बात राजीव गांधी तक पहुँची

एक करोड़ तीस लाख रुपये से मिट्टी का काम वहाँ हुआ है। इस पूरे निर्माण कार्य का न तो कोई विरोध होता और न पूवारी या पछुआरी टोल का कोई विवाद उठता अगर ब्रह्मचारी जी का पूरे गाँव को घेर लेने का पहला प्रस्ताव कारगर हो गया होता।

जहाँ इन वैधानिक संस्थाओं में इस मुद्दे पर बहस तेज़ थी वहीं चानपुरा पुलिस छावनी में तबदील हो गया था। रोज़ धर पकड़ और स्थानीय लोगों का जेल आना-जाना लगा रहा। 23 जुलाई 1982 को सतीश चन्द्र झा ने प्रेस विज्ञाप्ति जारी कर के करीब सौ लोगों की गिरफ्तारी की सूचना दी। इस बीच घटनाक्रम तेजी से बदला जिसके बारे में फिर बताते हैं सतीश चन्द्र झा। उनका कहना है, ‘‘...एक दिन मुझे युगेश्वर झा का फोन आया कि राजीव गांधी गुवाहाटी जाते समय कुछ समय के लिए पटना हवाई अड्डे पर रुकेंगे क्योंकि वहाँ उनके जहाज में ईंधन भरा जायेगा। उन्होंने मुझे कुछ लोगों के साथ हवाई अड्डे पर मौजूद रहने की ताकीद की। मैं करीब पन्द्रह लोगों के साथ हवाई अड्डे पर आ गया। जैसे ही राजीव गांधी लाउन्ज में आकर लोगों से मिलने लगे वैसे ही युगेश्वर झा जोर-जोर से रोने लगे। हम लोगों ने भी वही काम दुहराया। राजीव गांधी ने हम लोगों से इस तरह के विचित्र व्यवहार का कारण पूछा तो युगेश्वर झा ने उन्हें सारी बात बतायी।

राजीव गांधी ने तुरन्त तारिक अनवर, श्याम सुन्दर धीरज और रणजीत सिन्हा को लेकर एक कमेटी बनायी और उनसे कहा कि कल वह इसी समय गुवाहाटी से लौटते समय कुछ देर के लिए पटना रुकेंगे। इस बीच में यह तीनों लोग चानपुरा जाकर वहाँ की स्थिति पर उनको रिपोर्ट दें। इन लोगों को चानपुरा लाने ले जाने का यह सारा काम मेरे जिम्मे पड़ा क्योंकि युगेश्वर झा वहाँ जा नहीं सकते थे, उन पर रोक लगी हुई थी। मैंने रातों-रात सब जगह खबर भिजवायी। सुबह काफी संख्या में लोग चानपुरा में इकट्ठा थे। यह तीनों लोग भी वहाँ पहुँचे। हमने पूरा बांध इन लोगों को दिखाया। संस्कृत कॉलेज में सबकी मीटिंग हुई। गाँव के लोगों ने सारी बातें उन्हें समझायीं और तब यह लोग समय रहते पटना चले गए और हवाई अड्डे पर राजीव गांधी को सारी बातें बताईं। राजीव गांधी जब दिल्ली घर पहुँचे तो वहाँ धीरेन्द्र ब्रह्मचारी मौजूद थे जिनको देखकर उनका गुस्सा फूट पड़ा।

उन्होंने इन्दिरा जी को बताया कि ब्रह्मचारी जी की वजह से पचास गाँव बरबाद हो जायेंगे और कांग्रेस का गढ़ वहाँ छिन्न-भिन्न हो जायेगा। उन्होंने ब्रह्मचारी जी को चले जाने को कहा। प्रधानमंत्री कार्यालय से दूसरे दिन रिंग बांध का काम बंद करने का आदेश आ गया। इस तरह जब तक राजीव गांधी का प्रभाव रहा यह काम बंद रहा। हाइकोर्ट में जो मामला चल रहा था वह भी खारिज हो गया क्योंकि न्यायालय ने इंजीनयरों की एक कमेटी बना कर उनसे तकनीकी राय मांगी और उसी के अनुसार काम करने या न करने का आदेश दिया। इस तरह विरोध क्षीण हो गया। उस समय जो काम बंद हुआ उसके इतने दिनों बाद बांध पर इस साल (2010) मिट्टी पड़ी है। एक करोड़ तीस लाख रुपये से मिट्टी का काम वहाँ हुआ है। इस पूरे निर्माण कार्य का न तो कोई विरोध होता और न पूवारी या पछुआरी टोल का कोई विवाद उठता अगर ब्रह्मचारी जी का पूरे गाँव को घेर लेने का पहला प्रस्ताव कारगर हो गया होता। उस समय टोले-मुहल्ले समेत पूरा गाँव रिंग बांध के भीतर होता।

यह विवाद पछुआरी टोल के ही विरोध के कारण हुआ मगर ब्रह्मचारी जी अपने संपर्कों के कारण बहुत ज्यादा ताकतवर थे, उन्होंने जो चाहा करवा लिया। यह सच है कि स्वामी जी उत्कृष्टतम योगियों में थे। आयुर्वेद के महान ज्ञाता थे। उन्होंने राजेन्द्र प्रसाद का दमा का इलाज किया था। इन्दिरा गांधी और जय प्रकाश नारायण का उन्होंने इलाज किया था। उनके ज्ञान और साधना में कहीं कोई कमी नहीं थी। इन सब कारणों से उनके संसाधनों की भी कोई कमी नहीं थी। हमारे तमाम विरोध के बावजूद उनका व्यक्तित्व हम लोगों के लिए बड़ा उदार था भले ही उनके बारे में बाहर के लोगों द्वारा जो कुछ भी विवादास्पद बातें कही जाती रही हों। यह भी गलत नहीं है कि राजीव गांधी अगर नहीं रहते तो हम लोग बर्बाद हो गए होते।’’

जहाँ तक न्यायिक प्रक्रिया का प्रश्न है लेखक ने पछुआरी टोल की तरफ से उच्च न्यायालय में पैरवी कर रहे तत्कालीन ऐडवोकेट (बाद में बिहार के ऐडवोकेट जनरल और बिहार विधान परिषद् के वर्तमान सभापति) ताराकान्त झा से इस मामले की जानकारी लेनी चाही। उनका कहना है, ‘‘...चानपुरा गाँव बेनीपट्टी प्रखंड, मधुबनी में पड़ता है। उसके दो टोले हैं-एक पूवारी, दूसरा पछुआरी। मेरा गाँव है शिवनगर और हमारे गाँवों के बीच में बुढ़नद नदी बहती है जो एक बरसाती नदी है। बाढ़ जब आती है तो जोरों की आती है और तब चानपुरा के अन्दर भी पानी घुस जाता था। धीरेन्द्र ब्रह्मचारी का घर पूवारी टोले में था। इस टोले में सरकारी पदाधिकारी अधिक हैं। कुछ पुराने ज़मींदार भी उस टोले में थे। धीरेन्द्र जी ने अपने गाँव को बचाने के लिए हवाई जहाज से (उनका अपना छोटा जहाज था) गाँव की परिक्रमा की। मन में तय किया कि गाँव को रिंग बांध से घेर दिया जाए। गाँव वालों को धीरे-धीरे पता लगा। इससे चानपुरा का पछुआरी टोला प्रभावित होने वाला था, उनकी योजना अपना टोला बचाने की थी। रिंग बांध बनने से उत्तर वाले गाँवों पर भी असर पड़ता। एक बार मेरे गाँव में अटल जी आये थे किसी आयोजन में मेरे घर। चानपुरा रिंग बांध से प्रभावित होने वाले गाँवों के लोग अटल जी से मिलने आ गए। दरख्वास्त भी दी। उन्होंने ध्यान से सुना। अटल जी ने मेरी ओर इशारा कर के उन लोगों से कहा कि वकील साहब आप लोगों की मदद करेंगे।

पछुआरी टोले वाले आगे बढ़े। पटना उच्च न्यायालय में मामला दर्ज हुआ, बिहार सरकार पार्टी थी। केन्द्र को पार्टी नहीं बनाया क्योंकि धीरेन्द्र जी का वहाँ प्रभाव था। योजना का खर्चा बिहार सरकार का था। धीरेन्द्र जी मुझसे मिलना चाहते थे कि मामला रफा-दफा हो जाए। बिहार सरकार अदालत में पेश हुई और स्टैण्ड लिया कि इस निर्माण का प्रभाव दूसरे गाँवों पर भी होगा। जांच हुई, रिपोर्ट बनी, उच्च न्यायालय में दाखिल हुई। इधर मुकदमा चलता रहा मगर तब तक बांध का बनना रुका नहीं। मा. हरिलाल अग्रवाल प्रेसिडेन्सी जज थे। उन्होंने कहा कि बिहार और भारत सरकार दोनों मिल कर लोगों की सुरक्षा का प्रबंध करें। यह फैसला आने तक बांध बन चुका था। पछुआरी टोले वालों को धीरेन्द्र जी ने बुलाया और समझा लिया और कहा कि बांध में ही पानी की निकासी का रास्ता बनवा देंगे। मामला खतम हो गया। उच्च न्यायालय का कोई निर्णय नहीं हो पाया।’’

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Post By: tridmin
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