सुदीप शुक्ला/ भास्कर, विदिशा. बेतवा के उत्थान की बेताबी इस कदर है कि छह साल की अनुष्का से लेकर 90 साल की जानकी बाई जैसे कई श्रमदानी बेतवा को बचाने के लिए जुटे हैं। यह अनोखा सेवा कार्य बिना किसी अवकाश के साल के 365 दिन चलता है। बेतवा के डेढ़ किमी तट क्षेत्र में रोज होने वाली सफाई से प्रदूषण पर कुछ हद तक रोक लगी है। तटों को बचाने के लिए बारिश के दिनों में पौधरोपण से आधा दर्जन घाटों की तस्वीर बदल गई है।
इन श्रमदानियों के नदी संरक्षण और पर्यावरण के प्रति जिद और जुनून के कारण इन्हें ‘बेतवा बिरादरी’ के रूप में पहचाना जाने लगा है। रोज सुबह दर्जनों लोग बेतवा पहुंचकर नदी की सफाई में जुट जाते हैं। 11 जनवरी 03 को एक ऐसा जज्बा जागा कि बेतवा की सफाई और सांैदर्यीकरण के लिए श्रमदान का सिलसिला अब तक जारी है। पर्यावरण प्रेमियों की इस बेतवा बिरादरी की मुहिम से भले ही बेतवा का पानी नहीं बचाया जा सका लेकिन इससे एक जनचेतना जरूर जागृत हुई है।
नतीजतन नदी को और अधिक प्रदूषित होने से रोकने में कामयाबी हासिल हुई है। 6 से 90 साल के लोग कर रहे श्रमदान नदी में नालों से मिलने से रोकने के लिए बिरादरी द्वारा होने वाले आंदोलनों की आवाज जानकी बाई जैसे श्रमदानियों की भी होती है। इस ‘बिरादरी’ में शहर के डेढ़ सौ लोग शामिल हैं। जिनमें सभी उम्र की भागीदारी शामिल है। नियमित श्रमदान का असर अब साफ नजर आने लगा है। श्रमदान और जनभागीदारी से लाखों रुपए के सुधार और सौंदर्यीकरण के काम हुए हैं। साथ ही बेतवा तट पर सात हरे-भरे उद्यान विकसित हो गए हैं। रोज सुबह सूरज उगने से पहले नदी में श्रमदानियों के रूप में छोटे-छोटे दीपक जल संरक्षण का उजियारा फैलाने का काम करते नजर आते हैं। इस आंदोलन से सीख लेकर प्रदेश के कई शहरों में जल संरचनाओं को श्रमदान के जरिए संरक्षित करने की पहल हुई है।
साभार - भास्कर
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