बायोवेद शोध संस्थान द्वारा लाख क्रान्ति

बायोवेद शोध संस्थान के लाख संवर्धन के प्रयासों से वृक्षों का कटना रूक गया और पेड़ काटकर होने वाली 50-100 रुपए की आमदनी के स्थान पर आज पेड़ संरक्षित कर 4-5 महीने में एक पेड़ से 500-1,000 रुपए की आमदनी होने लगी है।भारतीय प्राकृतिक राल एवं गोन्द शोध संस्थान, राँची द्वारा सन् 1951 में लाख की खेती के विस्तार एवं प्रचार-प्रसार हेतु देश में चार क्षेत्रीय शोध केन्द्र बनाए गए जिसमें महाराष्ट्र में दो, दमोह व उमरिया में तथा पश्चिम बंगाल एवं उत्तर प्रदेश में एक-एक केन्द्र बनाए गए। उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में लाख शोध केन्द्र स्थापित तो हो गया पर वह लाख उत्पादन में पिछड़ता चला गया।

कई वर्षों तक उत्तर प्रदेश का नाम लाख उत्पादक क्षेत्रों से गायब रहा, लेकिन लाख उद्योग की खूबियों और उसके पर्यावरण हितैषी होने की बात उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद शहर में रहने वाले कृषि वैज्ञानिक डॉ. बी.के. द्विवेदी को पता थी। डॉ. द्विवेदी के प्रयासों से उत्तर प्रदेश के कई जिलों में लाख का पुनः उत्पादन प्रारम्भ हुआ और उत्तर प्रदेश का नाम भारत के लाख उत्पादक प्रदेशों में जुड़ गया। इसके साथ ही गायब हो चुके लाख उद्योग को पुनः फलने-फूलने का अवसर मिला। डॉ. द्विवेदी की संस्था बायोवेद कृषि एवं प्रौद्योगिकी शोध संस्थान, इलाहाबाद में स्थित है और डॉ. द्विवेदी पिछले 6 वर्षों से लाख उद्योग को सफलतापूर्वक संचालित कर रहे हैं।

भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा प्राप्त वित्तीय सहायता से उत्तर प्रदेश में सन् 2008 में प्रथम लाख प्रसंस्करण इकाई की स्थापना भी इलाहाबाद के श्रंगवेरपुर क्षेत्र के बायोवेद कृषि प्रौद्योगिकी ग्राम में की गई है। बायोवेद शोध संस्थान के लाख संवर्धन के प्रयासों से वृक्षों का कटना रूक गया और पेड़ काटकर होने वाली 50-100 रुपए की आमदनी के स्थान पर आज पेड़ संरक्षित कर 4-5 महीने में एक पेड़ से 500-1,000 रुपए की आमदनी होने लगी है। बायोवेद शोध संस्थान द्वारा इलाहाबाद, प्रतापगढ़, मिर्जापुर, सोनभद्र एवं बुन्देलखण्ड के कई जिलों में पलाश, बेर, कुसुम, जंगल जलेबी, पापुलर, लेमेंजिया, पीपल, गूलर, खैर, शिरीष, पाकुर आदि वृक्षों पर लाख की खेती आरम्भ की गई है। यहाँ ऊसर, बंजर एवं बेकार पड़ी भूमि पर लाख पोषक वृक्षों को लगाकर उपजाऊ बनाया गया है एवं इन वृक्षों पर लाख की खेती से कम लागत में 100 वृक्षों से सालाना 50,000 से 1,00,000 रुपए तक लाभ मिलने के कारण लाख उद्योग से जुड़ कर लोग वृक्षों के रक्षक बन गए हैं।

इस संस्थान द्वारा लेमेंजिया नामक झाड़ी पर लाख की खेती को प्रोत्साहित किया जा रहा है। इस पेड़ की जड़ों में नाइट्रोजन पैदा करने की क्षमता होती है, जिस कारण खेत में यूरिया की आपूर्ति स्वतः होने लगती है।इस संस्थान द्वारा सन् 2003 में इलाहाबाद जिले के मेजा, कारांव, शंकरगढ़, बढ़गढ़, मिर्जापुर, सोनभद्र के साथ चित्रकूट और बुन्देलखण्ड क्षेत्र के विभिन्न गाँवों में वैज्ञानिक पद्धति से लाख की खेती आरम्भ कराई गई। लाख की खेती से कृषकों को 15,000-20,000 प्रतिमाह की आय हो रही है। 2008 में डॉ. द्विवेदी के प्रयासों से 69,552 लाख पोषक वृक्षों पर इलाहाबाद के 20 गाँवों के लोगों ने लाख की खेती आरम्भ की। इस वर्ष 993 परिवारों ने 1,00,137 पोषक वृक्षों पर लाख की खेती का आगाज किया है। डॉ. द्विवेदी का कहना है कि लाख की खेती से 10 दिन के प्रशिक्षण के बाद कोई भी व्यक्ति चाहे वह किसान हो, आयहीन या साधनहीन हो, प्रतिमाह 3 से 5 हजार रुपए अर्जित कर सकता है।

आज उत्तर प्रदेश में लाख उद्योग को पुनर्जीवन देने वाले डॉ. बी.के. द्विवेदी और उनके निर्देशन में बायोवेद शोध संस्थान लाख की खेती से सम्बन्धित सम्पूर्ण संसाधन जैसे— बीज, यन्त्र, दवा, प्रशिक्षण, प्रदर्शन आदि उपलब्ध करा रहा है। यह संस्थान लाख की मूल्य संवर्धित विभिन्न वस्तुओं के निर्माण एवं उनकी बिक्री का प्रबन्धन भी कर रहा है। इस संस्थान द्वारा लेमेंजिया नामक झाड़ी पर लाख की खेती को प्रोत्साहित किया जा रहा है। इस पेड़ की जड़ों में नाइट्रोजन पैदा करने की क्षमता होती है, जिस कारण खेत में यूरिया की आपूर्ति स्वतः होने लगती है। आज बायोवेद शोध संस्थान से जुड़े लाख संवर्धन में संलग्न उत्तर प्रदेश के सैकड़ों किसान परिवार अपनी सफलता की कहानी बयाँ कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश में सोते हुए लाख उद्योग को जगाकर संस्थान ने प्रदेश को एक बार फिर लाख उत्पादक क्षेत्रों के साथ ला खड़ा किया है।

बायोवेद शोध संस्थान लाख के 350 विभिन्न प्रकार के मूल्यवर्धित वस्तुओं के निर्माण का प्रशिक्षण देकर कई हजार परिवारों को रोजगार के साथ अतिरिक्त आय का साधन उपलब्ध करा रहे हैं। डॉ. बी.के. द्विवेदी बताते हैं कि जानवरों के गोबर, मूत्र में लाख के प्रयोग से कई मूल्यवर्धित वस्तुएँ बनाई जा रही हैं। इन वस्तुओं में— गोबर का गमला, लक्ष्मी-गणेश, कलमदान, कूड़ादान, मच्छर भगाने वाली अगरबत्ती, जैव रसायनों का निर्माण, मोमबत्ती एवं अगरबत्ती स्टैण्ड व पुरस्कार में दी जाने वाली ट्रॉफियों का निर्माण आदि शामिल हैं। इन सभी वस्तुओं का निर्माण बायोवेद शोध संस्थान करा रहा है।

बायोवेद शोध संस्थान लाख के 350 विभिन्न प्रकार के मूल्यवर्धित वस्तुओं के निर्माण का प्रशिक्षण देकर कई हजार परिवारों को रोजगार के साथ अतिरिक्त आय का साधन उपलब्ध करा रहे हैं।उत्तर प्रदेश में 1951 से 1960 तक लाख उद्योग बेहतर प्रदर्शन कर रहा था एवं प्रदेश में 45 कारखाने कार्यरत थे किन्तु उस दौरान 95 प्रतिशत लाख का निर्यात विदेशों में किया जाता था, केवल 5 प्रतिशत लाख की खपत भारत में होती थी। यानी आरम्भ में लाख उद्योग विदेशी बाजारों पर टिका था। विदेशी निर्यात पर आश्रित होने के कारण एवं भाव में उतार-चढ़ाव के कारण व कुटीर उद्योगों की स्थापना न हो पाने के कारण लाख उद्योग उत्तर प्रदेश से गायब हो गया। बायोवेद शोध संस्थान, इलाहाबाद ने हाशिये पर आ चुके लाख उद्योग को एक बार फिर बुलन्दियों की ओर ले जाने का प्रयास किया है। भारतीय प्राकृतिक राल एवं गोन्द शोध संस्थान, राँची ने अपने 86वें स्थापना दिवस के अवसर पर 20 सितम्बर, 2009 को बायोवेद शोध संस्थान के साथ लाख उद्योग को बढ़ावा देने के लिए एक सहमति-पत्र पर हस्ताक्षर किया है।

आज इलाहाबाद के प्रयाग स्टेशन के निकट स्थित बायोवेद शोध संस्थान में सजावटी व श्रृंगार के सामान में लाख की कलात्मक साज-सज्जा और साथ ही कलाकारों के बुलन्द हौसले देखते ही बनते हैं।

(लेखिका एमिटी इंस्टीट्यूट ऑफ बायोटेक्नोलॉजी, एमिटी विश्वविद्यालय, नोएडा में प्रवक्ता हैं)
ई-मेल : drriti_bhu@yahoo.co.in

Path Alias

/articles/baayaovaeda-saodha-sansathaana-davaaraa-laakha-karaanatai

×