औराई गोली काण्ड (2001)

बाढ़ राहत का वितरण तो अंचल कार्यालय का काम है, इसमें पुलिस की कहाँ से जरूरत पड़ गयी? कोई बाढ़ सामग्री लूट तो नहीं रहा था, लोग तो बस अपना वाजिब हक मांग रहे थे। धीरे-धीरे लोगों की संख्या 4-5 हजार हो गयी और यह सब के सब लोग बाढ़ पीड़ित ही थे। इन लोगों की अब एक ही मांग थी कि थाने के मुंशी को निलंबित किया जाए और उन पर अमिन्दर साह को बुरी तरह पीटने का मुकदमा चलाया जाए। पुलिस निरंकुश थी। यहाँ थाने के एक नायब दरोगा थे जो अमिन्दर साह का फर्द बयान लेने के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र गए और इधर मुंशी को लगा कि यह बयान उसके खिलाफ जायेगा। वह खिड़की के अन्दर से एक होमगार्ड की राइफल लेकर अंधाधुंध फायरिंग करने लगा।

औराई मुजफ्फरपुर जिले के उत्तर पश्चिमी हिस्से पर स्थित एक प्रखंड है जिसमें सीतामढ़ी जिले से निकल कर बागमती और लखनदेई नदियाँ प्रवेश करती हैं। आज से तीन साल पहले तक बागमती का पानी रुन्नी सैदपुर तक तो तटबन्धों के बीच बहता था मगर उसके नीचे नदी पर तटबन्ध नहीं थे। रुन्नी सैदपुर से आगे तटबन्धों से निकला हुआ बागमती का पानी एक अनियंत्रित तीर की तरह सबसे पहले औराई प्रखंड में घुसता था और उसके बाद निचले इलाके को तबाह करता था। बाढ़ से तबाही इस इलाके के लोगों की नियति थी। बरसात के मौसम में राहत सामग्री के बिना बहुत से परिवारों के लिए जीवन यापन यहाँ मुश्किल हो जाता है मगर उसे पाने के लिए अधिकारियों का भ्रष्टाचार और नकली बाढ़ पीड़ितों की प्रतियोगिता का सामना करना पड़ता है। इसी प्रयास में कभी-कभी प्रशासन और बाढ़ पीड़ित जनता का ऐसा मुकाबला हो जाता है जिस में राहत सामग्री पाने की कीमत जान देकर ही अदा होती है। ऐसी ही एक घटना 6 अगस्त 2001 के दिन औराई के प्रखंड मुख्यालय में घटी। इस गोली काण्ड (2001) की शुरुआत कुछ इस तरह से हुई। 5 अगस्त 2001 के दिन औराई प्रखंड द्वारा स्थानीय हिन्दी मिडिल स्कूल में राहत सामग्री का वितरण किया जाना था जिसकी सूचना लाभार्थी गाँवों को दे दी गयी थी।

उस दिन सुबह धीरे-धीरे स्कूल परिसर में ग्रामीण इकट्ठा होना शुरू हो गए। पहला नम्बर नयागाँव का था और प्रत्येक लाभार्थी परिवार को उस दिन दस किलोग्राम गेहूँ मिलना था। जब बटवारा शुरू हुआ तो गेहूँ बाल्टी से नाप कर दिया जा रहा था। गाँव वालों को लगा कि इस तरह से मिलने वाला गेहूँ 5 से 7 किलोग्राम से ज्यादा नहीं था तो उन्होंने ऐतराज किया। उसी समय वहाँ पास के बिशनपुर गाँव के अमिन्दर साह पहुँचे जिनके गाँव का नम्बर राहत पाने वालों की सूची में उस दिन बाद में आने वाला था। नयागाँव के एक ग्रामीण ने उन्हें गेहूँ नापने वाली बाल्टी पकड़ा कर कहा कि देखो यही इतना मिल रहा है। अमिन्दर साह का कहना है, ‘‘...मुझे लगा कि गेहूँ की मात्रा सचमुच कम है और मैं वह बाल्टी लेकर दिखाने के लिए सामने थाने की ओर चल पड़ा। थाना पहुँचते ही थाने के मुंशी ने मुझे वहीं से पीटना शुरू किया और घसीटते हुए स्कूल में ले गया। वहाँ चबूतरे पर बिठा कर मुझे फिर पीटा। बाद में वह मुझे फिर थाना लाया। फिर जब इस बेवजह पिटाई की खबर फैली तो यहीं रामपुर के एक सज्जन पप्पू बाबू मुझे थाने से छुड़ा कर घर लाये। घर आकर मैं बेहोश हो गया और तब गाँव-घर के लोग लाद कर मुझे प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, औराई ले गए। तीसरे दिन सुबह यानी 7 अगस्त को मुझे कुछ होश आया और इस बीच क्या हुआ मुझे कुछ नहीं मालुम। बाद में सरकारी आदेश के तहत मुझे मुजफ्फरपुर के मेडिकल कॉलेज वाले अस्पताल में भेजा गया जहाँ मैं 15-16 दिन रहा होऊँगा।’’

अमिन्दर साह के साथ जो कुछ होना था वह तो 5 अगस्त को पूरा हो गया पर पुलिस द्वारा असली दंभ और शौर्य का प्रदर्शन 6 अगस्त के लिए बाकी रखा गया था। उस घटना का विवरण देते हैं औराई के पास के गाँव राजखंड के 45 वर्षीय बेचन महतो जो उस दिन अपने घरेलू हैंड पम्प की मरम्मत के लिए कुछ जरूरी साज-सामान खरीदने के लिए औराई आये हुए थे। बेचन महतो पंचायत समिति के सदस्य हैं और दुर्भाग्यवश जब वे मात्र डेढ़ वर्ष के थे तभी जाड़े के समय आग तापने वाली अंगीठी से उनके शरीर का काफी हिस्सा जल गया था। इस दुर्घटना में उनका एक हाथ लगभग बेकार हो गया और उनकी दिनचर्या असामान्य हो गयी। अपने जीवट की इच्छाशक्ति की बदौलत बेचन महतो एक अच्छे सामाजिक कार्यकर्ता और स्थानीय पंचायत समिति के सदस्य बने। वे बताते हैं, ‘‘...यह घटना 6 अगस्त 2001 की है। औराई प्रखंड बाढ़ के पानी में पूरा डूबा हुआ था। औराई में थाने के सामने मध्य विद्यालय है। बाढ़ राहत वितरण के लिए आस-पास के गाँवों के बाढ़ पीड़ितों को वहाँ बुलाया गया था।

4 अगस्त की शाम को ही थाने के पदाधिकारी और प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी आदि ने मिल कर गेहूँ में घपले बाजी कर दी थी। बहुत सा गेहूँ वहाँ से हटा दिया गया था। दूसरे दिन 5 तारीख को जब वितरण शुरू हुआ तब गेहूँ तौल कर नहीं बल्कि बाल्टी से नाप कर दिया जा रहा था। बाल्टी से गेहूँ नापे जाने का स्थानीय लोगों ने विरोध किया। उनका कहना था कि जो घोषित सामग्री है सबको उतनी मिलनी चाहिये। बाल्टी का माप ठीक नहीं होता। इन लोगों ने थाने के मुंशी को इस अनियमितता के बारे में खबर की तो वह कुछ होमगार्ड के जवानों को लेकर वहाँ आया और थोड़ी बातचीत के बाद बिशुनपुर के अमिन्दर साह नाम के व्यक्ति को अंधाधुंद तरीके से पीटने लगा और उसे अधमरा कर दिया फिर उसे गायब कर दिया। शायद उसे औराई में ही छिपा कर कहीं रखा हुआ था। दूसरे दिन 6 तारीख को लोगों में आक्रोश था कि एक तो बाढ़ के चलते लोग भूख से मर रहे हैं, उन्हें खाने को कुछ नहीं मिल रहा है और ऊपर से पुलिस की यह ज्यादती। यह लोग धीरे-धीरे थाने के आस-पास एकत्र होना शुरू हुए। खबर मिली कि अमिन्दर साह औराई अस्पताल में भरती हैं, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र में। उनकी हालत बहुत ही नाजुक थी।

लोगों का कहना था कि बाढ़ राहत का वितरण तो अंचल कार्यालय का काम है, इसमें पुलिस की कहाँ से जरूरत पड़ गयी? कोई बाढ़ सामग्री लूट तो नहीं रहा था, लोग तो बस अपना वाजिब हक मांग रहे थे। धीरे-धीरे लोगों की संख्या 4-5 हजार हो गयी और यह सब के सब लोग बाढ़ पीड़ित ही थे। इन लोगों की अब एक ही मांग थी कि थाने के मुंशी को निलंबित किया जाए और उन पर अमिन्दर साह को बुरी तरह पीटने का मुकदमा चलाया जाए। पुलिस निरंकुश थी। यहाँ थाने के एक नायब दरोगा थे जो अमिन्दर साह का फर्द बयान लेने के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र गए और इधर मुंशी को लगा कि यह बयान उसके खिलाफ जायेगा। वह खिड़की के अन्दर से एक होमगार्ड की राइफल लेकर अंधाधुंध फायरिंग करने लगा। उस समय सुबह का 9-10 बजा होगा। उसके बाद पांच बजे तक न तो कोई एस.पी. और न ही कोई डी.एस.पी. यहाँ आया। शाम को जब यह लोग आये तो यहाँ मरघट जैसा सन्नाटा था। चार लोग फायरिंग में मारे गए थे। मारे जाने वालों में मुहम्मद नदीम नाम का एक किशोर था जो स्कूल से पढ़ कर अपने गाँव सोसौला लौट रहा था। रामनगरा के जिस हरिकिशोर सिंह को सीने पर गोली लगी थी वह भी किशोर ही था। पुलिस का आरोप था कि वह सिपाही की रायफल लेकर भाग रहा था। तीसरे आदमी औराई के ही रफीक मियाँ थे और सत्तन साहनी की मौत इलाज के दौरान अस्पताल में हुई।

करीब 5 बजे हमारे तत्कालीन विधायक गणेश प्रसाद यादव पटना से यहाँ पहुँच गए। उनके आने की खबर जैसे-जैसे लोगों को लगी तो उनका हौसला बढ़ा और वे घरों से बाहर निकलने लगे। उसके बाद नीतीश कुमार, शरद यादव और सुशील कुमार मोदी आये। इन लोगों के आने के बाद जहाँ एक ओर राहत कार्यों में तेजी आयी वहीं दूसरी तरफ प्रशासन की तरफ से बाढ़ पीड़ितों पर मुकदमा चलाने की प्रक्रिया भी तेज हुई। 23 लोग उस समय नामजद अभियुक्त बनाये गए पर गिरफ्तारी अमिन्दर साह किसी की नहीं हुई थी। राज्य स्तर पर इस घटना के विरोध में आन्दोलन हुए और उसमें शरद यादव और सुशील मोदी ने पटना में डाक बंगला चैराहे पर गिरफ्तारी दी थी। सरकार ने डी. पी. माहेश्वरी की निगरानी में एक जांच समिति का गठन किया और आश्वासन दिया कि जब तक यह रिपोर्ट नहीं आ जायेगी तब तक किसी की गिरफ्तारी नहीं होगी। इस समिति के लोग जब यहाँ आये तब उन्होंने न तो किसी घायल से बात की और न ही बाढ़ पीड़ितों से मिलने आये। अपनी मर्जी से उन्होंने अपनी रिपोर्ट में जो कुछ भी लिखा हो उसके बारे में हम लोगों को कुछ मालुम नहीं है। इस रिपोर्ट को अभी तक सरकार ने सार्वजनिक नहीं किया है।

नीतीश कुमार भी इस आन्दोलन में शामिल हुए थे मगर अब उनकी सरकार है और अभी भी मुकदमा वापस लेने की बात कौन कहे, उलटे अभियुक्तों की सूची बड़ी करने का काम जारी है। गणेश प्रसाद यादव ने इस अनियमितता के विरुद्ध कलक्टर और एस.पी. का घेराव किया और तब इन लोगों ने आश्वासन दिया कि जब तक सरकार का आदेश नहीं होगा किसी की गिरफ्तारी नहीं होगी। नामजद अभियुक्तों के अलावा 4-5 हजार की भीड़ के अनाम व्यक्तियों पर भी मुकदमा दायर किया गया है। इधर हाल में मार्च 2010 में अभियुक्तों की सूची में 56 लोगों के नाम और भी जोड़े गए हैं। इनमें से अधिकांश लोग सामाजिक सरोकार रखने वाले या राजनैतिक कार्यकर्ता हैं। इससे सरकार को यह फायदा होगा कि वह कह सकती है कि यह प्रतिरोध गरीबों का प्रतिरोध न होकर राजनीति से प्रेरित है और अपनी जरूरत पर इन लोगों को परेशान कर सकती है, जो लोग मारे गए उनके परिवार वालों को एक-एक लाख रुपया नकद अनुदान मिला, इन्दिरा आवास तथा एक-एक हैण्डपम्प भी सरकार की तरफ से दिया गया। घायलों को दस-दस हजार रुपये की अनुग्रह राशि दी गयी थी। मृतकों के परिवारों में एक व्यक्ति को सरकारी नौकरी देने की भी बात थी मगर अब इधर अनुदान की रकम वापस करने के लिए रिकवरी नोटिस लोगों के पास आ रहा है तो नौकरी का सवाल कौन उठायेगा? यह अनुदान तो एफ.आइ.आर. के बाद लोगों को दिया गया था। सरकार अगर समझती है कि अभियुक्तों को अनुदान नहीं दिया जाना चाहिये तो उसे उसी समय अनुदान नहीं देना चाहिये था। अनुदान देकर वापस लेना कहाँ की अकलमन्दी है? गणेश प्रसाद यादव के नेतृत्व में इसके खिलाफ भी आन्दोलन हुआ तो मामला अभी दब गया है मगर खत्म नहीं हुआ है। अभियुक्तों पर जितनी भी कड़ी से कड़ी दफाएं लगाई जा सकती हैं, सब लगी हैं जिनमें दफा 307 (जान से से मारने की कोशिश) भी शामिल है। इसके अलावा जो धाराएं लगाई गईं वह 447/448/331/332/427/436/364 हैं और आर्म्स ऐक्ट 27 के तहत भी धाराएं लगाई गयी हैं। हम लोगों पर थाने में आग लगाने का भी अभियोग लगा था।

मैं उस दिन अपने हैण्डपम्प के लिए कुछ सामान लेने औराई गया हुआ था। वहाँ जो भीड़-भाड़ देखी तो पता लगाना चाहा कि हुआ क्या है? जब तक कुछ पता लगे तब तक तो पुलिस का यह काण्ड ही हो गया। भगदड़ मच गयी, जो जहाँ था वहीं चिड़िया की तरह दुबक कर छिप गया। मैं नहीं जानता कि पुलिस ने मुझे औराई में उस दिन देखा था या नहीं पर क्योंकि हम लोग गणेश प्रसाद यादव का साथ देते हैं, इसलिए हमारा नाम इसमें डाला गया। जब शरद यादव, नीतीश कुमार और सुशील कुमार मोदी यहाँ आये थे तब यहाँ के एस.पी. और डी.एस.पी. ने हम लोगों का नाम डलवाया क्योंकि पुलिस की ज्यादती के बारे में हम लोगों ने इन नेताओं को बताया था। हम लोगों का नाम अभियुक्तों की सूची में डालने का एक कारण और भी था। कुछ दिन पहले यहाँ पूरब के एक गाँव साही मीनापुर में एक अपराधी मारा गया था जिसको लेकर इन्हीं पुलिस अधिकारियों ने गाँव वालों को बहुत परेशान किया हुआ था जिसका हम लोगों ने मुखर विरोध किया था। तभी से हम लोग पुलिस की नजरों में चढ़े हुए थे। औराई की इस घटना ने पुलिस को हमसे हिसाब-किताब बराबर करने का एक मौका दे दिया। थाने के मुंशी को उस समय जरूर बर्खास्त कर दिया गया था मगर सुनते हैं कि बाद में वह कोर्ट चला गया और उसकी बर्खास्तगी वापस ले ली गयी। यहाँ के थाने के पूरे स्टाफ का रातों रात तबादला कर दिया गया था। बाद में अभियुक्तों की सूची में 56 लोगों का नाम और जोड़ा गया जिसमें गणेश बाबू के भाई और भतीजे का भी नाम शामिल है।’’

फायरिंग में एक व्यक्ति, जो रायफल छीन कर भाग रहा था, को गोली लगी और उसे थाना गेट के पास गिरते देखा गया लेकिन उपद्रवी थाने के मुंशी को घसीटते हुए थाना परिसर के बाहर ले गए। इस बार फिर पुलिस ने अपने साथी और थाने की सम्पत्ति की रक्षा के लिए गोली चलायी और उपद्रवी एक-एक कर गिरते चले गए। कुछ पश्चिम की ओर भागने लगे। इस तरह से आम जनता और पुलिस द्वारा घटना की जानकारी का पक्ष पूरा होता है। इसके बाद तो भगदड़ मच गयी और चारों तरफ सन्नाटा छा गया। तब पुलिस मारे गए लोगों की तलाश में थाने से बाहर निकली और घायलों को अस्पताल भिजवाया।

पुलिस ने थाने में अपनी जो प्राथमिक सूचना रिपोर्ट (संख्या 60/2001) लिखायी उसमें कहा गया कि गेहूँ वितरण शान्तिपूर्ण ढंग से हो रहा था कि करीब 10 बजे उक्त विद्यालय में शोर गुल होने लगा। पता चला कि एक व्यक्ति, जो राहत का गेहूँ लेने वालों में से ही था, गेहूँ वितरण में प्रयुक्त बाल्टी को छीन कर भागने लगा जिस कारण अन्य लोगों ने उस व्यक्ति को पकड़ लिया। आरक्षी दीनानाथ सिंह शोर-गुल सुन कर स्कूल में गए और लोगों द्वारा मार-पीट होने से उस व्यक्ति को बचाव हेतु थाने पर लेते आये, इसके बाद विधि व्यवस्था संचालन हेतु पुलिस सशस्त्र बल के साथ हिन्दी स्कूल गयी। थाना वापस आकर इन्सपेक्टर ने पकड़ कर लाये गए व्यक्ति का नाम-पता पूछा जिसने अपना नाम अमिन्दर साह पेसर स्वर्गीय फकीरा साह साकिन बिशुनपुर थाना औराई बताया। 6 अगस्त की सुबह गुप्त सूचना मिली कि मुंशी के विरुद्ध ग्रामीण लोग गोलबन्द हो रहे हैं तथा अमिन्दर साह और अन्य ग्रामीण थाने का घेराव करने वाले हैं। इसकी सूचना स्थानीय पुलिस ने तत्काल वरीय पदाधिकारियों को दे दी। इस बीच करीब 11 बजे भीड़ की संख्या 3-4 हजार हो गयी। पुलिस के अनुसार भीड़ में बहुत से लोग अस्त्र रखे हुए थे तथा हथियार हवा में लहरा रहे थे। भीड़ पुलिस के विरुद्ध नारा लगाते हुए यह कहने लगी कि मुंशी को हमारे हवाले करो, जान मार कर बदला लेंगे। 9 बजे दिन के आस-पास एकत्रित भीड़ उग्र हो गयी और थाने पर ईंट-पत्थर से पथराव करने लगी।

इन्सपेक्टर ने एकत्रित भीड़ को नाजायज मजमा घोषित करते हुए एकत्रित भीड़ को चेतावनी दी कि यह मजमा नाजायज है और सभी अपने-अपने घर वापस जायें। नाजायज मजमें में शामिल लोग थाना परिसर में घुस गए और ईंट-पत्थर चलाने लगे। पुलिस बल द्वारा भीड़ को थाने के बाहर करने के बावजूद वे लोग परिसर के अन्दर चले आये। लोग टूट पड़े और ईंट-पत्थर चलाते हुए एवं हाथ में लुआठी लिये हुए घुसते चले आये। इस पर पुलिस ने अपने जवानों को लाठी चार्ज करने का आदेश दिया। आदेश पा कर जवानों ने हलका लाठी चार्ज करके नाजायज मजमें को थाना परिसर के गेट से बाहर कर दिया जिस पर लोगों ने भीड़ को ललकार कर पुलिस पर हमला बोला। इसी बीच नाजायज मजमें से उपस्थित एक जत्था थाने के पश्चिम तरफ से बांस के बैरियर को तोड़ते हुए थाना परिसर में प्रवेश कर गया। उसमें कुछ लोग आग्नेयास्त्र लिये हुए थे जिससे उन्होंने तीन राउण्ड फायर किया और थाने में घुस कर तोड़ फोड़ करने लगे। उपद्रवियों का दूसरा जत्था पूरब पश्चिम का बैरियर तोड़ते हुए थाना परिसर में घुसा तथा कुछ लोगों ने मुख्य गेट से घुसते हुए पुलिस पर हमला कर दिया।

इन्सपेक्टर ने पहले किसी तरह जान बचाते हुए अपने जवानों को सुरक्षित स्थान पर पोजीशन लेने का आदेश दिया। आरक्षियों को अपनी सरकारी राइफल से 5-5 राउण्ड आसमानी फायर करने का आदेश दिया। इसी बीच उपद्रवियों ने थाने के बरामदे के पश्चिम तरफ छप्पर में लुआठी से आग लगा दी। वितन्तु कक्ष और आरक्षी के कार्यालय में घुस कर तोड़-फोड़ की एवं आग लगाना शुरू कर दिया। कुछ उपद्रवियों ने इन्सपेक्टर के चैम्बर में घुस कर कुर्सी में आग लगा दी तथा वहाँ थाने के मुंशी दीना नाथ सिंह, जो छुपा हुआ था, के साथ मार-पीट करने लगे तथा उसे घसीटते हुए कक्ष से बाहरी परिसर में जाने लगे। वे कह रहे थे कि साले पर पेट्रोल छिड़क कर जिन्दा जला दो। उपद्रवियों ने एक आरक्षी को पीछे से पकड़ लिया तथा दूसरा उपद्रवी उसकी रायफल छीन कर भागने लगा। इस पर इस बार तीन पुलिस वालों को 5-5 राउण्ड गोली चलाने का आदेश दिया गया। फायरिंग में एक व्यक्ति, जो रायफल छीन कर भाग रहा था, को गोली लगी और उसे थाना गेट के पास गिरते देखा गया लेकिन उपद्रवी थाने के मुंशी को घसीटते हुए थाना परिसर के बाहर ले गए। इस बार फिर पुलिस ने अपने साथी और थाने की सम्पत्ति की रक्षा के लिए गोली चलायी और उपद्रवी एक-एक कर गिरते चले गए। कुछ पश्चिम की ओर भागने लगे। इस तरह से आम जनता और पुलिस द्वारा घटना की जानकारी का पक्ष पूरा होता है। इसके बाद तो भगदड़ मच गयी और चारों तरफ सन्नाटा छा गया। तब पुलिस मारे गए लोगों की तलाश में थाने से बाहर निकली और घायलों को अस्पताल भिजवाया। उसने बेचन महतो समेत 23 नामजद लोगों के खिलाफ तथा 3 से 4 हजार अनजान लोगों के खिलाफ पुलिस की रायफल छीनने, उस पर जानलेवा हमला करने, थाने में आग लगाने, सरकारी सम्पत्ति को नुकसान पहुँचाने, थाना मुंशी को घसीट कर जान से मारने के लिए ले जाने तथा आर्म्स ऐक्ट की धारा 27 के अन्तर्गत मुकदमें दायर किये।

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