दिल्ली और एनसीआर के पसंदीदा टूरिज्म स्पॉट बड़खल झील के दिन जल्द फिर सकते हैं। अब तक यहां पर दूरदराज से किसी प्रकार पानी लाकर भरे जाने की कवायदें की जा रही थीं, जो सिरे नहीं चढ़ीं। बुधवार को डीसी प्रवीण कुमार ने सेंट्रल ग्राउंड वॉटर बोर्ड के दो वैज्ञानिकों के साथ बड़खल झील तक पानी लाने वाले प्राकृतिक नालों का अरावली पर्वत शृंखला में दौरा किया। वैज्ञानिकों ने उनको बताया कि बड़खल झील तक जिन प्राकृतिक स्रोतों से पानी आता था, वह आज भी जिंदा हैं, लेकिन यह पानी झील तक नहीं पहुँच रहा है। इसका कारण जमीन व पहाड़ियों में आई वह दरारें हैं, जिसने पानी का रास्ता बदल दिया है।
बुधवार शाम करीब साढ़े पांच बजे डीसी प्रवीण कुमार ने सेंट्रल ग्राउंड वॉटर बोर्ड के वैज्ञानिक डॉक्टर सुधांशु शेखर और डॉक्टर ए मुखर्जी के साथ बड़खल झील से सटे अरावली पर्वत श्रृंखला का दौरा किया। सबसे पहले टीम परसोन मंदिर पहुंची और वहां पर वैज्ञानिकों ने डीसी को बताया कि बड़खल झील तक जिस प्राकृतिक स्रोत से पानी पहुंचता है, उसका एक रास्ता परसोन मंदिर से होकर है। यहां तक पानी अच्छी खासी संख्या में आ रहा है। इसके बाद टीम जिस प्राकृतिक नाले से पानी झील तक पहुँचता है, वहां के टेढ़े मेढ़े रास्ते पर चल पड़ी। डीसी प्रवीण कुमार ने बताया कि बारिश का मौसम नहीं है , ऐसे में जो पानी बह रहा है, वह ग्राउंड वॉटर है, जो झील तक पहुंचता है। थोड़ी आगे चलने पर ही एक कुआं मिला, जिसमें मात्र 6-7 फुट पर ही पानी देख वैज्ञानिक भी अचंभित हो गए। इसको देख डीसी ने कहा कि इसका मतलब साफ है कि यहां पर ग्राउंड वॉटर लेवल काफी अच्छा है।
यहां से थोड़ा आगे चलने पर बड़खल झील तक पानी पहुँचाने वाला नाला सूखना शुरू हो गया था। इससे थोड़ी दूरी पर एक और मंदिर मिला, जहां पर दूसरा कुआं मिला, जिसमें पानी का स्तर 8 - 9 फुट पर था। यहां भी पानी का स्तर अच्छा देख वैज्ञानिक खुश हो उठे। पूरी टीम अचंभित तब हुई जब कुछ आगे एक और तीसरा कुआं मिला, जिसमें पानी का स्तर करीब 14 फुट था। करीब दो घंटे तक डीसी और वैज्ञानिकों ने पूरे क्षेत्र का जायजा लिया और बड़खल झील तक पहुंच गए और फिर वहां से वापस लौटे। वैज्ञानिकों ने डीसी को बताया कि जगह-जगह जल स्तर अच्छा होना इस बात का संकेत है कि यहां पर पानी की बहुत ज्यादा कमी नहीं है।
झील तक पानी न पहुंचने का कारण जमीन व पहाड़ियों के बीच आई ऐसी दरारें हैं, जहां से पानी ने अपना रास्ता बदल दिया और वह दूसरे रास्ते पर चल भूजल में मिलना शुरू हो गया। डीसी ने मौके पर ही डेढ़ से दो माह के अंदर वैज्ञानिकों को ऐसी सभी दरारों को चिह्नित करने के लिए कहा, जिससे बारिश से पूर्व इन दरारों को वैज्ञानिक तरीके से भर पानी को दूसरी तरफ जाने से रोका जा सके। डीसी प्रवीण कुमार ने बताया कि बाहर से पानी लाकर बड़खल झील भरना संभव नहीं है, ऐसे में वैज्ञानिकों ने जो सही तरीका बताया है, उसे अपनाया जाएगा। यदि ऐसी सभी दरारें पहचान कर भर दी जाएं और प्राकृतिक नाले पूरी तरह से खोल दिए जाएं तो तीन से चार साल में झील भर सकती है।
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