बड़ी झील: पानी को रहना सिखाती हुई
और प्यास को जीना
बड़ी झीलः कभी नर्मदा के
बहते आलाप को सुनती हुई मगनमन
कभी अपनी चुप्पी में अथाह
कभी अपने आवेग में
सम्पूर्णतः वाचाल
बड़ी झीलः जिसका पानी दिखता है
भोपाल के चेहरे पर खिला-खिला
और रहता है
हिन्दी-उर्दू की तरह मिला-जुला
बड़ी झीलः मुग्ध भाव से कभी भारत भवन की
कला दीर्घाएँ निहारती हुई
कभी संगीत सुरों को करती हुई आत्मसात
कभी सुन्दर कविता पंक्तियों पर देती हुई दाद
कभी जिरह करती हुई परिसंवाद में
कभी नेपथ्य में कलाकार को रटाती हुई संवाद
कभी लोरी सुनाती हुई
कभी चाँदनी से बतियाती हुई
कभी अपने घाटों पर रहल में रख
बाँचती हुई दिन और रात की पोथी
कभी आकाश-गंगा के साथ दूरभाष पर मशगूल
कभी परखती हुई कि किस बदली में पानी है
और कौन है छूँछ
बड़ी झीलः समुद्र की बेटी
अपने पिता की तरह जिसका चेहरा-मोहरा
अपनी दीर्घायु में भोपाल को पानीदार बनाती हुई
दो पहाड़ी जबड़ों के बीच (फैली) जुबान की तरह
मुलायमियत व्यवहार के लिए वकृत को समझाती हुई
बड़ी झीलः
आसमान को पानी पहनाती हुई
हवा को नहलाती हुई
धरती के लिए गाती हुई जलगीत
लहराती हुई राजा भोज की यश-कीर्ति
बड़ी झीलः आसपास के खेतों में लहलहाती हुई
पकी फसलों के साथ गाती हुई राग बसन्त
किसानी सहजता के साथ गोबर लिपे आँगन में बैठ
गाँव-खेड़ों को ढाढ़स बँधाती हुई
गाय-गोरू की प्यास के लिए
घूटँ बन जाती हुई
मेहमान परिन्दों की करती हुई आवभगत
बड़ी झीलः कभी साइकिल और गाडि़यों के पंचर
ठीक होने के लिए मैकेनिक की दूकान की तगाड़ी में हलकती हुई
सुबह-शाम नल की पगडण्डियों से शहर के
घर-घर में दौड़ती हुई
बड़ी झीलः पूछती हुई जलठाउँ की कुशलक्षेम
वन विहार के नीलगाय की आँख में लहराती हुई
चिडि़यों की प्यास के लिए बूँद बन जाती हुई
महात्मा शीतलदास की बगिया में हो जाती हुई
बनारस का गंगा-घाट
कहावत में ‘तालन में भोपाल ताल’ बन
जुबान पर चढ़ जाती हुई
बड़ी झीलः कभी कन्याकुमारी के सनसेट से
अपना रिश्ता जतलाती हुई
कभी कथा का सरोवर हो जाती हुई
जहाँ सूर्य हर दोपहर पानी पीने उतरता है
बड़ी झीलः
विद्रूपता का करती हुई निषेध
भोपाल की खूबसूरत संस्कृति का नाम है
जो अपने अदब के साथ
दुनिया की हर सुन्दर चीज़ से मुखातिब है!
और प्यास को जीना
बड़ी झीलः कभी नर्मदा के
बहते आलाप को सुनती हुई मगनमन
कभी अपनी चुप्पी में अथाह
कभी अपने आवेग में
सम्पूर्णतः वाचाल
बड़ी झीलः जिसका पानी दिखता है
भोपाल के चेहरे पर खिला-खिला
और रहता है
हिन्दी-उर्दू की तरह मिला-जुला
बड़ी झीलः मुग्ध भाव से कभी भारत भवन की
कला दीर्घाएँ निहारती हुई
कभी संगीत सुरों को करती हुई आत्मसात
कभी सुन्दर कविता पंक्तियों पर देती हुई दाद
कभी जिरह करती हुई परिसंवाद में
कभी नेपथ्य में कलाकार को रटाती हुई संवाद
कभी लोरी सुनाती हुई
कभी चाँदनी से बतियाती हुई
कभी अपने घाटों पर रहल में रख
बाँचती हुई दिन और रात की पोथी
कभी आकाश-गंगा के साथ दूरभाष पर मशगूल
कभी परखती हुई कि किस बदली में पानी है
और कौन है छूँछ
बड़ी झीलः समुद्र की बेटी
अपने पिता की तरह जिसका चेहरा-मोहरा
अपनी दीर्घायु में भोपाल को पानीदार बनाती हुई
दो पहाड़ी जबड़ों के बीच (फैली) जुबान की तरह
मुलायमियत व्यवहार के लिए वकृत को समझाती हुई
बड़ी झीलः
आसमान को पानी पहनाती हुई
हवा को नहलाती हुई
धरती के लिए गाती हुई जलगीत
लहराती हुई राजा भोज की यश-कीर्ति
बड़ी झीलः आसपास के खेतों में लहलहाती हुई
पकी फसलों के साथ गाती हुई राग बसन्त
किसानी सहजता के साथ गोबर लिपे आँगन में बैठ
गाँव-खेड़ों को ढाढ़स बँधाती हुई
गाय-गोरू की प्यास के लिए
घूटँ बन जाती हुई
मेहमान परिन्दों की करती हुई आवभगत
बड़ी झीलः कभी साइकिल और गाडि़यों के पंचर
ठीक होने के लिए मैकेनिक की दूकान की तगाड़ी में हलकती हुई
सुबह-शाम नल की पगडण्डियों से शहर के
घर-घर में दौड़ती हुई
बड़ी झीलः पूछती हुई जलठाउँ की कुशलक्षेम
वन विहार के नीलगाय की आँख में लहराती हुई
चिडि़यों की प्यास के लिए बूँद बन जाती हुई
महात्मा शीतलदास की बगिया में हो जाती हुई
बनारस का गंगा-घाट
कहावत में ‘तालन में भोपाल ताल’ बन
जुबान पर चढ़ जाती हुई
बड़ी झीलः कभी कन्याकुमारी के सनसेट से
अपना रिश्ता जतलाती हुई
कभी कथा का सरोवर हो जाती हुई
जहाँ सूर्य हर दोपहर पानी पीने उतरता है
बड़ी झीलः
विद्रूपता का करती हुई निषेध
भोपाल की खूबसूरत संस्कृति का नाम है
जो अपने अदब के साथ
दुनिया की हर सुन्दर चीज़ से मुखातिब है!
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