बच्चों के स्वास्थ्य की कुंजी है साफ पानी व स्वच्छता

बच्चों के लिए साफ पानी पर आधारित बैठकविश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार डायरिया से होने वाली 88 फीसदी मौत असुरक्षित पेयजल और स्वच्छता सुविधाओं के अभाव के कारण होती है। 11 फीसदी बाल मृत्यु डायरिया के कारण होती है। निमोनिया एवं कुपोषण के लिए भी अस्वच्छता जिम्मेदार है। अस्वच्छता एवं असुरक्षित पेयजल शहरी एवं ग्रामीण बच्चों के विकास, स्वास्थ्य एवं शिक्षा की बड़ी बाधाएं हैं। अब यह जरूरी है कि बाल स्वच्छता को अधिकार के रूप में स्वीकार कर शालाओं एवं आंगनवाड़ियों में प्राथमिकता के साथ शौचालय एवं सुरक्षित पेयजल को उपलब्ध कराया जाए।

उक्त बातें आज स्वैच्छिक संस्था समर्थन द्वारा वाटर एड एवं एस.सी.एफ. के सहयोग से होटल अमर विलास में ‘‘बच्चों के स्वच्छता अधिकार पर राज्यस्तरीय विमर्श’’ के आयोजन में वक्ताओं ने कही। विमर्श में समर्थन द्वारा सीहोर जिले के 15 पंचायतों में बाल स्वच्छता अधिकार पर चलाए गए कार्यक्रम के अनुभवों को साझा किया गया। समर्थन की कार्यक्रम प्रबंधक सुश्री सीमा जैन ने कहा कि गांव के विकास के लिए बनाई जा रही सभी योजनाओं में बच्चों को सहभागी बनाकर कार्य करने का सकारात्मक अनुभव रहा है। कई पंचायतों को बाल मित्र पंचायत से सम्मानित भी किया गया है।

विमर्श में माखनलाल विश्वविद्यालय के जनसंचार विभाग की पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. दविंदर कौर उप्पल ने कहा कि विकास के सभी कार्यक्रमों के साथ बाल स्वच्छता को जोड़ने की जरूरत है। वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता श्याम बोहरे ने कहा कि समुदाय को संवेदनशील बनाना अहम है। मध्य प्रदेश ग्रामीण विकास के साथ जुड़कर कार्य कर रही सुश्री आस्था अनुरागी ने कहा कि बच्चों के विचार विकास योजनाओं के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होते हैं। सी.आर.ओ. के नीलेश दुबे ने स्कूल फोरम के बारे में और राज्य शिक्षा केंद्र के पराग ने चाइल्ड कैबिनेट के बारे में बताया कि बच्चों की अर्थपूर्ण सहभागिता बाल अधिकारों को सुनिश्चित करता है। वाटर एड के बिनु अरिकल ने कहा कि बाल अधिकारों एवं विकास पर कार्य करने वाले विभागों को एक मंच पर आकर कार्य करते हुए विकास योजनाओं को लोगों तक पहुंचाना होगा। समर्थन के डॉ. डी.सी. शाह एवं विशाल नायक, सीहोर से आए पंचायत प्रतिनिधि, विभिन्न संस्थाओं के कार्यकर्ताओं ने भी अपने विचार साझा किए।

उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश की 34 फीसदी बसाहटों में रहने वाली आबादी को पानी के संकट से जूझना पड़ रहा है। साथ ही प्रदेश के कुल 23010 ग्राम पंचायतों में से अभी भी प्रदेश में सिर्फ 9030 गांवों में ही नल-जल योजनाएं संचालित हैं। ऐसे में समुदाय के लिए साफ पानी एवं स्वच्छता सुविधाओं को उपलब्ध कराना कठिन चुनौती है। इस कारण से वॉश मुद्दे पर बच्चों की सहभागिता अहम हो जाती है, जिससे कि बाल स्वच्छता अधिकारों को प्राथमिकता मिल सके।

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