बड़ी कठिन है डगर पनघट की

जल संरक्षण की दिशा में कदम उठाते हुए केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने वर्ष 2013 को ‘जल संरक्षण वर्ष’ के रूप में मनाने की घोषणा की है। इस दौरान पानी और जल स्त्रोतों के सरंक्षण और उसके विवेकपूर्ण इस्तेमाल के बारे में बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान चलाए जाएंगे। अभियान के द्वारा जल के महत्व एवं उसकी उपयोगिता को विभिन्न जनंसचार माध्यमों द्वारा जनमानस तक पहुंचाने के साथ ही जल संरक्षण के प्रति जागरूकता का प्रचार-प्रसार किया जाएगा। जल से संबंधित विभिन्न विषयों जैसे जल संरक्षण, जल प्रबंधन, जल को प्रदूषण से मुक्त करना आदि को इस अभियान के माध्यम से आम जनता तक पहुंचाया जाएगा। साथ ही जल के प्रभावी एवं मितव्ययता से उपयोग करने के लिए सभी को प्रेरित किया जाएगा ताकि जल का संरक्षण किया जा सके। इसके लिए देश के विभिन्न हिस्सों में अनेक जागरूकता अभियान आरंभ किए जाएंगे। असल में आज समाज और व्यक्ति ‘बिन पानी सब सून’ जैसी पुरानी और सार्थक कहावतों को भूलकर, पानी को संचय करने की हजारों साल पुरानी परंपराओं को भूल गया है जिसके परिणामस्वरूप भारत समेत विश्व के अधिकतर देशों को जलसंकट की गंभीर समस्या का सामना करना पड़ रहा है। इसके अलावा औद्योगीकरण और गहन कृषि तथा शहरीकरण के चलते सतही जल के साथ-साथ नदियों और भू-जल का अंधाधुंध दोहन किया गया है।

तेजी से बढती जनसंख्या ने पानी की जरूरत और उसकी मांग के बीच एक गहरी खाई पैदा कर दी है। देश के अधिकतर किसान जल की कमी का सामना कर रहे हैं। दूसरी तरफ कुछ ऐसी निजी कंपनियां भी हैं जो जल का व्यापार कर भारी मात्रा में धन कमाने में लगी है। पूरे विश्व में पानी का व्यापार करीब 800 अरब अमेरिकी डॉलर का है। जो वर्ष 2010 तक बढ़कर लगभग 2000 अरब अमेरिकी डॉलर हो जायेगा। आकंडे बताते हैं कि आने वाले समय में पानी का वैश्विक संकट लगभग 40 देशों को लील लेगा। हमारे देश के उत्तर प्रदेश राज्य में ही करीब 6000 गांवों में पानी उपलब्ध नहीं है। इसके अलावा देश भर में चल रही नदी परियोजनाओं वाले क्षेत्रों में पानी की कमी से लगभग 25 करोड़ लोगों पर खतरा मंडरा रहा है। जल समस्या का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उत्तर गुजरात एवं कच्छ के क्षेत्र में नये खोदे गए 10 में से 6 कुंओं में भी 1200 फुट की गहराई से कम पर पानी ही नहीं मिलता। देश में सन् 1955 में पानी की उपलब्धता प्रति व्यक्ति के हिसाब से 5227 घन मीटर थी, जो सन 2025 तक घट तक 1500 घन मीटर हो जायेगी। फिलहाल हम कुल उपलब्ध पानी का 83 प्रतिशत सिंचाई में खर्च कर रहे हैं जो 2025 और 2050 में घटकर क्रमशः 72 और 68 प्रतिशत रह जाने की संभावना है। इस संभावित कमी को देखते हुए जल संरक्षण की भूमिका और भी महत्वपूर्ण होगी।

हमारे देश में जहां विश्व की जनसंख्या की 18 प्रतिशत आबादी निवास करती है वहीं हमारे हिस्से में विश्व के कुल नवीकरणीय जल स्रोतों का केवल 4 प्रतिशत आता है। वैसे हमारे देश में पानी का मुख्य स्रोत बारिश ही है जिसकी 75 प्रतिशत मात्रा केवल चार महिनों में ही बरस जाती है और तो और पूरे देश में बारिश का वितरण भी असमान है। राजस्थान के कुछ हिस्सों में जहां केवल 10 सेंटीमीटर बारिश ही होती है वहीं उत्तर-पूर्व के कुछ क्षेत्रों में 1000 सेंटीमीटर बारिश तबाही का कारण बनती है। इसलिए बारिश के अलावा विभिन्न जल स्रोत हमारे देश की जल आवश्यकता को पूरा करते हैं। इसके अलावा विकास की ओर बढ़ते हमारे देश की जल आवश्यकता भी दिनों-दिन बढ़ रही है, लेकिन पानी की उपलब्धता घट रही है। एक अनुमान के अनुसार सन् 2025 तक पेयजल की मात्रा में 44 प्रतिशत, सिचांई में 10 प्रतिशत एवं उद्योगों में जल की मांग में 81 प्रतिशत की वृद्धि की संभावना है। आज पानी की मात्रा और गुणवत्ता दोनों में भयानक कमी देखी जा रही है। देश के कई हिस्सों में पानी में आर्सेनिक, फ्लोराइड, पारा जैसे इतने भारी तत्व और अन्य खतरनाक रसायन प्रवेश कर चुके हैं कि ऐसा संदूशित पानी अनेक बीमारियों का कारण बनता है। अस्सी के दशक में हुए एक सर्वेक्षण से यह सामने आया था कि भारत में करीब 7452 करोड़ लीटर अपशिष्ट जल प्रति दिन पैदा होता है, जो आज इससे कई गुना बढ़ गया है। इसके अलावा प्रदूषण के चलते जल की गुणवत्ता में भारी गिरावट देखी जा रही है। जलीय जैवविविधता के लिए करीब 3 मिलीग्राम प्रति लीटर ऑक्सीजन आवश्यक होती है। लेकिन दिनों-दिन इसकी मात्रा विभिन्न स्थानों पर कम होती जा रही है। कानपुर में घुलित ऑक्सीजन की मात्रा 1.6 मिलीग्राम प्रति लीटर व कोलकाता में 1.4 मिलीग्राम प्रति लीटर पायी गयी है। इलाहाबाद में 3.1 व वाराणसी में 2.8 मिलीग्राम है।

इन दिनों भूजल की मात्रा में होती कमी के कारण अनेक क्षेत्रों में जल की भयानक किल्लत उठानी पड़ती है। देश के कई हिस्सों को गर्मियों के दौरान भीषण जल संकट का सामना करना पड़ता है। जल संकट का सबसे गंभीर असर महिलाओं पर पड़ता है। ऐसे में एक ही बात हमारे ध्यान में आती है कि आखिर दिनों-दिन बढ़ते जल संकट का क्या कारण है और क्या इसका कोई हल है। असल में पिछले कुछ वर्षों में हमारे देश में विकास के नाम पर जिन प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन किया गया है, उनमें नदी-जल के साथ भूजल संसाधन भी शामिल है। अविवेकपूर्ण भूजल दोहन से भूजलस्तर में तेजी से कमी आई है, जिससे देश के अधिकांश हिस्सों में पेयजल की समस्या दिनोदिन गहराती जा रही है। अच्छा हो, हमारे सभी प्रदेशों के जिम्मेदार लोग अपने इलाके के पानी को अपने-अपने ढंग से रोकने के तौर-तरीकों को फिर से याद करें। इन तरीकों से बनने वाले तालाब पुराने ढर्रे के न माने जाएं। वे इन इलाकों में लगे आधुनिक ट्यूबवेल को भी जीवन दे सकेंगे। इन सभी इलाकों में भू-जल बहुत तेजी से नीचे गिरा है। लेकिन यदि लोग तय कर लें तो पानी रोकने के ऐसे प्रबंध हजारों-लाखों ट्यूबवेलों को फिर से जिंदा कर सकेंगे और तब हर खेत को कहीं दूर बहने वाली कावेरी के पानी के लिए कोर्ट में जाने की जरूरत नहीं होगी।

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