अस्पताल में पानी के नाम पर जहर

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भागलपुर। चौंकिये नहीं! यह भागलपुर प्रमण्डल का इकलौता जवाहरलाल नेहरू मेडिकल काॅलेज अस्पताल है। यहाँ सिर्फ भागलपुर ही नहीं बल्कि पड़ोसी जिले सहरसा, पूर्णिया, मधेपुरा के साथ पड़ोसी राज्य झारखंड के लोग भी इलाज के लिए आते हैं। यहाँ पानी के नाम पर जहर पी रहें हैं लोग।

प्रमण्डल के इस अस्पताल का आलम यह है कि रोजाना तकरीवन छः सौ मरीज भर्ती रहते है और उनके एक हजार परिजन रहते हैं। इस अस्पताल में लोक स्वास्थ्य अभियन्त्रण विभाग द्वारा पेयजल की आपूर्ति की जाती है। इस पानी में फ्लोराइड की मात्रा 4.1 है। इसकी सामान्य मात्रा 1.4 है। सामान्य मात्रा से स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है।

यहाँ मरीज सेहत ठीक करने के लिए आते हैं, लेकिन उनकी सेहत की चिन्ता किसी को नहीं है। मरीज भी इन खतरों से बेखबर हैं। लोक स्वास्थ्य अभियन्त्रण विभाग ने यहाँ के पानी की जाँच की तो पता चला कि पानी में फ्लोराइड की मात्रा अधिक है। इस पानी के सेवन से मरीजों में निःशक्तता, चर्मरोग तथा अनेक प्रकार की बिमारी लेकर घर जा रहे हैं। आलम यह है कि यहाँ टंकी की वर्षों से सफाई नहीं हुई है। न ही टंकी में ढक्कन है।

विभाग ने अस्पताल प्रबन्धन को पत्र लिखकर फ्लोराइड की मात्रा कम करने के लिए संयत्र लगाने को कहा है। अस्पताल के अधीक्षक डाॅ आर.सी मण्डल के अनुसार लोक स्वास्थ्य अभियन्त्रण विभाग को पत्र लिखा गया है कि पेयजल में फ्लोराइड की मात्रा कम करने के लिए आरओ सिस्टम लगाएँ। इसके लिए प्राक्कलन बनाकर दें, अस्पताल प्रबन्धन राशि देने के लिए तैयार है। हैरत की बात तो यह है कि अस्पताल के प्रभारी डाॅ संजय कुमार इन बातों से बेखबर हैं। उनका कहना हैं हमें जानकारी नहीं थी। पानी की टंकी की सफाई करा देंगे और ढक्कन लगवा देंगे।

चर्म रोग विशेषज्ञ डाॅ शंकर कुमार बताते हैं कि छह सौ मरीजों की तुलना पर चार आरओ सिस्सटम लगाए गए हैं। यह काफी कम है। आपातकाल कक्ष के ट्रामा वार्ड, मेडिसीन विभाग में आरओ सिस्टम लगाए गए हैं। सदर अस्पताल में भी एक आरओ सिस्टम लगाया गया, वह खराब हो गया। तात्कालिक तौर पर एक-एक इंडोर वार्ड में लगाया गया है। ओपीडी में जाँच कराने के लिए मरीजों के लिए शुद्ध पानी पीने की व्यवस्था नहीं है। फ्लोराइड के दुष्परिणामों के सन्दर्भ में उनका कहना है कि इस पानी के लगातार पीने से शरीर में दाना हो जाता है। मरीजों में खुजली और दाग की शिकायत अधिक रहती है। इससे कांटेक्ट डरमाटाइटिस होता है।

लम्बे समय तक इस जल के सेवन अन्य तरह की परेशानी होती है। वहीं दंत रोग चिकित्सक डाॅ संजय कुमार बताते हैं कि लगातार फ्लोराइडयुक्त पानी पीने से दाँत की ऊपरी परत में धब्बा आ जाता है। दाँत कमजोर हो जाता है। खासकर नए बच्चों में यह बीमारी अधिक होती है। छोटे बच्चे जिन्हें दाँत आ रहा है। उनके दाँत भी प्रभावित होते हैं।

सवाल यह उठता है कि जब अस्पताल तक में मरीजों को शुद्ध पेय नसीब नहीं है। तन्त्र कितना संवेदनशील है। इस सच को और सरकार के सुशासन को आईना दिखाने के लिए जवाहरलाल नेहरू मेडिकल काॅलेज एक अच्छा उदाहरण है।
 

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