आसान नहीं वॉटर विजन@2047 की डगर

Flooding, a regular event in Chennai city (Image Source: IWP Flickr photos)
Flooding, a regular event in Chennai city (Image Source: IWP Flickr photos)

वृहरारण्यीकोपनिषद के अनुसार-जल जगत के प्राण हैं। समस्त भूत, भुवन, चर और अचर जगत जल पर आश्रित हैं। सार्वभौमिक सत्य है कि जल ही जीवन का सार है जिसके बिना जीवन की परिकल्पना करना व्यर्थ है। ऐसे में जल की महत्ता को देखते हुए इसके संरक्षण सुरक्षा प्रबंधन व गुणवत्ता सुनिश्चित करने का दायित्व हमको लेना होगा। 
 
जल संरक्षण जल प्रबंधन और जल गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए ठोस राष्ट्रीय नीति और रणनीति का अभाव जल संकट का प्रमुख कारण है। आज विश्व में 2.5 अरब से ज्यादा लोग जलसंकट के लिए संघर्षरत हैं। दुनिया भर में 60 देश ऐसे हैं जो अपनी पानी की जरूरत पूरी करने के लिए दूसरे देशों पर निर्भर हैं । आधी आबादी यानी 3.6 अरब लोग हर साल कम-से-कम एक महीने पानी के लिये तरस जाती है जो वर्ष 2050 तक 5.7 अरब पहुँच सकती है। 
 
दुनिया में सौ करोड़ से अधिक लोगों को पीने का साफ पानी उपलब्ध नहीं है। जबकि 270 करोड़ लोगों को साल में एक महीने पीने का पानी नहीं मिलता। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार पानी की कमी तब होती है जब प्रति व्यक्त वार्षिक जलापूर्ति 1700 घन मीटर से कम हो। हर महाद्वीप में व्याप्त जलसंकट से संघर्षरत नागरिकों के समक्ष 22 मार्च को अन्तरराष्ट्रीय जल दिवस मनाने के सिवाय इससे उबरने की इच्छाशक्ति नजर नहीं आती। क्योंकि अर्जेंटीना ब्राजील पैराग्वे, उरुग्वे जैसे देशों के शासकों ने 04 लाख 60 हजार वर्ग मील में फैले भूजल भण्डार को अगले 100 साल के लिये कोका-कोला और स्विस नेस्ले कम्पनी को मालिकाना हक देने का निर्णय किया है। इस प्रकार संकटपूर्ण जलआपूर्ति को लेकर व्यापक अन्तरराष्ट्रीय विवाद, विस्थापन तनाव और अशांति के चलते जलसंकट पर तीसरे विश्वयुद्ध की कल्पना निराधार नहीं मानी जा सकती। सार्वभौमिक रूप से सुरक्षित और स्वच्छ पेयजल आपूर्ति के प्रयोजन में सतत विकास लक्ष्य 6 के उद्देश्य पर 'बिन पानी सब सून' को चरितार्थ हमारा देश मौजूदा जलस्रोतों को स्थायी बनाने की दिशा में काम कर रहा है। 
 
इसी श्रृंखला पर हाल ही में भोपाल में संपन्न ‘वॉटर विजन - 2047 पर मंथन किया गया। दो दिवसीय इस राष्ट्रीय सम्मेलन में जल सुरक्षा की चुनौतियों से निबटने के लिए प्रधानमंत्री के '5पी' यानी पॉलिटिकल विल (राजनीतिक इच्छा शक्ति), पब्लिक फाइनेंसिंग (लोक वित्त) पार्टनरशिप (साझेदारी), पब्लिक पार्टसिपेशन (जन भागीदारी) और परसुयेशन फॉर सस्टेनेबिलिटी (निरंतरता के लिये प्रेरणा) को आधार बनाया गया है। जिसमें राज्यों के साथ संलग्नता व साझेदारी में सुधार तथा जल शक्ति मंत्रालय की योजनाओं को साझा करना शामिल है।
 
सम्मेलन में पांच विषयगत सत्र आयोजित किए गये। जिसमें पहला ‘जल की कमी जल की अधिकता और पहाड़ी इलाकों में जल सुरक्षा’, दूसरा ‘अपव्ययय या गंदले पानी को पुनर्चक्रीकरण सहित जल उपयोगिता दक्षता'’ पर केंद्रित था। तीसरा सत्र राज्य और केंद्र के बीच जल सेक्टर में भिन्‍नता को समाप्त करने के लिए ‘जल प्रशासन'’ पर केंद्रित था। चौथा सत्र ‘जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को कम करने के लिए मौजूदा परिदृश्य में जरूरी परिवर्तन’ करना था। जबकि पांचवां सत्र ‘पेयजल - सतह पर मौजूद जल और भूजल की गुणवत्ता’ पर केंद्रित था। 
जल संरक्षण के लिए चलाये जा रहे अमृत सरोवर, जल-जीवन मिशन अटल भू-जल योजना के परिणामों पर सम्मेलन में विमर्श कर भविष्य की कार्य योजनाओं पर बल दिया गया। 
 
वर्षा जल संरक्षण पर आधारित मिशन अमृत सरोवर के तहत 45 अगस्त 2023 तक 50000 अमृत सरोवर बनाने का लक्ष्य रखा गया है। देश में अभी तक 25000 से अधिक अमृत सरोवर का निर्माण हो चुका है। जबकि जल-जीवन मिशन के तहत प्रत्येक ग्रामीण परिवार को वर्ष 2024 तक नल से पेयजल आपूर्ति के बारे में बताया गया कि अब तक कुल 9.24 करोड़ परिवार लाभान्वित हो रहे है। वहीं जल सुरक्षा पर केंद्रित अटल भू-जल योजना जलस्रोत जल की खपत और जल के अधिकतम उपयोग को प्रभावी बनाने की दिशा में काम चल रहा है। 
 
इस अवसर पर अपने संबोधन में प्रधानमंत्री ने जल संरक्षण से जुड़े अभियानों में सामाजिक संगठनों और सिविल सोसायटी के योगदान पर बल दिया। कार्यक्रम में केंद्रीय जल शक्ति मंत्री सिंचाई की व्यवस्था में परिवर्तन और भंडारण की क्षमता बढ़ाने की आवश्यकता बताई। इस अवसर पर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ने राज्य में जल संरचनाओं के सुदृढ़ीकरण भू-जल स्तर बढ़ाने और वर्षा जल संचय के लिए नई संरचनाओं के निर्माण पर अमल करने की योजनाओं के बारे में बताया। उन्होंने प्रदेश में जल संरक्षण के लिए नदी पुनर्जीवन, नर्मदा सेवा यात्रा, जलाभिषेक, खेत तालाब योजना सहित सिंचाई रकबा 65 लाख हेक्टेयर करने के लक्ष्य पर काम करने के कार्यक्रम से अवगत कराया। 
चरक संहिता में - वापी कूप ताडागोत्ससर: प्रस्श्रवणादिषु।। अर्थात वापी कूप तड़ाग उत्स प्रस्रवण को जल संरक्षण के के लिए निर्देशित किया हैं। जबकि बढ़ते शहरीकरण ने इन्हें निगल लिया है। 
 
राष्ट्रीय हरित पंचाट का मानना है कि खारे जल को छोड़कर अगर 'टीडीएस 500एमजी/लीटर से कम है तो रिवर्स ऑसमासिस ( आरओ) का प्रयोग प्रतिबंधित किया जाना चाहिये। क्योंकि यह स्वास्थ्य के लिए उपयुक्त न होने के साथ 80 फीसदी जल को बर्बाद कर देता है। टीडीएस (टोटल डिजॉल्व्ड सॉलिड्स) में सॉल्ट कैल्शियम, मैग्नशियम, पोटेशियम, सोडियम कार्बोनेट्स, क्लोराइड्स आदि आते हैं। 
 
जल में दो तरह की अशुद्धियां होती हैं - घुलनशील और अघुलनशील। ये केमिकल और बायोलॉजिकल होती हैं। जलस्रोत के पास फैक्ट्रियां, सेनेटरी लैंडफिल तथा खेती में प्रयुक्त कीटनाशक से विषाक्त रसायन अंडरग्राउंड वॉटर में मिलकर उसे दूषित करते हैं। 
 
नीति आयोग की रिपोर्ट बताती है कि भारत में साफ पानी न मिलने के कारण साल भर में लगभग दो लाख लोग अपनी जान गंवा देते हैं तथा साठ करोड़ भारतीय किसी न किसी प्रकार की जल की समस्याओं से जूझ रहें हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने जीवन यापन के लिए न्यूनतम 5 से 7 लीटर जल को आवश्यक बताया है साथ ही 86 प्रतिशत से अधिक मानव रोगों का कारण दूषित जल को ठहराया है। 
 
हमारे घरों में सरकारी एजेंसियों के वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट में नदी या नहर के जरिए जल आता है। जहां पानी की जांच के बाद उसमें बलोरीन मिलाई जाती है। उसके बाद फिटकरी पॉलीएल्युमिनियम क्लोराइड मिलाकर क्लोरीफायर में भेजा जाता है, जहां अशुद्धियां और गाद नीचे बैठ जाती हैं। पानी साफ करने के बाद जितनी भी बार पानी की जांच होती है उसमें की घुलनशील और अघुलनशील अशुद्धियों की जांच की जाती है। अगर पानी में कोई भी गड़बड़ी पाई जाती है तो पानी की सप्लाई रोक दी जाती है। 
 
प्लांट से पानी साफ होने के बाद अंडर ग्राउंड रिजरवॉयरों में जाता है। यहां भी घरों में सप्लाई करने से पहले जांच की जाती है। जेनिया टाटा जेनिया एक्सप्राइज नाम की संस्था एक्सप्राइज ने 17.5 लाख डॉलर की लागत से जरूरतमंदों की जल आपूर्ति पर वाटर एबंडंस प्रोजेक्ट शुरू किया है। इससे हवा में मौजूद नमी से प्रतिदिन दो हज़ार लीटर पानी निकाल सकेगी। इससे सिर्फ 70 पैसे में एक लीटर पानी निकाला जा सकेगा। लेकिन नमी पर आधारित यह 'पारिस्थितकीय तंत्र कितना कल्याणकारी होगा यह विचारणीय है। 
 
समाजसेवी और विचारक के एन गोविंदाचार्य नदी जीवन और जल संरक्षण पर कार्य कर रहे हैं। वे इस दिशा में काम कर रहे सरकारी तंत्र पर सवाल उठाते हुए कहते है कि पिछली एक सदी में मानव केन्द्रित विकास पर जोर देने के कारण ही प्रकृति का विध्वंस शुरू हुआ। जबकि आवश्यकता पर्यावरण अनुकूल समावेशी विकास का है। विकास के नाम पर चल रहे सतत वैध-अवैध रेत उत्खनन उनके जीवन को प्रभावित करने का पर्याय बने हुए हैं। नदियों पर बने बांध और नदियों की सदानीरा बनाये रखने में उनका मानना कि निर्मलता और अविरलता के लिए किसी नदी में उसके कुल जल का न्यूनतम 60 फीसदी भाग अंत तक प्रवाहित होना आवश्यक है। अन्यथा पारिस्थितिकीय असंतुलन से अनगिनत जीवों का अस्तित्व खतरे में पड़ जायेगा। इसके लिए प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए विकल्प के तौर पर नदी के समानांतर नालें या नहरें निकाली जानी चाहिये। क्योंकि सीवरेज और औद्योगिक कचरे को शोधन के बाद उसके जल को ऐसे नालों में छोड़ा जा सके। वर्तमान में सीवरेज के शोधन की खानापूर्ति के लिए लगे सीवरेज ट्रीटमेंप्ट प्लाण्ट एसटीपी निगरानी के अभाव में निष्प्रयोजन पड़े हैं। लिहाजा उनकी निगरानी के लिए प्रभावी तंत्र बनाने के पश्चात जल की गुणवत्ता में सुधार होने से ही पर्यावरण को बचाया जा सकेगा। लेकिन नीतियां और योजनाएं बनाने से पहले स्थानीय लोगों की उपेक्षा करते हुए उनके परामर्श पर कभी ध्यान नहीं दिया जाता। 

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Post By: Kesar Singh
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