ईंटों की अधिक माँग होने से शहरों और गाँवों के आस-पास स्थित हजारों ईंट-भट्टों के कारखाने चल रहे हैं। लेकिन इनके नजदीक रहने वाले अधिकांश लोगों को यह मालूम नहीं कि इन ईंट-भट्टों से निकल रहे धुएँ से न केवल उनका बल्कि उनके पालतू घरेलू मवेशियों (गाय-भैंस, भेड़-बकरी, घोड़े-गधे, ऊँट इत्यादि) के स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ रहा है। अक्सर इसका पता इन्हें तब चलता है जब इनके मवेशी कमजोर व सुस्त पड़ने के साथ-साथ धीर-धीरे लंगड़ा कर चलने लगते हैं। इसकी वजह इन ईंट-भट्टों से निकल रहे धुएँ में मौजूद फ्लोराइड रसायन है।
इस फ्लोराइडयुक्त धुएँ से बार-बार अथवा लम्बे समय तक सम्पर्क में रहने से इन मवेशियों के पैरों की हड्डियों व जोड़ों में तथा इनसे जुड़ी मांसपेशियों में जकड़न विकसित होने लग जाती है जिससे ये पशु न तो ठीक से चल-फिर सकते हैं और न ही उठ-बैठ पाते हैं। फ्लोराइड के दुष्प्रभाव से इनके दाँत भी बदरंग व कमजोर होकर कम आयु में ही गिर जाते हैं। इससे भोजन (चारा, घास, कड़ब इत्यादि) ठीक से न चबा सकने के कारण ये पशु अक्सर जल्द मर जातें हैं। इससे पशुपालक व किसान को भारी आर्थिक नुकसान होता है। फ्लोराइडयुक्त धुएँ से पशुओं में आई विभिन्न प्रकार की शारीरिक विकार अथवा विकृतियाँ ‘नेबरहुड-फ्लोरोसिस’ कहलाती है।
देश में सिर्फ ईंट-भट्टे ही नहीं, बल्कि पत्थर के कोयले से चलने वाला हर कल-कारखाना यहाँ तक कि घरेलू भट्टी व सिगड़ी भी फ्लोराइडयुक्त धुआँ आसपास के वातावरण में छोड़ती है। पत्थर के कोयलों से संचालित बिजली उत्पादन करने वाले थर्मल पावर प्लांट्स भी फ्लोराइडयुक्त धुआँ आसपास के वायुमंडल में निरन्तर छोड़ते रहते हैं लेकिन इसकी जानकारी आमजन में बिलकुल नहीं है।
डब्ल्यूएचओ के अनुसार स्टील, आयरन, एल्युमिनियम, जिंक, फॉस्फोरस, केमिकल फर्टिलाइजर्स, ब्रिक्स, ग्लास, सीमेंट, प्लास्टिक व हाइड्रोफ्लोरिक एसिड के निर्माण करने वाले ऐसे उद्योग-कारखाने हैं जो अपने धुएँ के साथ-साथ फ्लोराइड को भी गैस व कणों के रूप में वायुमंडल में उत्सर्जित करते हैं।
यह फ्लोराइडयुक्त धुआँ इन कारखानों के आसपास के क्षेत्रों में कई किलोमीटर की परिधि में लगातार फैलता और पसरता रहता है। इस धुएँ का फैलाव स्थानीय वायुमंडलीय दाब, तापक्रम और हवा की गति व दिशा तथा इन कारखानों की चिमनियों की ऊँचाई पर निर्भर करता है। सर्दी में रात्रि व सुबह के वक्त यह फ्लोराइडयुक्त धुआँ विषैले स्मॉग में बदल जाता है जो मानव एवं पशु दोनों के स्वास्थ्य के लिये बेहद खतरनाक होता है।
औद्योगिक फ्लोराइड प्रदूषण से न केवल वायुमंडल प्रदूषित होता है बल्कि इनके आसपास की मिट्टी, जलस्रोत, विभिन्न प्रजाति की पेड़ पौधे व वनस्पतियाँ तथा फसलें भी फ्लोराइड से दूषित हो जाती है। शोध अध्ययनों से पता चलता है कि इस विषैले फ्लोराइडयुक्त धुएँ से पर्यावरण में स्थित जैवविविधता व वन्य जीव भी दुष्प्रभावित होते हैं।
पारिस्थितिक तंत्र में मौजूद विभिन्न भोजन शृंखलाओं में फ्लोराइड प्रवेश कर जाने से यह मनुष्यों व पशुओं के शरीर में भी आसानी से प्रवेश कर जाता है। परन्तु मनुष्यों में औद्योगिक फ्लोराइड साँसों के जरिए वहीं मवेशियों में यह फ्लोराइडयुक्त भोजन (घास-पत्तियाँ) व साँसों दोनों द्वारा प्रवेश करता है। इसीलिये पशुओं में नेबरहुड-फ्लोरोसिस मनुष्यों की तुलनात्मक तेजी से विकसित होती है।
देश में 215 से भी अधिक थर्मल पावर स्टेशन ऐसे हैं जिनमें बिजली उत्पादन हेतु प्रतिवर्ष लाखों टन पत्थर का कोयला जलाया जाता है और इससे निकली हजारों टन फ्लाई ऐश कचरे को यार्ड में डाल दिया जाता है। शोध अध्ययन बताते हैं कि फ्लाई ऐश में मौजूद फ्लोराइड लीचिंग द्वारा यह विभिन्न जलस्रोतों में घुल मिल जाता है जिसकी मात्रा निर्धारित मानकों से कई गुना अधिक आँकी गई है।
यदि मवेशी इस फ्लोराइडयुक्त पानी को बार-बार पीने लगे तो इनमें ‘हाइड्रोफ्लोरोसिस’ तेजी से पनप जाती है। जो पशुओं को लंगड़ा तो बनाती ही है लेकिन इनमें बाँझपन, मृत बछड़े होना, प्रजनन में कठिनाई जैसे विकार भी जल्दी से विकसित होने लग जाते हैं।
फ्लोराइड के दुष्प्रभाव से पशुओं में दूध देने की क्षमता भी घट जाती है वही दूसरी ओर इससे पशु की मांसपेशियाँ कमजोर पड़ने से मांस का उत्पादन भी कम हो जाता है जिससे पशुपालकों को आर्थिक स्थिति और कमजोर होने लगती है। इस नुकसान से बचने के लिये पशुपालक अपने पशुओं को इन फैक्टरियों से जहाँ तक हो सके इनसे दूर रखना चाहिए व इनके आसपास की घास को भी नहीं चरने देना चाहिए। इन फैक्टरियों के आसपास स्थित जलाशयों का पानी अक्सर फ्लोराइड से दूषित होता है ऐसे पानी को भूलकर भी पशु को नहीं पिलाना चाहिए।
स्वास्थ्य व पर्यावरण दोनों के लिये खतरा होने के बावजूद वर्तमान में केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड व पर्यावरण एवं वन विभाग ने फ्लोराइड को अपने प्रदूषक मानकों में शामिल नहीं कर रखा है। इसी वजह से औद्योगिक प्रबन्धन फ्लोराइड प्रदूषण की अनदेखी व अपनी मनमानी करते हैं। प्रबन्धन चाहे तो अपनी फैक्टरियों में उच्च गुणवत्ता के फिल्टर लगाकर इस औद्योगिक फ्लोराइड प्रदूषण को रोक सकते हैं। यदि केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड अपनी खतरनाक वायु प्रदूषकों की सूची में फ्लोराइड प्रदूषक को भी शामिल कर दें तो औद्योगिक फ्लोराइड प्रदूषण करने वालों पर कानूनी अंकुश लगाया जा सकता है।
(लेखक अन्तरराष्ट्रीय फ्लोराइड जर्नल के क्षेत्रीय सम्पादक हैं)
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