हम सभी जानते हैं कि पूरी दुनिया आने वाले दिनों में भीषण जल संकट का सामना करने वाला है। भारत भी इससे अछूता नहीं रहेगा, बल्कि भारत की आबादी को देखते हुए यहां संकट और भी विकराल हो सकता है।
दो साल पहले नीति आयोग अपनी रिपोर्ट में आगाह कर चुका है कि आने वाले सालों में भारत में जल संकट भीषण रूप ले सकता है। कई शहरों में पानी की उपलब्धता खत्म हो सकती है और कई इलाकों में पानी की उपलब्धता शून्य पर आ जाएगी। ऐसे में जरूरी है कि अभी से ही जल संरक्षण पर जोर दिया जाए। लोगों को हर तरह से प्रोत्साहित किया जाना चाहिए कि हर सूरत में पानी को बचाएं।
हरियाणा के गुरुग्राम के कुछ छात्र पानी को बचाने के लिए जो काम कर रहे हैं, वो जल संरक्षण की दिशा में एक बेहतरीन नजीर हो सकता है। ये छात्र गुरुग्राम के शिव नडार स्कूल में 10वीं में पढ़ रहे हैं और उन्होंने आरओ (रिवर्स ओस्मोसिस) पद्धति से फिल्टरिंग के वक्त जो पानी बर्बाद होता है, उसे संरक्षित करने की तकनीक विकसित कर ली है।
क्या है ये तकनीक
दरअसल छात्रों को वार्षिक फेस्ट के लिए कुछ-कुछ काम करने को कहा जाता है। इन छात्रों को भी ऐसा ही निर्देश मिला था, तो इन्होंने आरओ से बर्बाद होने वाले पानी को दोबारा इस्तेमाल करने की तकनीक तैयार कर ली।
छात्रों के मुताबिक, उन्होंने आरओ मशीन से बर्बाद होने वाले पानी को बचाकर उन्हें किचन से कनेक्ट कर दिया। इससे हुआ ये कि आरओ मशीन से जो पानी पहले बर्बाद हो जाता था, वो अब किचेन में जाता है, जहां इसका इस्तेमाल बर्तन धोने व अन्य कामों में हो जाता है। इस तरह पानी बर्बाद होने से बच जाता है।
इस तकनीक के अंतर्गत आरओ मशीन से एक पाइप को किचेन बेसिन में लाया जाता है और इसमें एक नल फिट कर दिया जाता है व आरओ से जो पानी पहले बर्बाद चला जाता था, वो इस नल के रास्ते में किचेन के बेसिन तक पहुंचता है, जिसका वैकल्पिक इस्तेमाल हो जाता है।
लोग ये मान सकते हैं कि जो पानी बर्बाद होता है, वो गंदा होता है, इसलिए इसका वैकल्पिक इस्तेमाल नुकसानदेह हो सकता है, लेकिन जल संरक्षण पर काम करने वाले विशेषज्ञ आरओ से बर्बाद होने वाले पानी के वैकल्पिक इस्तेमाल को अच्छा मानते हैं। विशेषज्ञों की राय है कि आरओ से बर्बाद होने वाले पानी का इस्तेमाल वाहन धोने, किचेन में बर्तन साफ करने, घर के फर्श आदि की सफाई की जा सकती है।
प्रोजेक्ट टीम
ये प्रोजेक्ट छह छात्रों आदित्य तंवर, अर्जुन सिंह बेदी, जैया खुराना, मोहम्मद उमर और पिया शर्मा ने मिलकर तैयार किया है। अर्जुन ने मीडिया को बताया,
“हमारी मूल चिंता ये थी कि भूगर्भ जल तेजी से खत्म हो रहा था। इसे ध्यान में रखते हुए स्कूल के लिए ये प्रोजेक्ट तैयार किया, लेकिन जल्दी ही हमें ये खयाल आया कि इसका विस्तार किया जाना चाहिए।”
फिलहाल इस तकनीक का इस्तेमाल स्कूल के अलावा छात्रों व उनके रिश्तेदारों के घरों में हो रहा है। इसके अलावा गुरुग्राम के कुछ सार्वजनिक स्थलों मसलन एक डोसा कॉर्नर, एक आयुर्वेदिक क्लीनिक और पुलिस कमिश्नर के दफ्तर में ये तकनीक स्थापित कर दी गई है। इन तीनों जगहों को मिलाकर अभी रोजाना आरओ का लगभग 1350 लीटर पानी बचाया जा रहा है और इनका वैकल्पिक इस्तेमाल हो रहा है।
गुरुग्राम में जितनी भी जगहों पर ये तकनीक इस्तेमाल हो रही है, उन सबको मिलाकर 15 दिनों में करीब 1 लाख लीटर पानी बचाया जा चुका है।
आरओ तकनीक
आरओ तकनीक पानी को शुद्ध करने की एक तकनीक है, जो अपने देश में खूब प्रचलित है। प्रायः हर मध्यवर्गीय परिवार के घर में आरओ लगा मिल जाता है। लेकिन, लोगों को मालूम नहीं है कि पानी की बर्बादी में इस आरओ तकनीक का कितना बड़ा रोल है।
जानकार बताते हैं कि आरओ तकनीक से एक लीटर पानी शुद्ध होकर बाहर निकलता है, तो दो से तीन लीटर पानी बर्बाद होता है। दरअसल कितना पानी बर्बाद होगा, ये इस बात पर निर्भर करता है कि पानी में टीडीएस की मात्रा कितनी है। अगर पानी में अधिक टीडीएस है, तो ज्यादा पानी बर्बाद होगा और कम टीडीएस है तो कम।
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