नदी व बाढ़ विशेषज्ञ डॉ. दिनेश कुमार मिश्र ने कहा-तटबंध बांध कर नदियों को नियंत्रित करने के बदले सरकार इसके पानी को निर्बाध रूप से निकासी की व्यवस्था करे। तटबंध पानी की निकासी को प्रभावित करता है। टूटने पर जान-माल की व्यापक क्षति होती है। सीतामढ़ी जिले में बागमती पर सबसे पहला तटबंध बनने से मसहा आलम गाँव प्रभावित हुआ था। उस गाँव के 400 परिवारों को अब तक पुनर्वास का लाभ नहीं मिला है और रुन्नीसैदपुर से शिवनगर तक के 1600 परिवार पुनर्वास के लाभ के लिए भटक रहे हैं।
नेपाल से निकलने वाली बागमती नदी को कई दशकों से बांधा जा रहा है। यह वह बागमती है जिसकी बाढ़ का इंतजार होता रहा है बिहार में वह भी बहुत बेसब्री से। जिस साल समय पर बाढ़ न आए उस साल पूजा पाठ किया जाता एक नहीं कई जिलों में। मुजफ्फरपुर से लेकर दरभंगा, सीतामढ़ी तक। वहां इस बागमती को लेकर भोजपुरी में कहावत है, बाढ़े जियली-सुखाड़े मरली। इसका अर्थ है बाढ़ से जीवन मिलेगा तो सूखे से मौत। नदी और बाढ़ से गाँव वालों का यह रिश्ता विकास की नई अवधारणा से मेल नहीं खा सकता पर वास्तविकता यही है। बागमती नेपाल से बरसात में अपने साथ बहुत उपजाऊँ मिटटी लाती रही है जो बिहार के कई जिलों के किसानों की खुशहाली और संपन्नता की वजह भी रही है। बाढ़ और नई मिट्टी से गाँव में तालाब के किनारे जगह ऊँची होती थी और तालाब भी भर जाता था। इसमे जो बिहार की छोटी-छोटी सहायक नदियां हैं वे बागमती से मिलकर उसे और समृद्ध बनाती रही हैं। पर इस बागमती को टुकड़ो-टुकड़ों में जगह-जगह बाँधा जा रहा है।यह काम काफी पहले से हो रहा है और जहाँ हुआ वहां के गाँव डूबे और कई समस्या पैदा हुई। नदी के दोनों तटों को पक्का कर तटबंध बना देने से एक तो छोटी नदियों का उससे संपर्क खत्म हो गया दूसरे लगातार गाद जमा होने से पानी का दबाव भी बढ़ गया और कई जगह तटबंध टूटने की आशंका भी है। अब यह काम बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में शुरू हुआ तो वहां इसके विरोध में एक आंदोलन खड़ा हो गया है। इस आंदोलन की शुरूआत बीते पंद्रह मार्च को रामवृक्ष बेनीपुरी के गाँव से लगे मुजफ्फरपुर के कटरा प्रखंड के गंगिया गाँव से हुई जिसमें महिलाओं की बड़ी भागेदारी ने लोगों का उत्साह बढ़ा दिया। अस्सी के दशक में गंगा की जमींदारी के खिलाफ आंदोलन छेड़ने वाले संगठन गंगा मुक्ति आंदोलन के प्रमुख नेता अनिल प्रकाश इस अभियान के संचालकों में शामिल हैं और इस सिलसिले में वे बिहार के बाहर के जन संगठनों से संपर्क कर इस आंदोलन को ताकत देने की कवायद में जुटे हैं। अब तक इस अभियान के लिए एक हजार सत्याग्रही तैयार हो चुके हैं।
अनिल प्रकाश ने कहा कि बागमती नदी के तटबंध का निर्माण नहीं रुका तो सिर्फ मुजफ्फरपुर जिले के सौ से ज्यादा गांवों में जल प्रलय होगी और यह सिलसिला कई और जिलों तक जाएगा। बागमती नदी के तटबंध के खिलाफ पिछले एक महीने के दौरान जो सुगबुगाहट थी अब वह आंदोलन में तब्दील होती नजर आ रही है। खास बात यह है कि इस आंदोलन का नेतृत्व वैज्ञानिक और इंजीनियर भी संभाल रहे हैं। इस अभियान के समर्थन में अब एक लाख लोग हस्ताक्षर कर प्रधानमंत्री से दखल देने की अपील करने जा रहे हैं। अनिल प्रकाश के मुताबिक लंबे अध्ययन और बैठकों के बाद 15 मार्च को मुजफ्फरपुर के कटरा प्रखंड के गंगिया स्थित रामदयालू सिंह उच्च विद्यालय परिसर में बागमती पर बांध के निर्माण के विरोध में बिगुल फूंका गया। हजारों की संख्या में प्रभावित परिवारों के लोगों का जमघट लगा।
गायघाट, कटरा, औराई के गाँव-गाँव से उमड़ पड़े बच्चे, बूढ़े, नौजवानों, महिलाओं और स्कूली छात्रों की आँखों में सरकार के विरूद्ध आक्रोश झलक रहा था। इससे पहले नदी विशेषज्ञ डॉ. डीके मिश्र, अनिल प्रकाश, अभियान के संयोजक महेश्वर प्रसाद यादव और मिसाइल और एअर क्राफ्ट वैज्ञानिक मानस बिहारी वर्मा ने इस मुद्दे के विभिन पहलुओं का अध्ययन किया और फिर आंदोलन की जमीन बनी। छह अप्रैल को मुजफ्फरपुर जिले के गायघाट स्थित कल्याणी गाँव की जनसभा से यह अब आंदोलन में तब्दील हो चुका है। अनिल प्रकाश ने आगे कहा- बागमती पर बांध गैर जरूरी व अवैज्ञानिक है। हमें नदी के साथ रहने की आदत है। बांध की कोई जरूरत नहीं है। हमारी लड़ाई अब मुआवजे की नहीं, बल्कि बागमती बांध को रोकने की होगी। गाँव-गाँव में बैठक कर सत्याग्रहियों को भर्ती किया जायेगा। केंद्रीय कमेटी का गठन कर उसके निर्णय के अनुसार आगे की रणनीति तय की जाएगी।

विशेषज्ञ ही नहीं गाँव के लोग भी इस सवाल पर काफी मुखर हैं। भागवतपुर गाँव के सूरत लाल यादव ने कहा- बागमती को बांधा तो जमीन, घर-द्वार सब कुछ चला जाएगा। बाढ़ से नुकसान से ज्यादा लाभ होता है। दो-चार-दस दिन के कष्ट के बाद तो सब कुछ अच्छा ही होता है। जमीन उपजाऊ हो जाती है। पैदावार अधिक हो जाता है। बन्स्घत्ता के रौदी पंडित के मुताबिक बांध बनने से बांध के बाहर की जमीन का दर दो लाख प्रति कट्ठा हो गया है, जबकि भीतर की जमीन 15 हजार रुपये प्रति कट्ठा हो गया है। जबकि गंगिया के रंजन कुमार सिंह ने कहा- अभी हम लोग जमींदार हैं। कल कंगाल हो जाएंगे। बांध के भीतर मेरा 10 एकड़ जमीन आ जाएगा और हम बर्बाद हो जाएंगे। रंजीव का मानना है कि बांध विनाशकारी है। नदियों को खुला छोड़ देना चाहिए। नदियों की पेटी में जमे गाद को निकालने की व्यवस्था हो।
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