बांस एक अद्भुत निर्माण सामग्री है। वैसे भी अगर किसी गाँव के चारों तरफ घने बांस हों तो ऐसे गाँवों पर नदियों के पानी की सीधी मार पड़ने पर भी नुकसान कम होता है। हेमपुर इसका एक उदाहरण है। भयंकर बाढ़ के समय अगर गाँव बह भी जाये तब भी बांस अपनी जगह खड़ा रहता है। भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में स्थानीय लोगों ने भवन निर्माण के क्षेत्र में बांस का फर्श, छत और दीवारें बनाकर इसका आश्चर्यजनक रूप से उपयोग किया है।
बाढ़ वाले इलाकों में घर आम तौर पर बांस, लकड़ी, पुआल, पानी में उगने वाली बहुत सी लताओं या पौधे, ताड़ और नारियल के पत्ते तथा तने से बनते हैं। कभी-कभी दीवारों और छतों की अन्दरूनी सतह को मिट्टी से पलस्तर कर दिया करते हैं। अगर घर बहते पानी के चपेट में आ जाय तो यह पलस्तर बरसात के बाद दुबारा करना पड़ सकता है। बांस एक अद्भुत निर्माण सामग्री है। वैसे भी अगर किसी गाँव के चारों तरफ घने बांस हों तो ऐसे गाँवों पर नदियों के पानी की सीधी मार पड़ने पर भी नुकसान कम होता है। हेमपुर (अध्याय -4) इसका एक उदाहरण है। भयंकर बाढ़ के समय अगर गाँव बह भी जाये तब भी बांस अपनी जगह खड़ा रहता है। भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में स्थानीय लोगों ने भवन निर्माण के क्षेत्र में बांस का फर्श, छत और दीवारें बनाकर इसका आश्चर्यजनक रूप से उपयोग किया है। पूरे घर को बांस के खम्भे पर टिकाने की कला भी वहाँ आम है। अच्छी-खासी बाढ़ें तो बिना कोई नुकसान पहुँचाये ऐसे घरों के नीचे से निकल जाती हैं।
घरों के अन्दर बांस की ही बनी हुई दुछत्तियाँ अनाज, ईंधन और चारा, सभी कुछ इकट्ठा करके रखने में काम आती हैं। बांस के फर्श पर बालू बिछा कर और जरूरी हिस्से में दीवारों पर मिट्टी से पलस्तर करके घरों के अन्दर बड़े आराम से चूल्हा जलता है। बकरियाँ, सूअर के छौने और मुर्गियाँ तथा बत्तख आदि ऐसे घरों के बरामदे में मस्ती से घूमते मिल जायेंगे। घर का फर्श बांस की झिरीदार चटाई का बना होने के कारण साफ-सफाई को आसान बनाता है। फर्श पर थोड़ा पानी डाल देने से सफाई हो जाती है और पानी फर्श से होकर जमीन पर चला जाता है।
नाव की शक्ल के 4-5 फुट लम्बे और 3-21/2 फुट चौड़े लकड़ी की नाव के शक्ल के प्लेटफॉर्म में बैठ कर मसाला पीसने की व्यवस्था हो जाती है। इस नाव की आकृति की सिल को घरों में प्रयुक्त बांस के खम्भों से बांध दिया जाता है ताकि बाढ़ के समय यह घर से ही बंधी रहे, बाढ़ के पानी पर तैरती रहे और उसमें आवा-जाही में कोई दिक्कत न हो। सारे जरूरी कागजात और गहने आदि बांस की फोंफी में उसी की टोपी लगा कर रख लिए जाते हैं। कहीं-कहीं तो इन बांस की फोंफियों में चावल भी रख कर टांग देते हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि कौटिल्य ने अपने अर्थशास्त्र में बाढ़ का मुकाबला करने के लिए नाव और बांस का ही नाम गिनाया था।
बाढ़ वाले इलाकों में बांस की खेती को प्रोत्साहित करना चाहिये। इससे न केवल गाँवों की बहते पानी से रक्षा होती है बल्कि बाढ़ के बाद क्षतिग्रस्त हुये घरों की मरम्मत करने में भी इसका महत्वपूर्ण योगदान रहता है। ईंधन की कमी को पूरा करने के लिए ऐसी वनस्पतियों या पेड़ों की जरूरत है जो कि लम्बे समय तक पानी की मार झेल सकें।
बाढ़ वाले इलाकों में घर आम तौर पर बांस, लकड़ी, पुआल, पानी में उगने वाली बहुत सी लताओं या पौधे, ताड़ और नारियल के पत्ते तथा तने से बनते हैं। कभी-कभी दीवारों और छतों की अन्दरूनी सतह को मिट्टी से पलस्तर कर दिया करते हैं। अगर घर बहते पानी के चपेट में आ जाय तो यह पलस्तर बरसात के बाद दुबारा करना पड़ सकता है। बांस एक अद्भुत निर्माण सामग्री है। वैसे भी अगर किसी गाँव के चारों तरफ घने बांस हों तो ऐसे गाँवों पर नदियों के पानी की सीधी मार पड़ने पर भी नुकसान कम होता है। हेमपुर (अध्याय -4) इसका एक उदाहरण है। भयंकर बाढ़ के समय अगर गाँव बह भी जाये तब भी बांस अपनी जगह खड़ा रहता है। भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में स्थानीय लोगों ने भवन निर्माण के क्षेत्र में बांस का फर्श, छत और दीवारें बनाकर इसका आश्चर्यजनक रूप से उपयोग किया है। पूरे घर को बांस के खम्भे पर टिकाने की कला भी वहाँ आम है। अच्छी-खासी बाढ़ें तो बिना कोई नुकसान पहुँचाये ऐसे घरों के नीचे से निकल जाती हैं।
घरों के अन्दर बांस की ही बनी हुई दुछत्तियाँ अनाज, ईंधन और चारा, सभी कुछ इकट्ठा करके रखने में काम आती हैं। बांस के फर्श पर बालू बिछा कर और जरूरी हिस्से में दीवारों पर मिट्टी से पलस्तर करके घरों के अन्दर बड़े आराम से चूल्हा जलता है। बकरियाँ, सूअर के छौने और मुर्गियाँ तथा बत्तख आदि ऐसे घरों के बरामदे में मस्ती से घूमते मिल जायेंगे। घर का फर्श बांस की झिरीदार चटाई का बना होने के कारण साफ-सफाई को आसान बनाता है। फर्श पर थोड़ा पानी डाल देने से सफाई हो जाती है और पानी फर्श से होकर जमीन पर चला जाता है।
नाव की शक्ल के 4-5 फुट लम्बे और 3-21/2 फुट चौड़े लकड़ी की नाव के शक्ल के प्लेटफॉर्म में बैठ कर मसाला पीसने की व्यवस्था हो जाती है। इस नाव की आकृति की सिल को घरों में प्रयुक्त बांस के खम्भों से बांध दिया जाता है ताकि बाढ़ के समय यह घर से ही बंधी रहे, बाढ़ के पानी पर तैरती रहे और उसमें आवा-जाही में कोई दिक्कत न हो। सारे जरूरी कागजात और गहने आदि बांस की फोंफी में उसी की टोपी लगा कर रख लिए जाते हैं। कहीं-कहीं तो इन बांस की फोंफियों में चावल भी रख कर टांग देते हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि कौटिल्य ने अपने अर्थशास्त्र में बाढ़ का मुकाबला करने के लिए नाव और बांस का ही नाम गिनाया था।
बाढ़ वाले इलाकों में बांस की खेती को प्रोत्साहित करना चाहिये। इससे न केवल गाँवों की बहते पानी से रक्षा होती है बल्कि बाढ़ के बाद क्षतिग्रस्त हुये घरों की मरम्मत करने में भी इसका महत्वपूर्ण योगदान रहता है। ईंधन की कमी को पूरा करने के लिए ऐसी वनस्पतियों या पेड़ों की जरूरत है जो कि लम्बे समय तक पानी की मार झेल सकें।
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