प्रदेश की राजधानी भोपाल से करीब 225 किमी दूर खण्डवा जिले में यह कोशिश की जा रही है। गौरतलब है कि यहाँ का प्राकृतिक जंगल इन्दिरा सागर बाँध में डूब जाने से बड़ी तादाद में वन्य जीव प्रभावित हुए हैं। इनके पुनर्वास के लिये कुछ कोशिशें की भी गई। यहाँ तक कि बाँध में फँसे कुछ लंगूरों को बाकायदा रेस्क्यू करके बड़ी मुश्किलों से निकाला भी गया। पहले सदियों पुराने सघन वन को बाँध के पानी में डूबो देना और 12 साल बाद उनके पुनर्वास के लिये नए जंगल का बनाया जाना अदूरदर्शितापूर्ण निर्णय है। बाँध से उजड़े विस्थापितों के लिये तो सरकार ने मुआवजा और अन्य सुविधाएँ देकर उन्हें पुनर्वासित किया लेकिन वन और वन्य जीवों के पुनर्वास को गम्भीरता से नहीं लिया गया। यह सवाल मध्य प्रदेश में इन्दिरा सागर बाँध के टापू पर बनाए जा रहे नए जंगल को लेकर उठने लगे हैं इलाके के पर्यावरणविदों ने सरकार को भी इस बारे में चेताया है।
पर्यावरण के जानकार यह भी सवाल उठाते हैं कि आखिर किस तरह एक जंगल और उसके वन्यजीवों सहित पूरे इको तंत्र को एक जगह से दूसरे जगह स्थानान्तरित किया जा सकता है। यदि बाँध बनने से पहले इसकी गम्भीर और ईमानदार कोशिश की जाती तो शायद कुछ सम्भावनाएँ बन भी सकती थीं लेकिन अब जबकि उन्हें और उनके प्राकृतिक रहवास को उजड़े 12 साल का लम्बा वक्त गुजर चुका है तो यह कैसे सम्भव हो सकता है।
उधर इन्दिरा सागर बाँध के बैक वाटर टापू पर जंगल को बीते कुछ महीनों से बाघों के अनुरूप बनाए जाने का सरकारी काम जोर-शोर से चल रहा है। वन विभाग के विशेषज्ञों की देख-रेख में वनराज की अगवानी में घास के मैदान बन चुके हैं तो अब यहाँ बारह चीतल भी छोड़े गए हैं। इनकी आबादी बढ़ते ही यहाँ बाघ भी पहुँचेंगे। कुछ महीनों बाद यह इलाका पूरे प्रदेश में बाघों के प्राकृतिक रहवास के लिये पहचाना जाएगा।
इस पर सवाल खड़े करने वाले पर्यावरणविद बताते हैं कि इस इलाके को इस तरह विकसित किया जाये ताकि केवल बाघ ही नहीं, अन्य प्रजातियों के वन्य प्राणियों के लिये भी रहवास की व्यवस्थाएँ हों। इससे एक प्राकृतिक किस्म के इको तंत्र का निर्माण हो सके। यहाँ बाँध बनाए जाने से पहले सागौन का बड़ा जंगल हुआ करता था और इस जंगल में कभी बड़े पैमाने पर वन्य जीव भी सदियों से रहते आये थे लेकिन बाँध निर्माण में इस जंगल के डूब जाने से इन वन्य जीवों और इनके प्राकृतिक तंत्र का भी बड़ा नुकसान हुआ है। सैकड़ों की तादाद में यहाँ के वन्य जीवों को यहाँ से अन्य स्थानों पर पुनर्वसित लिया गया पर फिर भी हजारों यहाँ–वहाँ हो गए। अब इसी के प्रायश्चित के रूप में सरकार जतन कर रही है कि यदि इस तरह एक नया जंगल बन सके, जो वन्य जीवों के लिये रहवास का आदर्श प्रतिरूप हो तो यह कई वन्य प्राणियों को लुभा सकेगा।
प्रदेश की राजधानी भोपाल से करीब 225 किमी दूर खण्डवा जिले में यह कोशिश की जा रही है। गौरतलब है कि यहाँ का प्राकृतिक जंगल इन्दिरा सागर बाँध में डूब जाने से बड़ी तादाद में वन्य जीव प्रभावित हुए हैं। इनके पुनर्वास के लिये कुछ कोशिशें की भी गई। यहाँ तक कि बाँध में फँसे कुछ लंगूरों को बाकायदा रेस्क्यू करके बड़ी मुश्किलों से निकाला भी गया। इसके लिये हेलिकाप्टर की भी मदद ली गई पर गम्भीर, जमीनी और ईमानदार कोशिशें उस तरह नहीं हो सकीं, जैसी की जाना चाहिए थी। अब करीब 12 साल बाद बनाए जा रहे इस नए जंगल में उनका पुनर्वास तो सम्भव नहीं है।
गौरतलब है कि 23 अक्टूबर 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने इस बाँध की आधारशिला रखी थी। नर्मदा नदी पर 5307.20 करोड़ लागत की यह योजना एशिया की सबसे प्रतिष्ठित जल विद्युत प्रोजेक्ट है। इससे खण्डवा जिले के ग्रामीण क्षेत्रों सहित महाराष्ट्र के भण्डारा, नागपुर और चन्द्रपुर जिलों के कुछ हिस्सों को पेयजल के लिये पानी मुहैया कराए जाने का भी लक्ष्य है। कंक्रीट के इस बाँध की लम्बाई 653 मीटर और ऊँचाई 92 मीटर है। इसकी डूब में आये 40 हजार 332 हेक्टेयर वनक्षेत्र में विभिन्न प्रजातियों के दो हजार से ज्यादा वन्य प्राणियों को संरक्षित करने के लिये 293.56 वर्ग किमी क्षेत्र में देवास जिले में ओंकारेश्वर राष्ट्रीय उद्यान बनाया गया था।
मुख्य वन संरक्षक वन्य प्राणी रवि श्रीवास्तव ने बताया कि अब तक प्रदेश के पूर्वी क्षेत्र में तो इस तरह के अभयारण्य और आरक्षित वन क्षेत्र हैं, लेकिन अब पश्चिमी मध्य प्रदेश में भी खण्डवा जिले में इन्दिरा सागर बाँध के बैक वाटर धारी कोटला टापू को बाघों के लिये प्राकृतिक रहवास की तरह विकसित किया जा रहा है। यह बाँध क्षेत्र का विकसित टापू है और यहाँ वन्यजीवों के लिये पीने के पानी की भी कमी नहीं होगी। इसके लिये बीते तीन महीनों से यहाँ घास के मैदान वन अधिकारी तैयार करवा रहे हैं और अब यहाँ वन्यप्राणियों के लाये जाने का सिलसिला भी शुरू हो चुका है। बीते दिनों वन विहार भोपाल से बारह चीतल को यहाँ लाया गया है। इनमें नर, मादा और बच्चे भी शामिल हैं।
उन्होंने बताया कि गर्मी के मौसम में इन चीतलों को भोपाल से यहाँ तक करीब 225 किमी की यात्रा कराते हुए लाना चुनौतीपूर्ण काम था लेकिन वन कर्मचारियों ने इसे अच्छे से पूरा किया। वे खुद इनके साथ यहाँ आये हैं। अब चीतलों को यहाँ रखा जाएगा। मानसून में इनकी आबादी बढ़ेगी। कुछ अन्य वन्यप्राणियों को भी जल्दी ही यहाँ भेजा जाएगा। पहले से भी यहाँ कई वन्यजीव मौजूद हैं। यहाँ बाँध के पानी का स्तर कम होने से काम फिलहाल आसानी से हो पा रहा है।
बाघों के अनुकूल जंगल होते ही यहाँ आबादी क्षेत्रों से पकड़े गए बाघ और अन्य अभयारण्यों में वर्चस्व की लड़ाई लड़ रहे बाघों को यहाँ भेजा जाएगा। अधिकारियों के मुताबिक खण्डवा और देवास जिले की सीमा से सटे नर्मदा के सघन जगंल और टापूओं को मिलाकर करीब 60 हजार हेक्टेयर जंगल आकार लेगा और यहाँ पर्यटक वन्य प्राणियों को देख सकेंगे। इससे वन्य प्राणियों की सुरक्षा और पयर्टकों को भी आकर्षित किया जा सकेगा। गौरतलब है कि इन्दिरा सागर और ओंकारेश्वर बाँध निर्माण में हजारों हेक्टेयर जंगल जलमग्न होने से वन्य प्राणियों के पुर्नवास के लिये यहाँ अभयारण्य प्रस्तावित है। शासन से तैयारियों के लिये 20 लाख का बजट भी स्वीकृत है। फिलहाल नर्मदानगर और आसपास के जंगल में पाँच हजार से अधिक वन्यप्राणी है। जंगल का क्षेत्र बेहद विस्तृत होने से महाराष्ट्र के अभयारण्य से जंगली जानवर भी यहाँ तक आ जाते है।
इसके अलावा इन्दिरासागर बैकवाटर टापू बोरियामाल, चांदगढ़ और देवास जिले के उदयनगर व आसपास के जंगल में वन्य प्राणियों को छोड़ने की योजना बनाई है। इनमें बोरियामाल और धारी कोटला हनुमंतिया वाटर स्पोर्टस के पास होने से इन टापूओं पर हिरण, चीतल, भालू आदि पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र रहेंगे, इलाके के लोग भी इससे खुश हैं कि वन पर्यटन बढ़ने से यहाँ रोजगार की नई सम्भावनाएँ विकसित हो सकेंगी।
यह कोशिश सुखद भी है पर इसका अमल में आने से पहले ही इस पर कई सवाल भी खड़े हो रहे हैं।
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Post By: RuralWater