औषधीय पौधों से समृद्ध गोमती-गंगा संगम

शंखपुष्पी समेत कई प्रजातियों की हैं जड़ी-बूटियां, गेंदा की खेती का केंद्र है यह स्थान

गोमती नदीगंगा में विलीन होकर अपना अस्तित्व समाप्त करने से पहले भी गोमती मानव जाति को वरदान देकर जाती है। गोमती का यह वरदान यहां दो हजार एकड़ क विशाल क्षेत्र में शंखपुष्पी समेत करीब दर्जन भर जड़ी-बूटियों को मौजूदगी के रूप में देखा जा सकता है। वैसे मौजूदा समय में इस जगह गेंदा के फूलों की खेती बड़े पैमाने पर होती है, जिसकी खपत वाराणसी में शिव की पूजा के लिए होती है।

गोमती-गंगा मिलन स्थल कैथी गांव के नजदीक है। 40-50 साल में मिलन स्थल अपने मूल स्थान से दो किलोमीटर खिसक चुका है। स्थानीय निवासी वल्लभ बताते हैं कि यह सब बालू के अवैध खनन व लखनऊ-दिल्ली में बनने वाली अदूरदर्शी नीतियों के कारण हुआ है। इससे अब कैथी भी संकट में आ गया है। सरकार ने इस स्थान को पर्यटन स्थल घोषित कर सुंदरीकरण के लिए कार्यक्रम तैयार किया है। स्थानीय लोग कहते हैं-200 मीटर घाट का निर्माण कराकर पक्की सीढ़ियां बनाने पर काम चल रहा है। इसमें यहां के लोगों की राय नहीं ली जा रही। कंक्रीट के निर्माण बढ़ने से जड़ी-बूटियों के समक्ष संकट पैदा हो जाएगा।

यहाँ मिलने वाले औषधीय पौधे :


शंखपुष्पी, कंटकारी, ब्राह्मी, गोखरू, रासना, द्रोणपुष्पी, निर्गुण्डी, अनंतमूल, शालिपर्णी, सप्तवर्णी, आक, अपामार्ग, विदारी कंद आदि।

स्थान का महत्व


गोमती-गंगा संगम आदि काल से ऋषि-मुनियों की तपस्थली रहा है। माना जाता है कि मार्कण्डेय ऋषि की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें वरदान दिया। मार्कण्डेय ऋषि की मूर्ति का स्थान शिवलिंग से ऊपर है। इसकी मान्यता द्वादश ज्योतिर्लिंगों के समान है। मार्कण्डेय ऋषि के कारण इस जगह स्थापित मंदिर को मार्कण्डेय महादेव मंदिर कहा जाता है।

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