उत्तर प्रदेश से होकर बहने वाली उत्तर भारत की कई प्रमुख नदियों का भारत में प्रवेश नेपाल से होकर ही होता है। इन नदियों में घाघरा और राप्ती को काफी अहम स्थान प्राप्त है। नेपाल से होकर भारत की सीमा में प्रवेश करने वाली इन नदियों का भारतीय क्षेत्र में काफी बड़ा जीवनदायी प्रभाव है। घाघरा और राप्ती नदी पर पूर्वी उत्तर प्रदेश के कई जिले सीतापुर, लखीमपुर, बाराबंकी बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, गोण्डा, गोरखपुर, अम्बेडकरनगर आदि काफी निर्भर हैं। यह निर्भरता केवल किसानों की सिंचाई तक ही सीमित नहीं है। अपितु इन नदियों का जुड़ाव धार्मिक और सांस्कृतिक नगरों से भी काफी ज्यादा है। इन नदियों का प्रवाह रूकने की दशा में भारत के इन क्षेत्रो में काफी व्यापक प्रभाव पड़ेगा। नेपाल के मध्य-पश्चिम राज्य के दो जिलों बांके और बर्दिया में चल रही दो बहुउद्देशीय सिंचाई योजनाओं से इन दोनों नदियों के प्रवाह में कमी आनी अवश्यंभावी है। बांके जिले के अग्गैया गांव के पास राप्ती नदी पर बन रही सिक्टा सिंचाई परियोजना का काम करीब-करीब पूरा हो चुका है।
इस परियोजना के तहत राप्ती नदी की धारा को बांध बनाकर मोड़ा जायेगा जिससे नेपाल के गांवो में तो सिंचाई का पानी पहुँचेगा वहीं भारत के क्षेत्रों में पानी की कमी हो जायेगा। यह सारी परियोजना चीन सरकार की कम्पनी साइनो हाइड्रो द्वारा नेपाल से प्राप्त ठेके के आधार पर हो रहा है। सिक्टा सिंचाई परियोजना के द्वारा राप्ती नदी की धारा को मोड़ने का जो काम होना है उसका अंतिम चरण अब नजदीक आ चुका है। 317 मी. लम्बी इस बांध परियोजना में तटबंध बनाने का काम लगभग पूरा हो चुका है। इस बांध में राप्ती नदी के पानी को रेग्यूलेट करने के लिए 13 रेग्यूलेटर गेट बनाये गये हैं। अब अंतिम चरण के दौरान इस बांध से राप्ती के पानी को नेपाल के क्षेत्रो में मोड़ने के लिए 50 कि.मी. लम्बी नहर बनाई जा रही है जिससे नेपाल के मध्य-पश्चिम राज्य के इलाकों में पानी पहुँचाया जा सके। राप्ती पर बनने वाले इस बांध से नदी की धारा इतनी कम हो जायेगी कि कई भारतीय नहरों का प्रवाह ही रूक जायेगा। श्रावस्ती, बलरामपुर और सिद्धार्थ नगर जैसे राप्ती के प्रवेश के निकट के जिलों में नहरों को करीब 95 क्यूसेक प्रति सेकेण्ड की दर पानी चाहिए होता है। इसीलिए जब यह सिक्टा परियोजना पूर्ण हो जायेगी तो पानी का प्रवाह काफी कम हो जायेगा जिससे सारी नहरें निष्प्रयोज्य हो जायेंगी।
इसी प्रकार की एक और परियोजना नेपाल के बर्दिया जिले में बड़राई कतरनिया गांव विकास संख्या के बड़ी गांव में शुरू हो रही है। जिससे घाघरा नदी की बड़ी धारा खत्म होने का खतरा मंडरा रहा है। भारत में प्रवेश करने से पूर्व घाघरा नदी कर्णाली के नाम से नेपाल में करीब 500 कि.मी. का लम्बा मार्ग तय करती है। घाघरा के भारत में प्रवेश से पहले नेपाल की कई सहायक नदियां भी घाघरा नदी को बहने में सहायता प्रदान करती हैं। इन्ही सहायक नदीयों में से सबसे प्रमुख है नेपाल की भेरी नदी जो कर्णाली या घाघरा को गति प्रदान करती है। नेपाल में एक बहुउद्देशीय पनबिजली परियोजना के लिए इसी भेरी नदी की धारा को अब घाघरा में मिलने से रोकने की तैयारी हो रही है। बहराइच जनपद से सटे नेपाल के वर्दिया जिले के बडराई कतरनिया गांव विकास में बबई सिंचाई परियोजना चल रही है। इसी बबई सिंचाई परियोजना में भेरी नदी का पानी डाईवर्जन करके बबई नदी में गिराने की तैयारी की जा रही है। भेरी नदी का पानी नेपाल में बबई सिंचाई परियोजना के लिए प्रयोग किये जाने तथा यहां पर पनबिजली बनाने की भी तैयारी है। इस योजना के तहत भेरी नदी का पानी 121 कि.मी. लम्बी सुरंग बनाकर करीब 40 घन मी. प्रति सेकेण्ड की दर से बबई नदी में गिराया जायेगा जिससे पनबिजली बनाने वाले टरबाइनो को चलाया जा सकेगा। इसी के साथ ही बबई नदी से होकर बनने वाली नहरों के जाल को भी अतिरिक्त पानी मिल सकेगा और यह सिंचाई परियोजना विस्तृत हो सकेगी। पहले से चल रही बबई सिंचाई परियोजना में भेरी नदी के इस डाईवर्जन कार्य के लिए 14 अरब रुपये की योजना मंजूर की गई है तथा इसके लिए 6 वर्ष की समय सीमा र्निधारित की गई है।
इन दोनों परियोजनाओं के पूरा हो जाने की स्थिति में उत्तर प्रदेश में कई वर्षों से चल रही सरयू नहर परियोजना पूरी तरह ध्वस्त हो जायेगी। इसी के साथ भारतीय क्षेत्रों की नहरें भी सूख जायेंगी। इसी के साथ ही भारतीय क्षेत्र में पानी आने और ना आने के लिए नेपाल पर निर्भरता हो जायेगी। साथ ही नेपाल द्वारा कभी अचानक ज्यादा पानी छोड़ने से अप्रत्याशित बाढ़ की स्थिति का डर बना रहेगा। जो नेपाल के वर्तमान राजनैतिक हालात में व्याप्त भारत विरोध और चीन से लगाव को देखते हुए अच्छी बात नहीं है। जहां घाघरा की धारा कम होने का सीधा असर सरयू नदी के प्रवाह पर पडेगा। जिससे अयोध्या और अन्य सरयू तट पर बसे धार्मिक नगरों में काफी क्षोभ की स्थिति भी ला देगा। इसी प्रकार राप्ती और घाघरा दोनो का मिलन गंगा में भी होता है। ऐसे में इन दोनों बड़ी नदियों की धारा कम होने का काफी दूरगामी प्रभाव भी पड़ेगा। भारत सरकार द्वारा सिक्टा परियोजना को लेकर नर्म रूख रखने के कारण अब नेपाल में नये कार्य के तहत घाघरा की धारा को मोड़ने का भी कार्य सामने आ रहा है। भारत सरकार को अब जागना होगा तथा दोनों परियोजनाओं को लेकर नेपाल सरकार से बात करनी चाहिए।
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