुत बड़ा है, असंगठित है, उसमें जरूरत से ज्यादा लोग काम करते हैं लेकिन पेशेवर लोगों की कमी है और पैसे का अभाव बना रहता है। आज इस विभाग की जो व्यवस्था है, प्रबंधन है, नियुक्त कर्मचारियों का स्वरूप तथा उनकी क्षमता है, उसकी पृष्ठभूमि में यह विभाग बहु-आयामी बड़ी परियोजनाओं का क्रियान्वयन करने में अक्षम है। ज्यादा से ज्यादा यह विभाग चालू योजनाओं का रख-रखाव, उनका संचालन और अनुश्रवण कर सकता है। फील्ड के स्तर पर तो हालात इससे भी बदतर हैं।’’

नीलेन्दु सान्याल की अध्यक्षता में गठित तकनीकी समिति की रिपोर्ट क्या कहती है और क्या छिपाती है उसकी थोड़ी बानगी हमने अभी देखी है। दो खंडों की इस रिपोर्ट को सरकार ने स्वीकार किया या नहीं इसके बारे में कोई सूचना नहीं है। अक्सर इस तरह की रिपोर्टें सार्वजनिक नहीं होतीं, होती भी होंगी तो उन्हें कितने लोग पढ़ते होंगे, यह भी प्रश्न है। लोगों ने अगर इसे पढ़ा होता तो शायद चर्चा-बहस होती, वैसा कुछ हुआ नहीं। रिपोर्ट आने के कुछ समय बाद कोसी का पूर्वी एफ्लक्स बांध नेपाल में कुसहा में टूट गया और सारी बहस का रुख उसी ओर मुड़ गया। तब किसी तरह की चर्चा की कोई गुंजाइश ही बाकी नहीं रही। मगर सरकारें अपना काम करती रहीं और इस बार भारत सरकार ने उपर्युक्त टास्क फोर्स की एक रिपोर्ट मई 2009 में जारी की। यह टास्क फोर्स किस लिए गठित हुआ, किसने किया, इससे क्या-क्या अपेक्षाएं थीं, इसके बारे में इसकी रिपोर्ट में कुछ भी नहीं कहा गया है। अपने बारह सदस्यों का नाम गिनाते हुए यह रिपोर्ट सिर्फ इतना इशारा करती है कि टास्क-फोर्स की अध्यक्षता डॉ. एस. सी. झा ने की थी। आधिकारिक तौर पर बिहार की जल-संपदा पर उपलब्ध साहित्य, बिहार की नदी घाटियों के क्षेत्र-अध्ययन तथा राज्य के विकास की जरूरतों को पूरा करने के उद्देश्य से शायद यह रिपोर्ट तैयार की गयी है।

रिपोर्ट शुरू में ही अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कहती है कि बिहार में वृहद और मध्यम सिंचाई योजनाओं से 54 लाख हेक्टेयर तथा भूमिगत जल से 49 लाख हेक्टेयर जमीन पर सिंचाई संभव है और इस तरह राज्य के कुल क्षेत्रफल 94 लाख हेक्टेयर के मुकाबले 103 लाख हेक्टेयर पर सिंचाई की जा सकती है। बड़ी योजनाओं से अभी तक अर्जित सिंचन क्षमता 28 लाख हेक्टेयर है और वास्तविक सिंचाई केवल 16.69 लाख हेक्टेयर पर होती है। रिपोर्ट कहती है कि भूमिगत जल से सिंचाई बहुत कम क्षेत्र पर होती है। मुमकिन है कि भूमिगत जल से राज्य में कितनी सिंचाई होती है यह विभाग ने टास्क फोर्स को बताया भी न हो। लेकिन राज्य का एक फसली क्षेत्र 56 लाख हेक्टेयर और दुफसली क्षेत्र 24 लाख हेक्टेयर है, यानी कुल मिलाकर 80 लाख हेक्टेयर पर खेती होती है। रिपोर्ट यह बात कहती तो नहीं है मगर यह सच है कि राज्य में अधिकांश सिंचाई किसानों के अपने पुरुषार्थ से होती है। टास्क फोर्स इसका कारण बताते हुए कहता है कि बहुत सी सिंचन क्षमता बाढ़ से असुरक्षित क्षेत्रों में अर्जित की गयी है इसलिए वह बाढ़ के समय टूट-फूट जाती है। भूमिगत जल के बारे में टास्क फोर्स का कहना है कि बिजली के अभाव में इसका उपयोग नहीं हो पाता है। टास्क फोर्स आगे कहता है कि एक समय राज्य में रिवरवैली अथॉरिटी कोसी और गंडक जैसी बड़ी योजनाओं का काम देखता था लेकिन अब वह व्यवस्था है ही नहीं। ‘‘राज्य का जल-संसाधन विभाग बहुत बड़ा है, असंगठित है, उसमें जरूरत से ज्यादा लोग काम करते हैं लेकिन पेशेवर लोगों की कमी है और पैसे का अभाव बना रहता है। आज इस विभाग की जो व्यवस्था है, प्रबंधन है, नियुक्त कर्मचारियों का स्वरूप तथा उनकी क्षमता है, उसकी पृष्ठभूमि में यह विभाग बहु-आयामी बड़ी परियोजनाओं का क्रियान्वयन करने में अक्षम है। ज्यादा से ज्यादा यह विभाग चालू योजनाओं का रख-रखाव, उनका संचालन और अनुश्रवण कर सकता है। फील्ड के स्तर पर तो हालात इससे भी बदतर हैं।’’ टास्क फोर्स इस विभाग की व्यवस्था में आमूल चूल परिवर्तन की सलाह देता है।

इतना कह लेने के बाद टास्क फोर्स सारी व्यवस्था में सुधार का अपना प्रस्ताव बताता है। उसके अनुसार हिमालय से शुरू होकर बंगाल की खाड़ी तक जाने वाले पानी का अधिकांश भाग राज्य से होकर गुजरता है। उस स्थिति में राज्य की नदियों को आपस में जोड़ना, नदियों पर मौजूदा तटबंधों के बीच एक जोड़ा नये तटबंध बना कर भीतर वाले जोड़ा तटबंध के बीच नदी को गहरा करना इस प्रयास की मुख्य रणनीति होगी। अंदर वाले तटबंधों के जोड़े के बीच नदी की ट्रेनिंग का काम इस तरह से किया जायेगा कि उसमें पानी का संचय हो सके, पानी की दिशा को मोड़ने के लिए संरचनाओं का निर्माण किया जायेगा जिससे उन्हें बगल की नदी या छाड़न धारा से जोड़ा जा सके और चौरों तक भी पानी पहुँचाया जा सके। इस तरह से बहते और ठहरे पानी का एक विशाल नेटवर्क तैयार हो जायेगा और किसी भी नदी से होकर जाने वाले प्रवाह को नियंत्रित किया जा सकेगा। ऐसा करने से सारी नदियाँ आपस में जुड़ जायेंगी और विभिन्न स्थानों तथा समय पर पानी की उपलब्धता सुनिश्चित की जा सकेगी। वर्तमान तटबंध, जिन्हें टास्क फोर्स बाहरी तटबंध कहता है, बाढ़ के पानी को रोकने का काम करेंगे। अंदर वाले प्रस्तावित तटबंध और बाहर वाले तटबंध के बीच की जमीन के बारे में टास्क फोर्स का कहना है कि समय के साथ यह जमीन ऊँची हो गयी है और इसका उपयोग अंदर वाले तटबंधों के निर्माण में कर लिया जायेगा। इस तरह से दीर्घावधि में तटबंधों के बीच बह रही नदियों के प्रवाह मार्ग की एक वैकल्पिक व्यवस्था कर ली जायेगी। हिमालय से लेकर बंगाल की खाड़ी तक बहने वाले राज्य के जल-संसाधन के व्यापारीकरण का प्रस्ताव करते हुए टास्क फोर्स कहता है कि पानी की सर्वत्र और सर्वकालिक उपलब्धता के लिए ऐसा करना जरूरी होगा। इसके लिए एक बड़े इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास की योजना बनानी होगी जिसके लिए निजी क्षेत्र के भागीदारों को आकर्षित करना होगा।

राज्य में विद्युत उत्पादन की संभावनाओं पर भी टास्क फोर्स की नजर है और वह 500 मेगावाट विद्युत उत्पादन की क्षमता राज्य की सिंचाई नहरों में देखता है। इन योजनाओं के लिए धन मुहय्या करने के लिए भी इस रिपोर्ट में बहुत से उपाय सुझाये गए हैं।

अब इस योजना के गुण-दोष पर एक नजर डालते हैं -
1. यह योजना अध्याय-1 के खंड-1.8 के उत्तरार्द्ध में दिये गए सिद्धांत पर आधारित है कि अगर नदी का प्रवाह क्षेत्र कम कर दिया जाए तो उसके पानी का वेग बढ़ जायेगा, वह ज्यादा कटाव करेगा और बाढ़ में कमी आयेगी। यह प्रस्ताव अगर व्यावहारिक रहा होता तो वर्तमान तटबंधों के बीच नदी कब की गहरी हो चुकी होती और इस समस्या पर पुनर्विचार करने की जरूरत ही नहीं पड़ती।
2. टास्क फोर्स यह भूल जाता है कि नदी के किनारे कम दूरी पर प्रस्तावित नये तटबंधों और वर्तमान तटबंधों के बीच गांव बसे हुए हैं और वहाँ तमाम अकाल्पनीय तकलीफों के बावजूद समाज रहता है। टास्क फोर्स बाढ़ के जिस पानी को बाहरी तटबंधों द्वारा रोक दिये जाने की बात करता है, वह बाहरी तटबंध अगर नहीं टूटता है तो वह इन लोगों के लिए पहले से भी ज्यादा दुःस्सह परिस्थितियाँ पैदा करेगा। उस हालत में बाहरी तटबंध को काटना इन लोगों की मजबूरी होगी और बाहरी तटबंध कटने पर वर्तमान कन्ट्रीसाइड की क्या स्थिति होगी, उसकी कल्पना ही दिल दहला देने वाली है।
3. जहाँ तक नहरों से बिजली पैदा कर लेने का सवाल है वहाँ कोसी में कटैया बिजली घर और गंडक में सूरजपुरा बिजली की क्षमता और उत्पादन का अध्ययन कर लेना चाहिये। यह सच है कि जब तक जल-संसाधन विभाग की कार्य संस्कृति में पूरा-पूरा परिवर्तन नहीं होगा और उसके किये या न किये गए कामों की जिम्मेवारी तय नहीं होगी तब तक जनता के हित में किसी भले की उम्मीद करना बेकार है।
4. जो शायद हो रहा है वह यह कि कोसी नदी की धारा को मशीनों की मदद से यथा संभव तटबंधों और उन पर बने हुए स्परों से दूर रखने की कोशिश जारी है ताकि तटबंधों के कटाव को रोका जा सके और कन्ट्रीसाइड की सुरक्षा बनी रहे।
5. बिहार में 2007 के बाद बाढ़ नहीं आयी है। 2008 की कोसी में कुसहा की दुर्घटना अगर नहीं होती तो वह साल भी राज्य में सूखे के वर्ष के तौर पर ही याद किया जाता। इसलिए सरकार द्वारा कोसी को तटबंधों के बीच रखने की कोशिश का परीक्षण अभी बाकी है।
6. बड़े पैमाने पर बिहार की नदियों पर बने तटबंधों को ऊँचा और मजबूत किये जाने के प्रयासों का परिणाम अभी तो नहीं मगर आने वाले 10-15 वर्षों में जरूर सामने आयेगा। उस समय की सरकार क्या-क्या बहाने बना कर उस विपत्ति का सामना करेगी या नहीं करेगी, यह समय ही बतायेगा।
7. टेकनिकल समिति (2008) नदियों को गहरा करने को किसी समस्या का समाधान नहीं मानती और उस पर होने वाले खर्च को अव्यावहारिक मानती है वहीं एस. सी. झा की अध्यक्षता वाले टास्क फोर्स की सिफारिशें नदियों को नौ-परिवहन की हद तक ले जाकर उन्हें गहरा करने और जोड़ने की बात करती हैं। मुश्किल यह है कि यह दोनों समितियाँ विशेषज्ञों की हैं और सरकार द्वारा नियुक्त समितियाँ हैं।

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Post By: tridmin
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