बाढ़ पर उच्चस्तरीय समिति (नाग समिति) की रिपोर्ट और अब तक की बहस की समाप्ति

हमने पहले उड़ीसा बाढ़ समिति और पटना के बाढ़ सम्मेलन का जिक्र किया है। उसमें उड़ीसा और बिहार के इंजीनियरों के बयानों के कुछ अंश भी दिये गये हैं। पटना सम्मेलन में उत्तर प्रदेश और बंगाल से भी इंजीनियर आये थे। उत्तर प्रदेश के एक सुपरिंटेडिंग इंजीनियर ब्रैडशॉ स्मिथ ने इस सम्मेलन (1937) में कहा था कि “...उत्तर प्रदेश में भी इंजीनियरों की राय नदी (घाघरा) को दोनों तरफ से तटबन्धों में 80 किलोमीटर जितनी दूरी में कैद करने के खि़लाफ है। इसके कुछ कारण तो कैप्टन हॉल ने स्पष्ट किये हैं और कुछ यह है कि वह पानी जो नदी में घुस नहीं पाता उसकी निकासी के लिए क्या किया जाये।” इसी प्रकार असम के बारे में पीटर सालबर्ग (1937) को उद्धृत करते हुये यह कहा गया कि , “...सरकार के संसाधन और इंजीनियरों के बुद्धि-कौशल के संयोग से कैसे (बाढ़) परिस्थिति धीरे-धीरे बदतर होती चली गई और कैसे अच्छे खासे तटबंध सब तरफ बन गये और उसमें भी रेलवे बाँधों ने और भी परेशानी पैदा कर दी।”

उधर बंगाल में इंजीनियर बाढ़ों के मूल में तटबन्धों, सड़कों, रेल लाइनों या ऐसी किसी भी रुकावट को काफी समय से महसूस कर रहे थे। राय बहादुर जी.सी. चटर्जी (1936) का मानना था, “...इस नापाक गठबन्धन में सिंचाई विभाग शामिल है जो कि तटबंध बनाता है पर उसमें समुचित स्लुइस नहीं बनाते, जमींदार हैं जो कि चारों तरफ बाँध बना रहे हैं पर उसमें (जल निकासी के लिए) कभी स्लुइस नहीं बनाते, डिस्ट्रिक्ट बोर्ड है जो कि पानी के फैलाव वाले इलाके में सड़क बना रहा है और रेल कम्पनियाँ शामिल हैं जो कि रेल लाइनें तो बनाती चली जा रही हैं पर उनसे होकर पानी की निकासी का उचित प्रबन्ध नहीं करतीं।”

यह सारे बयान आजादी के कुछ साल पहले के हैं। आजादी के दस साल बाद बलवन्त सिंह नाग की अध्यक्षता में बनी एक उच्च-स्तरीय बाढ़ कमिटी की रिपोर्ट प्रकाशित हुई। 1957 में बाढ़ की यह उच्च स्तरीय समिति क्या कहती है वह जरा गौर करने लायक है-

(i) “...पिछले कुछ दशकों से बंगाल के इन्जीनियर तटबन्धों के खि़लाफ बोलते रहे हैं पर इधर कुछ वर्षों में तटबन्धों के प्रति उनकी शत्रुता में कुछ परिवर्तन आया है।”

(ii) उड़ीसा बाढ़ समिति की रिपोर्ट (1928) के बारे में उपर्युक्त रिपोर्ट कहती है, “...यहाँ यह याद रखना चाहिये कि 1927 में मिस्सीसिपी नदी में भयंकर बाढ़ आई और इसका दोष लोगों द्वारा नदी के दोनों किनारों पर बने तटबन्धों को दिया गया। संभवतः इसी कारण भारत और अन्य देशों में लोगों की राय पर असर पड़ा हो।”

(iii) “...वर्तमान शताब्दी के बीस और तीस के दशक में बिहार में आम राय तटबन्धों के खि़लाफ थी। ऐसा लगता है कि बंगाल के इन्जीनियरों द्वारा तटबन्धों की जबर्दस्त मुखालिफत की यह प्रतिध्वनि थी। ...इधर बिहार में बाढ़ से बचाव के लिये राय तटबन्धों के समर्थन में बदल गई है।”

(iv) “...इस दशक में उत्तर प्रदेश में भी राय तटबन्धों के हक में बनी है और ऐसे बहुत से तटबंध वहाँ हाल में बनाये गये है।”

(v) “...मजूमदार ने संचयन जलाशयों की सिफारिश की थी ...परन्तु बाद में असम में आम राय मजूमदार के समर्थन में कायम नहीं रह पाई। पिछले चार वर्षों में राज्य में तटबन्धों के निर्माण पर बहुत काम हुआ है और अब वहाँ 2240 कि. मी. लम्बे तटबंध हैं।”

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Post By: tridmin
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