बागमती की 2007 की बाढ़

इतनी ज्यादा बारिश, फिर बाढ़ का लम्बे समय तक टिका रहना तथा पानी के रास्ते में पड़ने वाली रुकावटों में इतनी ज्यादा दरारें पड़ने की एक व्याख्या यह हो सकती है कि तटबन्धों, राजमार्गों और ग्रामीण सड़कों में पड़ी दरारों के कारण बाढ़ का पानी एक बड़े इलाके पर फैला और बाढ़ के लेवल में कमी आयी मगर उसके पानी की निकासी में अवरोध इतना अधिक था कि वह पानी निकल नहीं पाया और अपनी जगह पर काफी दिनों तक बना रहा।

इस वर्ष बिहार की बाढ़ ने फिर एक बार पिछले बहुत से रिकार्ड्स को तोड़ा। पहली जुलाई से लेकर 2 अगस्त तक रुक-रुक कर लगातार होने वाली बारिश की वजह से जीवन धारा यहाँ पूरी तरह से ठहर सी गयी। पश्चिमी चम्पारण, सीतामढ़ी, शिवहर, मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर और खगड़िया जिलों के बुजुर्गों के मुताबिक इतनी ज्यादा बारिश और इतने दिनों तक टिके रहने वाली बाढ़ उन लोगों ने कभी नही देखी थी। आश्चर्य की बात यह थी कि इतनी ज्यादा बारिश और बाढ़ के बावजूद उत्तर बिहार की किसी भी नदी का उच्चतम बाढ़ लेवल कहीं भी नहीं दर्ज किया गया। बिहार सरकार के आपदा प्रबन्धन विभाग द्वारा राहत कार्यों के लिए केन्द्र सरकार को दिये गए प्रतिवेदन में इस बात की पुष्टि करते हुए कहा गया कि सोनाखान में बागमती का अब तक का उच्चतम लेवल 70.77 मीटर देखा गया है मगर इस साल वह 69.75 मीटर तक ही पहुँच पाया।

बूढ़ी गंडक, यद्यपि यह नदी रोसेड़ा में हफ्तों खतरे के निशान के ऊपर बहती रही मगर अपने रिकार्ड लेवल 46.35 मीटर को नहीं छू पायी। कमला-बलान का झंझारपुर में उच्चत्तम बाढ़ लेवल 54.34 मीटर रिकार्ड किया गया है मगर यह 53.60 मीटर पर जाकर स्थिर हो गया। भुतही बलान ने मधुबनी जिले के फुलपरास में इस साल कई बार तबाही मचायी मगर उसका एकम्मा के पास बाढ़ का लेवल अपने अब तक के उच्चत्तम लेवल 72.10 मीटर से 1.80 मीटर नीचे ही रह गया। गुआबाड़ी में लालबकेया का सर्वाधिक बाढ़ लेवल 72.84 मीटर देखा गया मगर वहाँ इस साल उसका लेवल 72.42 मीटर तक गया। गांधी घाट पर गंगा का बाढ़ लेवल 50.27 मीटर के मुकाबले 48.15 मीटर पर अटका रहा। इसी तरह पुनपुन अपने 53.91 मीटर के स्तर से श्रीपालपुर में 80 सेन्टीमीटर नीचे बही तो बसुआ में कोसी नदी का स्तर अब तक के देखे गए सर्वाधिक लेवल 48.76 मीटर से 75 सेन्टीमीटर नीचे रह गया। गंडक नदी खड्डा में 96.85 मीटर के उच्चतम लेवल के मुकाबले 95.80 मीटर तक बही।

जब उच्चतम बाढ़ लेवल का यह हाल था तो उम्मीद की जानी चाहिये थी कि बाढ़ से नुकसान अपेक्षाकृत कम हुआ होगा मगर ऐसा नहीं हुआ। इस बाढ़ में इस समय 22 जिलों के 264 प्रखंडों के 12,610 गाँव बाढ़ की चपेट में आये और 2.48 करोड़ जनता बाढ़ में घिरी। इस बाढ़ ने 16.63 लाख हेक्टेयर क्षेत्र पर लगी खड़ी फसल को बर्बाद किया और 7.37 लाख घरों को धराशायी किया। बाढ़ में मारे गए मनुष्यों की संख्या इस साल 960 थी जबकि 1006 पशु इस बाढ़ में काम आये। इस साल बिहार के 3430 किलोमीटर लम्बे तटबन्धों में 32 जगह दरारें पड़ी। इनमें से 7 दरारें बागमती/करेह तटबन्धों में, 14 कमला-बलान पर बने तटबन्धों में, बूढ़ी गंडक में 5, मसान तटबन्ध में तीन स्थानों पर तथा भुतही बलान, खिरोई और कोसी के बदला नगरपाड़ा तटबन्ध में एक-एक स्थान पर दरार पड़ी। राज्य पथों तथा राष्ट्रीय मार्गों में दरारों की संख्या 54 थी तथा ग्रामीण सड़कों में 829 जगहों पर दरारें पड़ी और इन सड़कों में बने 1353 पुल और कलवर्ट ध्वस्त हो गए।

इतनी ज्यादा बारिश, फिर बाढ़ का लम्बे समय तक टिका रहना तथा पानी के रास्ते में पड़ने वाली रुकावटों में इतनी ज्यादा दरारें पड़ने की एक व्याख्या यह हो सकती है कि तटबन्धों, राजमार्गों और ग्रामीण सड़कों में पड़ी दरारों के कारण बाढ़ का पानी एक बड़े इलाके पर फैला और बाढ़ के लेवल में कमी आयी मगर उसके पानी की निकासी में अवरोध इतना अधिक था कि वह पानी निकल नहीं पाया और अपनी जगह पर काफी दिनों तक बना रहा। तब यह जरूरी था कि सरकार बाढ़ के पानी की निकासी की समुचित व्यवस्था करती, टूटे हुए पुलों/कलवर्टों की न सिर्फ मरम्मत करती वरन् उनकी संख्या भी बढ़ाती। बिहार में बाढ़ वाले इलाके में रहने वाला कोई भी व्यक्ति यह बात बड़ी आसानी और विश्वास के साथ कह सकता है कि नदी पर बना हुआ तटबन्ध अगर किसी जगह टूट जाता है तो उस स्थान के नीचे उसका कोई मतलब ही नहीं बचता और उससे मिलने वाली सुरक्षा वहीं ढेर हो जाती है।

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Post By: tridmin
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