बड़े एहतराम से है बाढ़ का इंतजार

कोसी के कछार बसी लाखों की आबादी बड़े एहतराम से बाढ़ का इंतजार कर रही है। पिछले एक माह से लगभग तय है कि इस साल कोसी फिर तटबंध का पिंजरा तोड़ कर खुले इलाके में सैर करेगी। बिहार की राज्य सरकार भी इस बात को स्वीकार कर रही है। राज्य के आपदा प्रबंधन विभाग की ओर से दस दिन पहले कोसी नदी के इलाके में पड़ने वाले चार जिले के प्रशासन को अलर्ट कर दिया गया और उन्हें बताया गया कि 30 जून तक बाढ़ से बचाव और बाढ़ का सामना करने से संबंधित सारी तैयारियां कर लें, क्योंकि जुलाई के पहले सप्ताह में बाढ़ आने वाली है।

मंत्रालय ने बाढ़ के लिए 4 से 6 जुलाई के बीच की तारीख की भविष्यवाणी की है। लिहाजा अब कोई संशय नहीं बचता कि बाढ़ नहीं आये। ऐसे प्रशासन और स्थानीय लोग अपनी तैयारी पुख्ता करके बाढ़ का इंतजार कर रहे हैं। वैसे हो सकता है जुलाई के पहले हफ्ते बाढ़ न आये, मगर इस बार तटबंध टूटेगा ही और बाढ़ भी आ कर रहेगी। बहुत संभव है कि इस बार की बाढ़ 2008 की प्रलंयकारी बाढ़ से ज्यादा भीषण हो। यह संभव है कि पूर्वानुमान के कारण पहले से सजग समाज और शासन पर इसका असर उतना न हो। मतलब यह कि 2008 की बाढ़ ने कोसीवासियों को हिम्मतवाला बना दिया है। अनुपम मिश्र जी अब निश्चिंत हो सकते हैं कि अब कोसी का तैरने वाला समाज डूबने वाला समाज नहीं रहा। इस बार वह तैर कर इस आपदा को पार करने के लिए तैयार है।

पूरे इलाके में कहीं कोई हलचल नहीं है। रोज अखबारों में छायी आपदा की डराने वाली खबरों के बावजूद कहीं कोई घबराहट नहीं है। कोई भगदड़ नहीं है। सत्तू पिसवाकर, तेल मसाला और गैस सिलेंडरों का इंतजाम करके, फर्श पर रखी चीजों को छज्जे पर चढ़ाकर, चौकियों के नीचे तीन-तीन इंट डालकर बड़ी उत्सुकता से बाढ़ का इंतजार कर रहे हैं। क्योंकि उन्हें समझ आ गया है कि अगर घर या गांव के स्कूल की छत को पकड़े रहे तो कोई नुकसान नहीं होगा। पानी आने के बाद अगर इधर-उधर भागने की कोशिश की तो जरूर जान से हाथ धोना पड़ेगा।

प्रशासन ने भी नावों, नाविकों, लाइफ जैकेट, महाजाल, बाढ़ की स्थिति में बचने के लिए ऊंचे स्थान, अस्थायी सेल्टर, सूचना केंद्र आदि की व्यवस्था कर रखी है। इस बात के भी इंतेजाम हैं कि बाढ़ आने के महज कुछ ही घंटे के दौरान जवान लोगों की जान बचाने पहुंच जायेंगे। बचाव कार्य के लिए हेलिकॉप्टर का भी इंतेजाम है। इसके अलावा राहत कार्य के लिए खाद्यान्न, पशुओं का चारा, आवश्यक दवाइयां भी हैं और राहत और बचाव कार्य चलाने के लिए लोग भी तय कर दिये गये हैं। अगर बाढ़ को आना ही है तो उससे क्या घबराना?

यह तो एक बात हुई मगर दूसरे मोरचे पर अब भी समाज भी कमजोर है और सरकार भी। इतने अनुभवों के बावजूद दोनों में से कोई यह समझने मानने के लिए तैयार नहीं है कि तटबंध का फार्मूला बेकार हो चुका, अब इसे बदलने की जरूरत है। खास तौर पर जहां तक कोसी का मामला है अगर इसी राह पर हम चलते रहे तो हर साल तटबंध टूटेगा और हर साल बाढ़ आयेगी। क्योंकि तटबंध के अंदर जमीन की ङम्ढाल पश्चिम में ऊंची और पूरब में नींची हो गयी है। लिहाजा कोसी पूरबी तटबंध से सटती हुई चल रही है ऐसे में तटबंध के कई बिंदुओं पर नदी हमलावर होती है। जरा सा भी पानी बढे तटबंध का टूटना तय हो जाता है। नदी अगर आजाद हो जाती है तो पानी बढ़ने के साथ-साथ अगल-बगल के गांव में मंथर गति से फैलेगी। जबकि तटबंध टूटने पर वह बेगवती होकर आस-पास के इलाकों में संहार करती है। दिलचस्प बात तो यह है कि तटबंध के भीतर के लोग बाढ़ से नहीं डरते। उनके लिए बाढ़ उपहार है जो उनकी जमीन के लिए उर्वरता का तोहफा लेकर आती है, बगैर खाद के जमीन सोना उगलती है। फिर मंथर गति से फैलता पानी खौफ पैदा नहीं करता। पानी बढे तो ऊंचे स्थान की शरण ले लेते हैं। मगर यह बात तटबंध के बाहर रह रहे आम नागरिकों को समझ नहीं आती। उनके लिए नदी किसी खौफ का नाम है जो उसके इलाके में घुसी तो सबकुछ तहस नहस हो जायेगा। बरसों नदी से दूर रहने के कारण उनमें जलराशि से खेलने की आदत गुम हो चुकी है। अनुपम भाई कहते भी हैं कि कोसी का समाज तैरना भूल गया है।

बहरहाल लोग तो अज्ञानता और भय के कारण तटबंध से निजात पाना नहीं चाहते। मगर प्रशासन तो जानबूझ कर आंखों में पट्टी बांधे बैठा है। क्योंकि तटबंध हीरे की खदान है, हर साल तटबंध के बचाव के नाम पर अरबों खर्च होते हैं जिसका कोई टेंडर कोई हिसाब नहीं होता। और अगर खुदा न खास्ता तटबंध टूट जाये तो राहत और बचाव, फिर पुनर्वास के नाम पर अरबों का वारा-न्यारा होता है। कोसी के विशेषज्ञ दिनेश कुमार मिश्र कहते हैं उत्तर बिहार के लिए बाढ़ चौथी फसल है। मगर वस्तुतः यह सिंचाई और आपदा प्रबंधन विभाग के लिए पहली फसल है। इन दिनों आप बिहार के इंजीनियरों की सरगर्मी देखिये। लाखों का रिश्वत देकर अपना तबादला बाढ़ पीड़ित क्षेत्रों में करवा रहे हैं। एक बाढ़ में तटबंध बचाने के काम में रह गये तो कई सालों का इंतजाम हो जाता है। यही वजह है कि बिहार के इंजीनियर-ठेकेदार और राजनेता साल-दो साल में एक अदद ठीक-ठाक बाढ़ का इंतजाम कर ही लेते हैं। इन सबों के विकास के लिए तटबंध का रहना जरूरी है। अगर तटबंध तोड़ दिये जायें तो यह बिरादरी सड़क पर आ जायेगी।

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