बाढ़-नियंत्रण व राहत पर गंभीर विमर्श जरूरी

साफ पेयजल उपलब्धि निश्चय ही एक उच्च प्राथमिकता है व इस दृष्टि से ऊंचे हैंडपंप लगाने, समय पर ब्लीचिंग पाउडर आदि उपलब्ध करवाने की महत्वपूर्ण भूमिका है। शौचालयों की व्यवस्था विशेषकर ऊंचे स्थानों पर करना आवश्यक है। बाढ़-प्रबंधन का संभवत: सबसे महत्वपूर्ण पक्ष बेहतर जल निकासी है, जिससे बाढ़ का पानी शीघ्र निकल जाए व देर तक जल-जमाव से बचा जा सके।

हाल के वर्षों में बाढ़ के विकट होते रूप के साथ अब तक के बाढ़ नियंत्रण उपायों के वास्तविक परिणामों को सही ढंग से समझने की बहुत जरूरत है। इस तरह की समझ बनाकर जो नीतिगत बदलाव जरूरी समझे जाएं उसके लिए सरकार को तैयार रहना चाहिए। जिन क्षेत्रों में ऐतिहासिक तौर पर बाढ़ आती रही है, वहां बाढ़ संबंधी नीति का मुख्य आधार यह होना चाहिए कि बाढ़ के साथ किस तरह रहा जाए, जिससे कोई बड़ी क्षति न हो। नीति का आधार बाढ़ को पूरी तरह रोकना नहीं है अपितु किसी बड़ी क्षति से बचने के ऐसे तौर-तरीके निकालना है जो प्रकृति से बड़ी छेड़छाड़ कर नई समस्याएं न उत्पन्न करें। कम क्षति वाली व शीघ्र निकल जाने वाली बाढ़ को सहा जा सकता है यदि पहले से कृषि, पशुपालन, आवास, स्वास्थ्य, खाद्य व चारे भंडार की रक्षा की पर्याप्त तैयारी है। यदि बाढ़ के पानी का बड़े क्षेत्र में कम क्षति से विस्तार होता है व इसके साथ उपजाऊ मिट्टी-गाद भी बड़े क्षेत्र में फैलती है व पानी शीघ्र निकल भी जाता है, तो इस स्थिति को तेज वेग की विनाशक बाढ़ या अधिक देर तक रहने वाली बाढ़/जल-जमाव से बेहतर मानना चाहिए व बाढ़ संबंधी यह समझ नीति में प्रकट होनी चाहिए।

बाढ़-प्रबंधन व राहत कार्य प्रभावित समुदायों के नजदीकी सहयोग व भागीदारी से होना चाहिए। बाढ़-प्रभावित समुदायों से इस संबंध में चर्चा होनी चाहिए कि कैसी नीतियाँ अपनाई जाएं, जो व्यापक हित में हों व इस पूरे मुद्दे को केवल अपने गांव के आधार पर या तटबंध के इस पार, उस पार के आधार पर न देखा जाए। इस विमर्श में कमजोर वर्ग व महिलाओं पर पर्याप्त ध्यान देने के साथ अनुभवी, बुजुर्ग व्यक्तियों का परामर्श प्राप्त करने का विशेष प्रयास होना चाहिए। बाढ़ का सामना करने के लिए गांवों में आपदा/बाढ़ प्रबंधन समितियों का गठन होना चाहिए। चूंकि बहुत से तटबंध पहले ही बन चुके हैं, अत: नदियों व तटबंधों के बीच फंसे गांवों की बेहद विकट स्थिति को सरकारी मान्यता मिलनी चाहिए। कितने पुरवे, गांव व परिवार इस विकट स्थिति में रह रहे हैं, इसकी सही जानकारी प्राप्त कर सरकार को इन लोगों तक सहायता पहुंचाने व उनकी समस्याएं प्राथमिकता के आधार पर सुलझाने पर विशेष ध्यान देना चाहिए।

बाढ़-प्रभावित क्षेत्रों में खाद्य बैंकों व बीज बैंकों की स्थापना होनी चाहिए। कृषि व संबंधित कार्यों की ऐसी तकनीकों का प्रसार होना चाहिए, जिनका खर्च न्यूनतम है व जो पर्यावरण की क्षति नहीं करती हैं। इस संदर्भ में परंपरागत तौर-तरीकों से बहुत कुछ सीखा जा सकता है, जो बाढ़ की स्थिति को सहने में सदियों से एकत्रित ज्ञान पर आधारित हैं। बाढ़ व जल-जमाव को बेहतर सहने की क्षमता वाले परंपरागत बीजों व किस्मों का संग्रहण व संरक्षण होना चाहिए तथा यह बीज किसानों को व्यापक स्तर पर उपलब्ध होने चाहिए। इनके बारे में जानकारी का प्रसार होना चाहिए। बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं को सुधारना विशेष तौर पर जरूरी है। यहां नियुक्त डॉक्टरों व स्वास्थ्यकर्मियों को बाढ़ व जल-जमाव प्रभावित क्षेत्रों की विशेषकर स्वास्थ्य समस्याओं की बेहतर जानकारी होनी चाहिए। डॉक्टरों व स्वास्थ्यकर्मियों में महिलाओं की संख्या बढ़ानी चाहिए, व स्थानीय समुदायों में भी महिलाओं को स्वास्थ्य-प्रशिक्षण मिलना चाहिए। सरकारी स्कूलों को बेहतर करने व बाल मजदूरी को नियंत्रित करने के प्रयास होने चाहिए। जिन बच्चों के स्कूल बाढ़ जैसे कारणों से छूट गए हैं, उनके लिए ब्रिज कोर्स चला कर या अन्य उपायों से उनकी शिक्षा फिर से जारी करने के प्रयास होने चाहिए।

स्थानीय समुदायों की भागीदारी से विभिन्न बाढ़ प्रभावित गांवों में आवासों की रक्षा के प्रयास होने चाहिए व आवासों की बाढ़ से क्षति होने पर आपदा राहत निधि आदि प्रावधानों के अंतर्गत सहायता शीघ्र मिलनी चाहिए। साफ पेयजल उपलब्धि निश्चय ही एक उच्च प्राथमिकता है व इस दृष्टि से ऊंचे हैंडपंप लगाने, समय पर ब्लीचिंग पाउडर आदि उपलब्ध करवाने की महत्वपूर्ण भूमिका है। शौचालयों की व्यवस्था विशेषकर ऊंचे स्थानों पर करना आवश्यक है। बाढ़-प्रबंधन का संभवत: सबसे महत्वपूर्ण पक्ष बेहतर जल निकासी है, जिससे बाढ़ का पानी शीघ्र निकल जाए व देर तक जल-जमाव से बचा जा सके। सभी विकास व निर्माण कार्यों जैसे सड़क, हाईवे, नहर, रेलवे लाईन, आवास-कालोनी आदि में जल निकासी पर समुचित ध्यान देना चाहिए। पंचायत राज की जल-निकासी में महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है पर इसके लिए आस-पड़ोस के गाँवों के सहयोग से कार्य करना होगा।

आपदा राहत निधि व इससे मिले-जुले प्रावधानों में सुधार होना चाहिए। इनमें स्वच्छता-सेनिटेशन जैसे महत्वपूर्ण पर छूट रहे मुद्दों का समावेश होना चाहिए। अनेक तरह की क्षतिपूर्ति राशि को बढ़ाना चाहिए व भविष्य में कीमत वृद्धि के साथ इसकी वृद्धि भी सुनिश्चित होनी चाहिए। पंचायतों व ग्राम सभाओं की भागीदारी से मॉनीटरिंग होनी चाहिए कि वास्तविक हकदारी वाले जरूरतमंद तक आपदा राहत निधि की सहायता ठीक से व समय पर पहुँचती है कि नहीं। नाव खेने के परंपरागत कार्य से जुड़े समुदायों जैसे मल्लाह व केवट समुदायों को अपनी परंपरागत आजीविका बेहतर करने हेतु प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। सरकार जब उनकी व उनके नावों की सेवा प्राप्त करे तो इसके लिए बेहतर व पर्याप्त भुगतान तुरंत करना चाहिए।

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