बौद्ध भिक्षुओं पर पुलिसिया हमला


घटना तवांग के स्थानीय लोगों पर पुलिस द्वारा गोलियाँ चलाए जाने की है। जोकि अपने नेता लामा लोसांग ग्यातसो को पुलिस हिरासत से छोड़ने की माँग कर रहे थे। ग्यातसो को पुलिस ने आईपीसी की धारा 151 तहत गिरफ्तार किया था और उन्हें जमानत भी नहीं मिल पा रही थी। ऐसे में लोगों को यह आशंका हुई कि कहीं उनके साथ कुछ गलत न हो जाए इसलिये 2 मई को तकरीबन दो हजार की संख्या में स्थानीय लोग तवांग के जिला मुख्यालय के सामने विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। ऐसे में अचानक से पुलिस ने प्रदर्शन कर रहे लोगों पर बिना किसी चेतावनी के गोलियाँ चलानी शुरू कर दी।

चीन की सीमा से लगा अरुणाचल प्रदेश का तवांग अधिकांशतः भारत में तिब्बती बुद्धिज्म का केन्द्र होने की वजह से आकर्षण का केन्द्र हुआ करता था। लेकिन साल 2011 के बाद यहाँ कि कई जल विद्युत परियोजनाओं के निर्माण का विरोध स्थानीय लोगों द्वारा किये जाने की वजह से यह लगातार सुर्खियों में है, इन विरोध प्रदर्शन के मूल कारण पर्यावरणीय और धार्मिक रहे हैं। इसके अलावा जल विद्युत परियोजनाओं का अपनी पूरी क्षमता के अनुरूप काम न कर पाना भी विरोध के मुख्य कारणों में एक है। लेकिन हालिया घटना तवांग के स्थानीय लोगों पर पुलिस द्वारा गोलियाँ चलाये जाने की है। जोकि अपने नेता लामा लोसांग ग्यातसो को पुलिस हिरासत से छोड़ने की मांग कर रहे थे। ग्यातसो को पुलिस ने आइपीसी की धारा 151 के तहत गिरफ्तार किया था और उन्हें जमानत भी नहीं मिल पा रही थी।

ऐसे में लोगों को यह आशंका हुई कि कहीं उनके साथ कुछ गलत न हो जाए इसलिये 02 मई को तकरीबन 2000 की संख्या में स्थानीय लोग तवांग के जिला मुख्यालय के सामने विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। ऐसे में अचानक से पुलिस ने प्रदर्शन कर रहे लोगों पर बिना किसी चेतावनी के गोलियाँ चलानी शुरू कर दी। इस घटना में तवांग मोनेस्ट्री के 21 वर्षीय बौद्ध भिक्षु नियमा वांगड़ी और जांगोड़ा गाँव के तेसरिंग टेंपा (31 वर्ष) की पुलिस की गोली लगने की वजह से मौके पर ही मौत हो गई। जबकि अन्य 19 लोग घायल हुए, जिनमें से 4 की हालत अब भी नाजुक बनी हुई है। पुलिस ने आरोप लगाया है कि विरोध प्रदर्शन कर रहे लोगों ने पुलिस थाने पर हमला करने की कोशिश की इसलिये पुलिस को ऐसा कदम उठाना पड़ा है।

इस घटना को जितना सीधा और सपाट दिखाने की कोशिश प्रशासन द्वारा की जा रही है यह उतनी सीधी नहीं है। इस घटना की जड़ में लोगों द्वारा जल परियोजनाओं का विरोध है। ऐसे तो इस क्षेत्र में तकरीबन 125 छोटी-बड़ी जल विद्युत परियोजनाओं पर काम चल रहा है। जिनमें 13 बड़ी परियोजनाएं हैं। स्थानीय लोग लम्बे समय से 780 मेगावाट की, 6400 करोड़ रुपये की लागत वाली न्यामंग चू पॉवर परियोजना का विरोध कर रहे थे। इस परियोजना के लिये साल 2012 में केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने पर्यावरणीय मंजूरी दी थी। लेकिन हाल ही में राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने रोक लगा दी थी। जिस जगह पर इस परियोजना के लिये काम चल रहा है वह जगह ठंड के दिनों में यहाँ शरण लेने वाले काले गले वाले क्रेन (सारस) का प्राकृतिक आवास है। स्थानीय बौद्ध मोनपा समुदाय की धार्मिक भावनाएँ इस विलुप्त प्रायः पक्षी से जुड़ी हैं। ये लोग इस पक्षी को 6वें दलाई लामा का अवतार मानते हैं जोकि तवांग घाटी के रहने वाले थे।

उन्होंने अपनी कविताओं में इन पक्षियों का जिक्र किया है। काले गले वाले क्रेन (सारस) तिब्बत के पठार में प्रजनन करते हैं और सर्दियों में ये तवांग आ जाते हैं। ये पक्षी मुख्य रूप से चीन में पाए जाते हैं लेकिन इन पक्षियों को तिब्बत और भारत में कानूनी रूप से संरक्षण मिला हुआ है। आईयूसीएन (इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर) ने इस पक्षी को विलुप्त होने की सूची में रखा है जबकि भारत में वन्यजीव कानून में इसे पहली अनुसूची में रखा गया है यह सूची के अंतर्गत आने वाले जीवों और पक्षियों को सर्वोच्च स्तर का कानूनी संरक्षण प्राप्त होता है। इसके अलावा इस क्षेत्र में अन्य जीव जैसे कि लाल पांडा, स्नो-लियोपर्ड पाए जाते हैं। इस सम्बन्ध में तवांग घाटी में रहने वाले लोगों ने कई बार स्थानीय प्रशासन और राज्य सरकार की एजेंसीज को पत्र लिखे लेकिन उन्होंने इस सम्बन्ध में कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। इस वजह से यहाँ के लोगों ने राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) का रुख किया। जिसने प्रोजेक्ट के लिये दी पर्यावरणीय मंजूरी को 7 अप्रैल 2016 को निरस्त कर दिया, एनजीटी के निर्णय पर जिला प्रशासन, स्थानीय विधायक, जिला परिषद अध्यक्ष ने समन्वित प्रतिक्रिया दी। एनजीटी द्वारा रोक लगाए जाने के बाद परियोजना के विकासकर्ताओं को एक बार फिर पर्यावरणीय मंजूरी (एनवायरनमेंट क्लियरेंस) लेनी होगी।

एनएपीएम के उमेश बाबू बताते हैं कि 26 अप्रैल 2016 को स्थानीय नेता लामा लोसांग ग्यात्सो को एनजीटी के निर्णय के फलस्वरूप बदला लेने के लिये गिरफ्तार किया गया, लेकिन उन्हें उसी दिन रिहा कर दिया गया। इसके बाद 28 अप्रैल को जिला पंचायत अध्यक्ष ने तवांग घाटी क्षेत्र के विकास के मुद्दे पर परिचर्चा के लिये एक जनसभा आयोजित की थी, वहाँ शामिल होने आए लोगों ने एक कागज पर अपनी उपस्थिति दर्शाने के लिये दस्तखत किये, लेकिन बाद में उस अटेंडेंस शीट को साजिशन एक अन्य कागज के साथ अटैच कर दिया गया और लोसांग ग्यात्सो को पुलिस ने धार्मिक भावना को भड़काने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया। इसके बाद चार दिन तक उन्हें अदालत से जमानत नहीं मिलने दी गई। अदालत ने बार-बार उनकी जमानत खारिज कर दी। इस घटनाक्रम के बाद समुदाय के लोगों के मन में उनके नेता के खिलाफ कुछ गलत होने की आशंका पैदा हो गई, इस वजह से लोग 2 मई 2016 को जिलाधिकारी कार्यालय के सामने एकत्रित होकर शांतिपूर्ण तरीके से अपने नेता को रिहा करने की माँग कर रहे थे। लेकिन पुलिस ने इन लोगों के ऊपर अंधाधुंध तरीके से बिना किसी चेतावनी के गोलियाँ चलानी शुरू कर दी।

क्या सरकार लोगों को डरा धमकाकर निजी कम्पनियों को पर्यावरणीय मंजूरी दिलाना चाहती है। क्या वह लोगों को यह संदेश देना चाहती है कि वह किसी न किसी तरह दोबारा भी पर्यावरणीय मंजूरी कम्पनी को दिला देगी। भले ही उसे लोगों की लाश पर से ही क्यों न गुजरना पड़े। सरकार का यह रवैया बेहद शर्मनाक है। एसएमआरएफ के सदस्य लोसांग चोदप ने आरोप लगाया कि बड़ी जलविद्युत परियोजनाएं न केवल तवांग के पारिस्थितिकी तंत्र को बर्बाद कर रही हैं। बल्कि बौद्ध समुदाय के लोगों के धार्मिक स्थलों को भी खत्म कर रहे हैं।

इस घटना के बाद आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई करने की स्थानीय स्तर पर माँग की गई। जब वहाँ सरकार और प्रशासन ने उनकी नहीं सुनी तो 60 बौद्ध भिक्षुओं का एक दल विरोध प्रदर्शन करने दिल्ली पहुँचा और सरकार के सामने अपनी माँग रखी। तवांग से दिल्ली आए लोसांग चौदुप ने कहा कि हम चाहते हैं कि भारत सरकार इस मसले पर ध्यान दे। अरुणाचल प्रदेश के लोगों को ऐसा नहीं लगना चाहिए कि भारत सरकार उन्हें नजर अंदाज कर रही है। साउथ एशियन नेटवर्क फॉर रिवर्स, डैम एंड पीपुल के हिमांशु ठक्कर ने विरोध प्रदर्शन के दौरान कहा कि इस परियोजना से पैदा हुई बिजली तवांग के लोगों तक पहुँचेगी या नहीं यह कहना मुश्किल है लेकिन विनाश उनका ही होगा यह निश्चित तौर पर कहा जा सकता है। ह्यूमैनिटी फाउंडेशन के जंपा टेसरिंग ने कहा कि तवांग के लोगों को माइक्रो हाइड्रो प्रोजेक्ट की आवश्यकता है न कि बड़े हाइड्रो प्रोजेक्ट्स की।

बिजली उत्पादन करना सरकार की नीति है लेकिन इसके लिये सरकार को लोगों की हत्या करने का हक नहीं मिल जाता। पुलिस द्वारा लोगों पर फायरिंग किये जाने को बर्बरतापूर्ण करार देते हुए नेशनल अलायंस फॉर पीपुल्स मूवमेंट के विमल भाई ने कहा कि अरुणाचल प्रदेश देश के सबसे शांत प्रदेशों में से एक है। यहाँ न ही नक्सली समस्या है और न ही यह सैन्य संघर्ष क्षेत्र है। यहाँ किसी तरह की सांप्रदायिक समस्या भी नहीं है यहाँ बौद्ध भिक्षु बहुतायत में रहते हैं। प्रदर्शनकारियों पर पुलिस द्वारा गोली चलाने का कोई कारण नजर नहीं आता, वह भी बिना किसी चेतावनी के। सारा घटनाक्रम हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या यह घटना पूर्वनियोजित थी? लोगों की माँग है कि पुलिस द्वारा बिना किसी चेतावनी के प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने के मामले की सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज द्वारा जाँच कराई जानी चाहिए ताकि लोगों को यह पता चल सके कि आखिर पुलिस ने यह कदम किसके आदेश पर उठाया।

यहाँ काम कर रहे एसएमआरएफ, एनएपीएम, डीएसजी जैसे समूह प्रशासन के इस मनमाने रवैये की आलोचना कर रहे हैं। उनका कहना है कि एक शांति पूर्ण विरोध-प्रदर्शन को संभालने में प्रशासन पूरी तरह नाकाम रहा है। इस मामले की गहनता से सक्षम जाँच एजेंसी द्वारा जाँच होनी चाहिए और इस घटना के लिये जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। यह भी कहा जा रहा है कि निजी कंपनियों और सरकारी महकमे का गठजोड़ लोकहित के खिलाफ काम कर रहा है। क्या सरकार लोगों को डरा धमकाकर निजी कम्पनियों को पर्यावरणीय मंजूरी दिलाना चाहती है। क्या वह लोगों को यह संदेश देना चाहती है कि वह किसी न किसी तरह दोबारा भी पर्यावरणीय मंजूरी कम्पनी को दिला देगी। भले ही उसे लोगों की लाश पर से ही क्यों न गुजरना पड़े। सरकार का यह रवैया बेहद शर्मनाक है। एसएमआरएफ के सदस्य लोसांग चोदप ने आरोप लगाया कि बड़ी जलविद्युत परियोजनाएं न केवल तवांग के पारिस्थितिकी तंत्र को बर्बाद कर रही हैं। बल्कि बौद्ध समुदाय के लोगों के धार्मिक स्थलों को भी खत्म कर रहे हैं। चीन के साथ सीमा लगे होने की वजह से तवांग क्षेत्र में कई जगहों पर बड़े पैमाने पर सेना का कब्जा है। इसके बाद हाइड्रो प्रोजेक्ट इस क्षेत्र को लील रहे हैं ऐसे में यहाँ के लोगों और उनकी संस्कृति का क्या होगा इसका भगवान ही मालिक है। ये लोग कहाँ जाएंगे। लोगों का कहना है कि वे जल विद्युत परियोजनाओं के विरोधी नहीं हैं, उन्हें परेशानी केवल बड़ी जल विद्युत परियोजनाओं से है जो कि उनकी संस्कृति और आस्था को चोट पहुँचा रही हैं।

इस क्षेत्र में काम कर रहे पर्यावरणीय सिविल सोसायटी एसएमआरएफ के प्रतिनिधियों ने नेशनल एलायंस फॉर पीपुल्स मूवमेंट और दिल्ली सॉलीडैरिटी ग्रुप के प्रतिनिधियों के एक समूह ने अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष और पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के संयुक्त सचिव से दिल्ली में क्रमशः 24 और 25 मई को मुलाकात की। अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष ने आश्वासन दिया कि राज्य के अधिकारियों को अनुसूचित जाति, जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम-1989 के तहत मामला दर्ज करें और मामले की जाँच सीआई या न्यायिक आयोग का गठन करके करें। साथ ही जाँच में स्थानीय पुलिस में शामिल नहीं करें, इसके अलावा पुलिस फायरिंग में मारे गए और घायल हुए लोगों को मुआवजा देने के लिये कहेंगे। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के संयुक्त सचिव ने आश्वासन दिया कि वह एनजीटी के 7 अप्रैल के आदेश को चुनौती नहीं देंगे। इसके साथ ही उन्होंने भारतीय वन्यजीव संस्थान से विलुप्त प्रायः पक्षी के सम्बन्ध में अध्ययन करवाने का आश्वासन भी दिया। हालाँकि इस परियोजना की मंजूरी अनुमोदन के तरीके से की जाँच सीबीआई द्वारा किये जाने की माँग पर कोई निर्णय अभी तक नहीं लिया गया है।

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