औद्योगिक इकाइयों का कहर, पानी की घूंट घूंट में जनता पी रही ज़हर

औद्योगिक इकाइयों का कहर, पानी की घूंट घूंट में जनता पी रही ज़हर
औद्योगिक इकाइयों का कहर, पानी की घूंट घूंट में जनता पी रही ज़हर

पृथ्वी का 71 प्रतिशत भूभाग पानी से भरा है, जिसमें से 96.5 प्रतिशत समुद्री जल है, जबकि शेष जल ग्लेशियर, बर्फ, नदी, तालाब सहित अन्य स्रोतों के रूप में धरती पर उपलब्ध है। इसमे से केवल 0.6 प्रतिशत जल ही पीने योग्य है, जो नदियों, झीलों, तालाबों और अन्य जल निकायों से प्राप्त होता है। देश की 130 करोड़ आबादी अपनी प्यास इसी जल से बुझाती है। साथ ही अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति भी करती है। करोड़ों लोगों का रोजगार भी अप्रत्यक्ष रूप से जल पर भी निर्भर है, लेकिन औद्योगिक प्रदूषण की भेंट चढ़ने के कारण नदियों सहित अन्य जल स्रोत प्रदूषित होते जा रहे हैं। ऐसे में भीषण जल संकट से गुजर रहे देश के सामने जल संकट त्रासदी बन रहा है। इसका ज़िक्र केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के एक अध्ययन में भी कया गया है।

जल जीवन का आधार है, लेकिन उद्योगों के कारण जल स्रोत इस हद तक प्रदूषित हो गए हैं, कि जल के अस्तित्व पर ही संकट के बादल मंडराने लगे हैं। सबसे बुरा हाल हरियाणा, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश और गुजरात का है, जहां अधिकांश औद्योगिक इकाइयां मानकों का पालन नहीं कर रही हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार 2743 औद्योगिक इकाइयांहैं, जिनमें से 2497 औद्योगिक इकाइयां ही संचालित की जा रही हैं। अन्यों ने अपना संचालन खुद ही बंद कर दिया है, लेकिन गुजरात की 87 प्रतिशत, पंजाब की 60 प्रतिशत, अंडमान और निकोबार तथा छत्तीसगढ़ की 50-50 प्रतिशत, अरुणाचल प्रदेश और पश्चिम बंगाल की 29-29 प्रतिशत, गुजरात की 22 प्रतिशत, उत्तराखंड की 16 प्रतिशत, जम्मू कश्मीर और केरल की 4-4 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश की 12 प्रतिशत, आंध्र प्रदेश और हरियाणा की दो-दो प्रतिशत औद्योगिक इकाइयां नियमों का पालन कर रही हैं। तो वहीं तेलंगाना की एक, मध्य प्रदेश की दो, पुडुच में तीन, दिल्ली में तीन, महाराष्ट्र में चार कनार्टक में चार, उड़ीसा में 6, बिहार में 50 औद्योगिक इकाइयां गंभीर रूप से प्रदूषण फैला रही हैं, जबकि हरियाणा में 98 प्रतिशत, आंध्र प्रदेश में 2 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश में 88 प्रतिशत, केरल और जम्मू कश्मीर में 96 प्रतिशत, उत्तराखंड में 84 प्रतिशत, गुजरात में 78 प्रतिशत, पश्चिम बंगाल में 71 प्रतिशत, छत्तीगढ़ और अंडमान निकोबार में 50 प्रतिशत, पंजाब में 60 प्रतिशत और झारखंड में 13 प्रतिशत औद्योगिक इकाइयां गंभीर रूप से प्रदूषण फैला रही हैं।

अध्ययन में बताया गया है कि वर्ष 2011 से 2018 के गंभीर रूप से प्रदूषण फैलाने वाली औद्योगिक ईकाइयों की संख्या में 136 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। साथ ही देश के 17 प्रतिशत जल निकाय गंभीर रूप से प्रदूषित हो चुके हैं और देश की 323 नदियों के 351 हिस्से भी प्रदूषित हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने भी अपनी रिपोर्ट में माना है कि जल स्रोतों के प्रदूषित होने की मुख्य वजह औद्योगिक इकाइयां ही हैं। इन ईकाइयों की संख्या काफी तेजी बढ़ भी रही है, लेकिन अफसोस की बात है कि देश में नदियों के संरक्षण की बात तो हो रही है, परंतु नियमों का उल्लंखन करने वाली ईकाइयों के खिलाफ कार्रवाई होती नहीं दिख रही है। नजीजतन, अधिकांश ईकाइयों का कचरा शोधन किए बिना ही जल स्रोतों में बहा दिया जाता है। प्रदूषण फैलाने वाली कुल ईकाइयों में 84 प्रतिशत इकाइयां उत्तर प्रदेश, हरियाणा, आंध्र प्रदेश और गुजरात में मौजूद हैं। 

लेख - हिमांशु भट्ट

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