दिल्ली उच्च न्यायालय के एक आदेश से एक बड़ा भ्रम अचानक टूटा है कि अगर हम पीने के लिए बाजार का बोतलबंद पानी इस्तेमाल कर रहे हैं तो पूरी तरह सुरक्षित हैं। दरअसल, पेयजल की शुद्धता को लेकर समूची दिल्ली में जो स्थिति बन चुकी है उसका फायदा उठा कर पानी को छोटी और बड़ी बोतलों में बेचने का धंधा बड़े पैमाने पर पसर गया है। लेकिन शुद्धता के मानकों का कितना पालन होता है यह इसी से समझा जा सकता है कि एक याचिका की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार को बोतलबंद पानी के नाम पर दूषित पेयजल बेचने वालों के खिलाफ तत्काल सख्त कार्रवाई करने के आदेश दिए।
विज्ञान एवं पर्यावरण केंद्र और श्रीराम औद्योगिक शोध संस्थान के अध्ययनों में राजधानी में अनेक जगहों पर ऐसे मामले पाए गए कि दिखने में अच्छी लगने वाली बोतलों में जो पानी बेचा जा रहा था वह निरापद नहीं था। न केवल अवैध रूप से चलाई जा रही इकाइयों, बल्कि कई जगह नामी कंपनियों की बोतलों में भी जो पानी मिला वह दूषित था। खासतौर पर बीस लीटर की बोतलों में जो पानी लोगों को बेचा जा रहा है, वह कई जगहों पर स्थानीय स्तर पर लगाए गए निजी नलकूपों से सीधे निकाला गया होता है और उसे पीने लायक बनाने के लिए जरूरी नियम-कायदों का पालन नहीं किया जाता। जबकि बोतलबंद पानी बाजार में बेचने के लिए उसका शुद्धता के मानकों पर खरा उतरना और भारतीय मानक ब्यूरो का प्रमाणपत्र लेना अनिवार्य है। खाद्य और आपूर्ति विभाग और स्वास्थ्य विभाग पर बाजार में बेचे जा रहे पेयजल की शुद्धता की जांच और निगरानी का जिम्मा है, लेकिन शायद ही कभी इन्हें अपनी यह जिम्मेदारी पूरा करना जरूरी लगा हो।
दिल्ली जल बोर्ड राजधानी के सभी इलाकों में पानी की आपूर्ति कर सकने में सक्षम नहीं है। फिर बहुत सारे इलाकों से दूषित पेयजल की आपूर्ति किए जाने की अक्सर आने वाली शिकायतें बताती हैं कि शुद्धता की कसौटी पर पूरी तरह खरा होने का दावा करने वाले जल बोर्ड के पानी की क्या स्थिति है। दूसरी और, सरकार विज्ञापनों के माध्यम से लोगों को यह सलाह देती है कि वे पीने के लिए सीधे निकाले गए भूजल का उपयोग न करें। नतीजतन पीने के लिए लोग ज्यादा से ज्यादा बोतलबंद, आरओ या एक्वागार्ड जैसे जलशोधक यंत्रों से निकाले गए पानी पर निर्भर होते गए हैं। इस तरह घर हो या बाहर, कभी नैसर्गिक रूप से मिलने वाला पेयजल खरीद-बिक्री का मामला बन गया है।
मोटे आकलन के मुताबिक दिल्ली में बोतलबंद पानी का कारोबार पांच हजार करोड़ रुपए के आसपास पहुंच गया है। वैध तरीके से एक लीटर बोतलबंद पानी की लागत तीन से चार रूपए के बीच आती है। जबकि बाजार में इसकी कीमत बारह से लेकर पंद्रह रुपए या इससे भी ज्यादा वसूली जाती है। विडंबना यह है कि कुछ समय पहले दिल्ली जलबोर्ड ने भी इस व्यवसाय में उतरने का इरादा जताया था। एक लोककल्याणकारी राज्य में पेयजल आपूर्ति के लिए कर वसूलना एक बात है, लेकिन इस मामले में राज्य का संबंधित निकाय एक व्यवसायी की तरह पेश आए यह कैसे स्वीकार्य हो सकता है? दिल्ली सरकार अपने नागरिकों को पीने का साफ पानी मुहैया कराने में नाकाम रही है, यह तथ्य तो पहले से जगजाहिर है। अगर वह बाजार में मिलने वाले पानी पर नजर भी नहीं रख सकती तो समझा जा सकता है कि उसे अपने नागरिकों की कितनी फिक्र है।
विज्ञान एवं पर्यावरण केंद्र और श्रीराम औद्योगिक शोध संस्थान के अध्ययनों में राजधानी में अनेक जगहों पर ऐसे मामले पाए गए कि दिखने में अच्छी लगने वाली बोतलों में जो पानी बेचा जा रहा था वह निरापद नहीं था। न केवल अवैध रूप से चलाई जा रही इकाइयों, बल्कि कई जगह नामी कंपनियों की बोतलों में भी जो पानी मिला वह दूषित था। खासतौर पर बीस लीटर की बोतलों में जो पानी लोगों को बेचा जा रहा है, वह कई जगहों पर स्थानीय स्तर पर लगाए गए निजी नलकूपों से सीधे निकाला गया होता है और उसे पीने लायक बनाने के लिए जरूरी नियम-कायदों का पालन नहीं किया जाता। जबकि बोतलबंद पानी बाजार में बेचने के लिए उसका शुद्धता के मानकों पर खरा उतरना और भारतीय मानक ब्यूरो का प्रमाणपत्र लेना अनिवार्य है। खाद्य और आपूर्ति विभाग और स्वास्थ्य विभाग पर बाजार में बेचे जा रहे पेयजल की शुद्धता की जांच और निगरानी का जिम्मा है, लेकिन शायद ही कभी इन्हें अपनी यह जिम्मेदारी पूरा करना जरूरी लगा हो।
दिल्ली जल बोर्ड राजधानी के सभी इलाकों में पानी की आपूर्ति कर सकने में सक्षम नहीं है। फिर बहुत सारे इलाकों से दूषित पेयजल की आपूर्ति किए जाने की अक्सर आने वाली शिकायतें बताती हैं कि शुद्धता की कसौटी पर पूरी तरह खरा होने का दावा करने वाले जल बोर्ड के पानी की क्या स्थिति है। दूसरी और, सरकार विज्ञापनों के माध्यम से लोगों को यह सलाह देती है कि वे पीने के लिए सीधे निकाले गए भूजल का उपयोग न करें। नतीजतन पीने के लिए लोग ज्यादा से ज्यादा बोतलबंद, आरओ या एक्वागार्ड जैसे जलशोधक यंत्रों से निकाले गए पानी पर निर्भर होते गए हैं। इस तरह घर हो या बाहर, कभी नैसर्गिक रूप से मिलने वाला पेयजल खरीद-बिक्री का मामला बन गया है।
मोटे आकलन के मुताबिक दिल्ली में बोतलबंद पानी का कारोबार पांच हजार करोड़ रुपए के आसपास पहुंच गया है। वैध तरीके से एक लीटर बोतलबंद पानी की लागत तीन से चार रूपए के बीच आती है। जबकि बाजार में इसकी कीमत बारह से लेकर पंद्रह रुपए या इससे भी ज्यादा वसूली जाती है। विडंबना यह है कि कुछ समय पहले दिल्ली जलबोर्ड ने भी इस व्यवसाय में उतरने का इरादा जताया था। एक लोककल्याणकारी राज्य में पेयजल आपूर्ति के लिए कर वसूलना एक बात है, लेकिन इस मामले में राज्य का संबंधित निकाय एक व्यवसायी की तरह पेश आए यह कैसे स्वीकार्य हो सकता है? दिल्ली सरकार अपने नागरिकों को पीने का साफ पानी मुहैया कराने में नाकाम रही है, यह तथ्य तो पहले से जगजाहिर है। अगर वह बाजार में मिलने वाले पानी पर नजर भी नहीं रख सकती तो समझा जा सकता है कि उसे अपने नागरिकों की कितनी फिक्र है।
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