पानी में घिरे हुए लोग प्रार्थना नहीं करते
वे पूरे विश्वास से देखते हैं पानी को
और एक दिन
बिना किसी सूचना के
खच्चर या भैंस की पीठ पर
घर-असबाब लादकर
चल देते हैं कहीं और
मुजफ्फरपुर के सिकंदरपुर बाँध के पास रहनेवाले 70 वर्षीय रामधनी साहनी ने कवि केदारनाथ सिंह की यह कविता नहीं पढ़ी है। लेकिन, उन्होंने ठीक यही किया, जब बूढ़ी गंडक उफनाती हुई उनके घर में घुस गयी।
वह माल-असबाब बाँधकर बाँध पर आ गये। बाँध पर खड़े रामधनी शून्य की तरफ देखते हैं और फिर बूढ़ी गंडक की तरफ। आसमान में बादल नहीं है। उन्हें थोड़ी राहत हुई है कि अब बारिश नहीं होगी, तो जलस्तर भी नहीं बढ़ेगा। वह कहते हैं, ‘तीन-चार रोज पहले ही घर में अचानक पानी घुस आया। सभी सो रहे थे। नींद खुली, तो घर में पानी हिलोरे मार रहा था। जितना हो सका, अपना सामान लेकर बाहर निकल गये।’ अभी वह बाँध पर बनी सड़क के किनारे तिरपाल डालकर रह रहे हैं। वह मछली पकड़कर घर चलाते हैं, लेकिन अभी वह भी बंद है। उन्होंने कहा, ‘बेटा बंगाल में नौकरी करता है। वह पैसे भेज देता है। उसी से चूल्हा जलता है।’
ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि रामधनी को घर-बार छोड़कर बाँध पर रात बिताना पड़ रहा है। इससे पहले भी जब-जब बाढ़ आयी, वह बेघर हो गये। साहनी ने कहा, ‘हमारे पास न तो ज्यादा जमीन है और न ही पैसे कि कहीं और घर बना लें। अपनी जमीन यहीं है। हमारे दादा-परदादा यहीं रहा करते थे, इसलिये यहाँ रहना अपनी मजबूरी है।’
50 वर्षीय भोला साहनी भी यहीं रहते हैं। जिस बूढ़ी गंडक से मछलियाँ पकड़कर उन्हें दो जून की रोटी मिलती थी, उसी ने आज उन्हें बेघर कर दिया है। भोला साहनी रुआंसे होकर कहते हैं, ‘दूसरी जगह जमीन लेने जायेंगे, तो महँगी मिलेगी। हमारे पास उतने पैसे कहाँ हैं। इसी बूढ़ी गंडक से मछली पकड़कर दिन गुजारते हैं, लेकिन बाढ़ आने से वह भी बंद हो गया है। घर में जो बचा-खुचा था, उसी से दिन काट रहे हैं।’
बूढ़ी गंडक का जलस्तर बढ़ने के कारण रामधनी और भोला साहनी जैसे सैकड़ों लोगों के लिये सिकंदरपुर बाँध अस्थायी ठिकाना बन गया है। बाँध की दोनों तरफ तिरपाल टांग कर लोग रह रहे हैं। महिलाओं और बच्चों को भी इसी तंबू में दिन-रात गुजारना पड़ रहा है।
बूढ़ी गंडक का पानी इतना बढ़ा हुआ है कि कई पेड़ों की फुनगी ही नजर आ रही है, जिससे आसानी से समझा जा सकता है कि बाढ़ की भयावहता कितनी है। बताया जा रहा है कि बूढ़ी गंडक खतरे के निशान से करीब 80 सेंटीमीटर ऊपर बह रही है।
यहाँ यह भी बता दें कि बूढ़ी गंडक पश्चिम चंपारण से बहती हुई पूर्वी चंपारण, मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर होते हुए खगड़िया जाकर गंगा में मिल जाती है। पूर्वी चंपारण में बूढ़ी गंडक कुछ ज्यादा ही कहर बरपा रही है।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सोमवार को बताया कि इस वक्त बूढ़ी गंडक बिहार के लिये सबसे बड़ी समस्या है क्योंकि इसका पानी घट नहीं रहा है।
राज्य में बाढ़ के कारण सोमवार (21 अगस्त 2017) तक करीब 304 लोगों की मौत हो चुकी है। राज्य के 20 जिलों के करीब 1 करोड़ 30 लाख लोग बुरी तरह प्रभावित हुए हैं।
सरकार की तरफ से राहत सामग्री या मदद नहीं मिलने से कई जगहों से विरोध के स्वर तेज हो रहे हैं। बाढ़ प्रभावितों का आरोप है कि सरकार की ओर से उन्हें किसी भी तरह की कोई मदद नहीं मिल रही है।
मुजफ्फरपुर के बाढ़ प्रभावित लोगों ने भी राज्य सरकार पर अनदेखी का आरोप लगाया है। सिकंदरपुर बाँध के निकट रहने वाले स्थानीय वार्ड अध्यक्ष मुकेश साहनी को भी घर छोड़कर सपरिवार बाँध पर आश्रय लेना पड़ा। वह जदयू से जुड़े हुए हैं। मुकेश साहनी कहते हैं, ‘सरकार की तरफ से हमें किसी भी तरह की कोई मदद नहीं मिल रही है। जब भी मदद माँगी जाती है, तो कोरा आश्वासन ही मिलता है।’
उसी रास्ते हम आगे बढ़ते हुए शेखपुर-जीरो माइल पहुँचते हैं। यहाँ मुख्य सड़क की बायीं तरफ पानी लबालब भरा हुआ है। छोटे मकान पूरी तरह डूब गये हैं। हाँ, बहुमंजिली इमारत का ऊपरी हिस्सा जरूर दिख रहा है। कुछ मकानों के ऊपरी हिस्से में लोग अब भी रह रहे हैं ताकि चोरी-चकारी न हो जाये। यहाँ भी चार-पाँच दिन से पानी भरा हुआ है। काफी ऊँचाई पर बने इक्का-दुक्का मकान ही बचे हुए हैं। इन्हीं मकानों में एक मकान धर्मवीर कुमार का भी है। उनका घर चारों तरफ से पानी से घिरा हुआ है। हम नाव के सहारे उन तक पहुँचे। उन्होंने कहा, ‘खाने-पीने की बहुत दिक्कत हो रही है और उस पर सरकार ने बिजली का कनेक्शन काट दिया है। सरकार ने नाव भी मुहैया नहीं कराया है ताकि लोग यहाँ से वहाँ जा सकें। ट्यूब का नाव बनाकर काम चलाया जा रहा है।’
वह बताते हैं कि अचानक जब पानी भर गया था, तो कोई नाव नहीं था कि लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुँचाया जाता।
धर्मवीर कुमार के मकान के पास ही दारोगा राय का मकान है। पानी उनके मकान से महज दो फीट दूर है। उनके माथे पर चिंता की लकीरें साफ देखी जा सकती हैं। उन्होंने कहा, ‘10 सालों में पहली बार यहाँ इतना पानी आया है। अगर बारिश हुई या जलस्तर बढ़ा, तो हमारे मकान में भी पानी घुस जायेगा। तब हमें भी सड़कों पर ही शरण लेनी पड़ेगी।’ उन्होंने कहा कि सरकार की तरफ से यहाँ नाव तक की व्यवस्था नहीं करायी गयी है। बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं।
45 वर्षीय हरिलाल साहनी अपने बेटे के साथ यहीं नाव चला रहा है और लोगों को उनके घरों से सड़क तक पहुँचाता है। हरिलाल साहनी का घर शेखपुर ढाब में है। उसका घर भी डूब गया है। हरिलाल ट्रक में बालू भरकर दादर के खदान से आहियापुर ले जाता था। उसने कहा, ‘एक महीने से खदान में पानी है जिससे रोजगार ठप है। फांके में दिन गुजर रहे हैं। नाव खेता हूँ, तो कुछ लोग कुछ पैसे दे देते हैं, जिससे दो जून की रोटी मिल जाती है।’
दारोगा राय का कहना है कि शेखपुर को बाढ़ से बचाने के लिये दो जगहों पर बाँध बनाने की जरूरत है।
शेखपुर से थोड़ा आगे बढ़े, तो शहबाजपुर पंचायत आ गयी। इस पंचायत में चार गाँव शहबाजपुर, चकगारी, मुरादपुर दुल्लह, आहियापुर डुब्बा आते हैं। यहाँ के 300 घरों में बाढ़ का पानी घुस गया है। पंचायत की मुखिया नासिरा बानो के पति मो. इनायत ने कहा, ‘5 दिन से घरों में पानी है, लेकिन सरकार की तरफ से किसी भी तरह का सहयोग नहीं मिल रहा है।’
पंचायत की सरपंच मधुमाला देवी के पति बिरजू कार साह कहते हैं, ‘यहाँ तक कि प्रभावित लोगों को सुरक्षित स्थान पर पहुँचाने और सामान निकालने के लिये नाव तक नहीं दी गयी है। 2400 रुपये खर्च कर हम दो नाव लेकर आये हैं, जिनकी मदद से प्रभावितों को सुरक्षित जगहों पर पहुँचाया जा रहा है। हमने सरकार से आर्थिक मदद माँगी, तो उन्होंने कहा कि आप खर्च करिये, हम पेमेंट कर देंगे।’
राज्य सरकार के मुताबिक, संप्रति नेशनल डिजास्टर रिस्पांस फोर्स, स्टेट डिजास्टर रिस्पांस फोर्स और आर्मी के 280 बोट अलग-अलग जगहों पर लगाये गये हैं। राज्य सरकार की विभिन्न एजेंसियों की ओर से मोटर चालित 196 बोट और 2570 नावें चलायी जा रही हैं, लेकिन बड़ी आबादी के बाढ़ से प्रभावित होने के कारण ये बोट नाकाफी हैं। राज्य के प्रधान सचिव (आपदा प्रबंधन) प्रत्यय अमृत ने स्वीकार किया कि कई जिलों में नावों की सख्त जरूरत है।
बहरहाल, हम बात कर रहे थे मुजफ्फरपुर की, तो शरबाजपुर पंचायत के गाँवों की तरह ही बूढ़ी गंडक की चपेट में आये दूसरे गाँवों की भी यही कहानी है। कई गाँवों तक सरकार नहीं पहुँच पायी है। लोग खुद पहलकदमी कर खुद को बचाने के लिये जद्दोजहद कर रहे हैं। कई गाँव ऐसे भी हैं, जहाँ पानी किसी भी वक्त पहुँच सकता है। इन गाँवों को बचाने के लिये भी सरकारी प्रयास दूर-दूर तक नहीं दिखता है।
दादर पंचायत के एक मोहल्ले में जब हम पहुँचे, तो देखा कि पानी मोहल्ले की ओर जानेवाली कच्ची सड़क को छू रही है। स्थानीय लोग पानी को रोकने के लिये बालू और छाई की बोरियाँ कच्ची सड़क पर रख रहे थे। स्थानीय लोगों के अनुसार, तीन-चार दिन पहले अचानक पानी बढ़ने लगा और पगडंडी तक पहुँच गया।
ये लोग पिछले 3-4 दिनों से रतजगा कर रहे हैं ताकि पानी घुसने पर वे खुद को बचा सकें। लोगों ने बताया कि उन तक भी प्रशासन अब तक नहीं पहुँचा है। मोहल्ले में बिजली नहीं है इसलिये रात में लोगों को सांप-बिच्छुओं का डर सताता रहता है। इस डर से निजात पाने और पानी की गतिविधियों पर नजर रखने के लिये वे वेपर लाइट लगवा रहे हैं।
स्थानीय युवक रंजन कुमार ने कहा, ‘मोहल्ले की पगडंडी पर 20 वेपर लाइट लगा रहे हैं। इन्हें रातभर जलाये रखेंगे, ताकि बाढ़ के हालात पर ध्यान रख सकें। लाइट जलाने के लिये जेनरेटर भी भाड़े पर लाये हैं जिसके लिये 3 हजार रुपये खर्च करने पड़े। जेनरेटर तीन दिन के लिये भाड़े पर लिया गया है। बाढ़ की स्थिति देखने के बाद आगे के बारे में सोचा जायेगा।’
इस मोहल्ले में अधिकतर घर घास-फूस के बने हैं और यहाँ के लोग दैनिक मजदूर हैं। लोगों ने बताया कि बाढ़ के कारण काम-धाम भी ठप है, इसलिये आय नहीं हो रही है। पहले से जो अनाज बचाकर रखे थे, उसी से पेट भर रहे हैं। सरकार की तरफ से राहत सामग्री नहीं दी गयी है।
अब हम सीतामढ़ी रोड से निकली एक सड़क जो विजय छपरा बाँध पर बनी थी, उस पर थे। आसमान साफ था। कुछ दूर गये ही थे कि बाँध के किनारे 20-25 साल का एक नौजवान बाँस को रस्सियों से बाँधते दिखा। पूरा शरीर पसीने से तर-ब-तर था। चेहरे पर चिंता साफ झलक रही थी।
नौजवान ने अपना नाम पवन कुमार बताया। पवन छात्र है और बच्चों को पढ़ाता भी है। पवन विजय छपरा के वार्ड 7 में रहता है। छप्पर डालने के लिये दो बाँसों को कसते हुए पवन ने कहा, ‘पुराना बाँध टूटनेवाला है। कभी भी वह टूट जायेगा, इसलिये पहले ही यहाँ अस्थायी निवास के लिये इंतजाम कर रहा हूँ।’ पवन ने घर से सामान निकाल लिया और उसे सड़क पर ही रखा हुआ है।
आगे बढ़ने पर और भी कई लोग मिले, जो सड़क किनारे प्लास्टिक डाल रहे थे। हम जब गाँव में दाखिल हुए, तो वहाँ सचमुच स्थिति नाजुक थी। जहाँ-जहाँ बाँध कमजोर था, वहाँ-वहाँ दर्जनों लोग बालू मिट्टी से भरी बोरियाँ रख रहे थे। लोग युद्धस्तर पर काम कर रहे थे। यह लड़ाई थी। लोग पानी से लड़ रहे थे, बिना किसी सरकारी मदद के। इनमें बच्चे, बूढ़े, जवान सभी शामिल थे।
विजय छपरा के वार्ड 8 के निवासी हरेंदर साहनी बताते हैं, ‘यहाँ चार दिन से लगातार पानी बढ़ रहा है। बाँध में एक जगह तो रिसाव भी होने लगा था जिसे बालू और मिट्टी की बोरियाँ डालकर रोका गया। कई जगहों पर बाँध कमजोर है। वहाँ बोरियाँ डाली जा रही हैं।’ मिट्टी और बालू लाने के लिये तीन ट्रैक्टर भाड़े पर रखा गया है और अब तक ग्रामीण 30 हजार रुपये खर्च कर चुके हैं। ग्रामीणों ने बताया कि वे आपसी चंदे से काम करा रहे हैं।
विजय छपरा में करीब 800 घर हैं और बाढ़ आती है, तो सभी घर चपेट में आयेंगे। यहाँ के लोगों के लिये बाँध को बचा लेना अपने अस्तित्व को बचा लेना है और इसके लिये वे किसी भी हद तक जा सकते हैं।
वार्ड 8 के ही अनिल साहनी अपने निर्माणाधीन घर की तरफ इशारा करते हुए कहते हैं, ‘वो मेरा घर है। उसे पूरा करने के लिये बैंक से रुपये निकाले थे, लेकिन बाढ़ आने के कारण घर का काम रोककर बाँध बचाने में रुपये लगा दिये।’ अनिल दिहारी मजदूर हैं, लेकिन बाढ़ की आशंका से मजदूरी करने नहीं जा रहे हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि यहाँ के मुखिया ने अखबारों में बयान दिया है कि बाँध की मरम्मत के लिये उन्होंने पैसे दे दिये, लेकिन उन्हें एक फूटी कौड़ी नहीं मिली है।
बाढ़ ने पढ़ाई-लिखाई को भी बुरी तरह प्रभावित किया है। कई कॉलेजों में बाढ़ का पानी घुस गया है जिस कारण उन्हें बंद कर दिया गया है। बाढ़ का पानी कब उतरेगा, पता नहीं। अगर पानी उतर भी जाता है, तो कॉलेज की दोबारा मरम्मत करानी पड़ेगी, जिसमें वक्त लगेगा। बाढ़ के कारण कई कॉलेजों में रखे दस्तावेज भी नष्ट हो चुके हैं।
राजनारायण इंटर कॉलेज, खुदीराम बोस स्मारक महाविद्यालय समेत कई कॉलेजों में पानी घुस आया है।
संत प्रेम भिक्षु इंटर कॉलेज के प्राचार्य रवींद्र कुमार सिंह बताते हैं, ‘14 अगस्त की देर रात कॉलेज में पानी घुस गया था। हमें सुबह खबर मिली लेकिन तब तक दस्तावेज़ नष्ट हो गये थे। कॉलेज से कोई भी सामान नहीं निकाल पाया।’
इस कॉलेज में करीब 600 छात्र पढ़ते हैं। बाढ़ आने से कॉलेज में एडमिशन भी बंद है। सिंह ने कहा कि कम से कम एक महीने तक कॉलेज बंद रहेगा और इसके बाद ही दोबारा पढ़ाई शुरू हो पायेगी।
मुज़फ़्फ़रपुर से लौटते हुए जेहन में पवन, हरेंदर, अनिल, रंजन का चेहरा बार-बार सामने आने लगता है। मैं सोचने लगता हूँ, कि वो क्या चीज है, जो इन्हें निहत्थे बाढ़ से लड़ने की ताकत देती है।
सच मानिये, मुझे ये आम लोग नहीं योद्धा लगते हैं, जो तमाम मुश्किलों के बावजूद पूरे दम-खम के साथ मैदान में डटे हुए हैं। वे लड़ रहे हैं। इस लड़ाई में वे जीतेंगे कि हारेंगे यह तो नहीं पता, लेकिन हार-जीत से ज्यादा जरूरी है लड़ना।...और यकीनन, जो अरजा है, उसे बचाने के लिये वे लड़ेंगे, आखिर तक !
Path Alias
/articles/baadha-sae-naihatathae-lada-rahae-laoga
Post By: Hindi