विश्लेषणों से पता चलता है कि कृषि क्षेत्र में अपने परिव्यय से भारत को अपेक्षित लाभ नहीं हो सका है। कृषि को समर्थन देने और गरीबी उन्मूलन के लिये बेहतर तरीका कृषि क्षेत्र को राज-सहायता मुहैया कराने के बजाय ज्यादा तेजी से निवेश किया जाना रहता। ध्यान रखा जाना चाहिए कि आदानों पर बेतहाशा सब्सिडी से कृषि प्रणाली में बड़े पैमाने पर अकुशलता पनपी है।
हाल में एक पुस्तक ‘स्पोर्टिंग इंडियन फॉर्म्स, द स्मार्ट वे’ (सम्पादकवृंद अशोक गुलाटी, माकरे फरोनी और युवान झाऊ) का विमोचन करते हुए केन्द्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि भारत को अपनी कृषि नीति में निवेश और सब्सिडी के बीच अच्छे तालमेल की दरकार है। उन्हें यह कहते हुए सुनना अच्छा लगा कि ग्रामीण क्षेत्रों में निवेश के लिये संसाधनों के मामले में कोई बड़ी अड़चन नहीं है। चाहे सड़क निर्माण की बात हो, सिंचाई, स्वच्छता यहाँ तक कि आवासन का मसला हो, किसी भी मामले में संसाधनों का टोटा नहीं है। कृषि शोध एवं विकास तथा गुणवत्तापूर्ण शिक्षा ग्रामीण निवेश में शामिल हो तो अच्छे नतीजे मिलेंगे यानी गरीबी उन्मूलन और कृषि क्षेत्र में वृद्धि को पंख लग सकते हैं। इस पुस्तक का यही स्पष्ट सन्देश है।
अधिकांश देश कृषि क्षेत्र को समर्थन देते हैं ताकि खाद्य सुरक्षा और/या किसानों की आय में वृद्धि सुनिश्चित की जा सके। भारत कोई अपवाद नहीं है। भारत में नीतिगत रूप से किसानों को समर्थन देने के लिये सब्सिडी पर उवर्रक, बिजली, कृषि-ऋण, फसल बीमा और प्रमुख फसलों के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य मुहैया कराया जाता है। लेकिन एक हालिया अध्ययन, जिसे ओईसीडी और आईसीआरआईईआर ने संयुक्त रूप से किया था, का निष्कर्ष है कि भारत की व्यापार एवं विपणन नीतियों ने देश के किसानों पर कीमतों के नजरिए से नकारात्मक बोझ डाला है। 2000-01 से 2016-17 की अवधि के दौरान उत्पादक समर्थन अनुमान (पीएसई) सकल कृषि प्राप्तियों का माइनस 14 प्रतिशत रहा। प्रतिबन्धात्मक निर्यात नीतियों (न्यूनतम निर्यात मूल्य, निर्यात प्रतिबन्ध या निर्यात शुल्क) के साथ ही घरेलू विपणन नीतियों (एपीएमसी, आवश्यक वस्तु अधिनियम आदि के चलते) के कारण ऐसा हुआ।
सार्वजनिक पूँजी निर्माण में गिरावट
हालांकि पुस्तक में बताया गया है कि कृषि क्षेत्र में सार्वजनिक पूँजी निर्माण में गिरावट का रुख रहा है। 1980-81 में यह कृषि-जीडीपी का 3.9 प्रतिशत था, जो 2014-15 में गिरकर 2.2 प्रतिशत रह गया। अलबत्ता, 2016-17 में इसमें सुधार हुआ और यह 2.6 प्रतिशत के स्तर पर पहुँच गया। दूसरी तरफ, उर्वरकों, जल, फसल बीमा और कृषि-ऋण पर आदान राज-सहायता इस दौरान 2.8 प्रतिशत से बढ़कर 8 प्रतिशत हो गई। कृषि क्षेत्र को समर्थन देने का यह ‘बेतुका’ तरीका है क्योंकि राज-सहायता का सीमान्त प्रतिफल निवेश की तुलना में काफी कम है। नतीजों से पता चलता है कि कृषि-शोध एवं शिक्षा, सड़क निर्माण और शिक्षा पर किया गया परिव्यय गरीबी उन्मूलन या कृषि-जीडीपी में वृद्धि करने में पाँच से दस गुना अधिक कारगर है यानी इतना ही परिव्यय यदि आदानों पर राज-सहायता देने पर हो तो प्रतिफल पाँच से दस गुणा कम कारगर रहता है।
आदान राज-सहायता में तेजी से वृद्धि किये जाने से कृषि क्षेत्र में सार्वजनिक निवेश में कमी आई। विश्लेषणों से पता चलता है कि कृषि क्षेत्र में अपने परिव्यय से भारत को अपेक्षित लाभ नहीं हो सका है। कृषि को समर्थन देने और गरीबी उन्मूलन के लिये बेहतर तरीका कृषि क्षेत्र को राज-सहायता मुहैया कराने के बजाय ज्यादा तेजी से निवेश किया जाना रहता। ध्यान रखा जाना चाहिए कि आदानों पर बेतहाशा सब्सिडी से कृषि प्रणाली में बड़े पैमाने पर अकुशलता पनपी है। उदाहरण के लिये उर्वरक सब्सिडी खासकर यूरिया पर सब्सिडी से मृदा की गुणवत्ता डगमगाई है। सिंचाई पर सब्सिडी से जल जैसे दुर्लभ संसाधन का दुरुपयोग बढ़ा है। बिजली पर बेहद ज्यादा सब्सिडी से भूजल का अधि-दोहन हुआ है। फसली ऋणों की ब्याज दरों पर सब्सिडी से कृषि-ऋण का बड़ा हिस्सा गैर-कृषि कार्यों में इस्तेमाल हुआ। हालांकि नई फसल बीमा योजना-पीएमएफबीवाई ने किसानों द्वारा दिए जाने वाले प्रीमियम के बोझ में नाटकीय गिरावट ला दी है। अलबत्ता, इसके प्रभावी क्रियान्वयन, दावों का किसानों के खाते में त्वरित निपटान चुनौती बने हुए हैं।
सब्सिडी और निवेशों में तालमेल
इस सबको देखते हुए सब्सिडी और निवेशों का उत्तम तालमेल जरूरी है। इसमें भी निवेश पर ज्यादा जोर दिया जाना जरूरी है। वित्त मंत्री ने भी इस तरफ संकेत दिया है। अभी हम जो नीतिगत सुझाव रख सकते हैं, वे इस प्रकार हैं: पहला, सार्वजनिक सिंचाई पर निवेश बेहद खर्चीला है। इसमें छीजन ज्यादा है, जिसे दुरुस्त करने की दिशा में काम करना होगा। यहाँ ज्यादा पारदर्शिता की दरकार है। दूसरा, मूल्यांकन नीति के जरिए सब्सिडी मुहैया कराए जाने की मौजूदा प्रणाली के स्थान पर आयगत नीति को अपनाया जाना चाहिए। यह नीति लक्ष्य-भेदी होगी और छीजन को कम-से-कम करेगी। अनेक ओईसीडी देशों के साथ ही चीन जैसे उभरते देश इस दिशा में ध्यान दे रहे हैं। भारतीय किसान भी इस तरीके से लाभान्वित हो सकते हैं। अभी उन्हें प्रति हेक्टेयर आधार पर डीबीटी के जरिए आदान सब्सिडी मुहैया कराई जा रही है। तीसरा, निवेश कृषि शोध एवं विकास, सड़क और शिक्षा केन्द्रित होने चाहिए। रोचक यह कि नियंत्रण स्तर पर निजी क्षेत्र ही कृषि-शोध एवं विकास के लिहाज से अग्रणी है। छह बड़ी कम्पनियाँ सालाना सात बिलियन डॉलर कृषि-शोध एवं विकास पर खर्च करती हैं, जो भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद (आईसीएआर) द्वारा इस मद पर किये जाने वाले खर्च से सात गुणा अधिक है। इसलिये भारत को तकनीक की दृष्टि से बढ़त लेनी है, तो समुचित आईपीआर विकसित करने पर बल देना होगा। किसानों और निवेशकों का हित इसी में है। भारत को चीन से भी सबक लेना चाहिए। कैम चाइना, एक सार्वजनिक उद्यम, ने अग्रणी बीज एवं फसल संरक्षण कम्पनी सिग्नेटा कॉरपोरेशन को 43 बिलियन डॉलर में अंगीकृत कर लिया है। क्या भारत अपने किसानों को विश्व की सर्वोत्तम तकनीक मुहैया कराने के लिये ऐसा कोई प्रयास कर सकता है ताकि वे अपनी उत्पादकता और आमदनी बढ़ाने के साथ ही राष्ट्र की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित कर सकें। समय ही बताएगा कि भारत कृषि क्षेत्र में सुलझी नीति अपनाता है, या बेतुकी नीति से ही काम चलाता रहेगा?
(लेखक वरिष्ठ अर्थशास्त्री हैं।)
इंडियन एक्सप्रेस से साभार
TAGS |
agriculture sector in hindi, investment in hindi, subsidy in hindi, supporting indian farmers in hindi, the smart way in hindi, ashok gulati in hindi, make faroni in hindi, yuan jhau in hindi, irrigation in hindi, oecd in hindi, indian Council for Research on International Economic Relations in hindi, Indian Council of Agricultural Research in hindi |
/articles/baetaukai-naitaiyaon-kai-maara-jhaela-rahaa-karsai-kasaetara