अपना नलकूप बढ़ा रहा जल संकट

9 फीसदी आबादी की नल पर निर्भरता घटी
2 हजार बसाहटों में नहीं जल स्रोत
घर-घर हो रहे नलकूप खनन, पानी बचाने में रुचि नहीं

पिछले 15 सालों के दौरान 14 से ज्यादा जिलों में सूखा भोग रहे प्रदेश में जलप्रदाय की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। आठ सालों में पाँच गुना बस्तियाँ जलस्रोत विहीन हो गईं। प्रदेश के 9 फीसदी परिवारों ने पानी के लिए नलों पर से अपनी निर्भरता खत्म कर ली है। यही वजह है कि घर-घर में नलकूप खनन किए जा रहा हैं। मुश्किल यह है कि बारिश का पानी बचाने में रुचि न होने से भूजल पाताल में पहुँच गया है।

कम बारिश के कारण पिछले 15 सालों में प्रदेश के 14 से 39 जिले हर साल पानी की कमी से दो-चार हो रहे हैं। मानक कहते हैं कि एक व्यक्ति को दैनिक गुजारे के लिए प्रतिदिन न्यूनतम 40 लीटर पानी की जरूरत होती है। लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश की 15 हजार बसाहटों में एक व्यक्ति को प्रतिदिन इतना पानी भी नहीं मिल पा रहा है। इतना ही नहीं प्रदेश में जलविहीन बस्तियों की संख्या भी पाँच गुना बढ़ गई है। वर्ष 2001 में कुल 448 बस्तियाँ जलविहीन थीं, जबकि 2007-2008 में इनकी संख्या बढ़कर 2000 हो गई।

जिला स्तरीय हाऊसहोल्ड सर्वे-3 (डीएलएचएस) में भी जल संकट की गंभीरता और इसका कारण उजागर होता है। इस सर्वे के मुताबिक नल जल प्रदाय पर लोगों क निर्भरता खत्म हुई है। 2002-04 में हुए जिला स्तरीय हाऊसहोल्ड सर्वे-2 में बताया गया था कि प्रदेश के 27.6 घरों में नलों से पानी लिया जाता था। 2007-08 में यह तादाद घटकर 18.1 प्रतिशत रह गई। ग्रामीण क्षेत्रों में भी नल जल योजना पर निर्भरता घटी है। पहले यह 11.7 प्रतिशत हुआ करती थी जो अब घटकर 6 प्रतिशत रह गई है।

विकास संवाद के सचिन जैन कहते हैं कि नलों पर आत्मनिर्भरता कम होने का अर्थ है कि लोगों ने अपने निजी जलस्रोत तलाश लिए हैं। समस्या यह नहीं है कि लोगों ने अपने स्रोत तलाश लिए। मुश्किल यह है कि भूजल पर जितनी निर्भरता बढ़ती जा रही है, उतने प्रयास भूजल स्तर बढ़ाने को लेकर नहीं हो रहे हैं। वर्षा का जल बचाने के लिए लोगों में जागरुकता नहीं है। तभी तो भूजल स्तर लगातार गिर रहा है। यही वजह है कि केन्द्रीय भूजल बोर्ड ने प्रदेश में घट रहे भूजल स्तर पर चिंता जाहिर करते हुए भूजल संबंधी तकनीकी मार्गदर्शन के लिए एक शीर्ष संस्था का गठन करने की अनिवार्यता जताई है। बोर्ड के मुताबिक प्रदेश में 10 जिलों में भूजल स्तर गंभीर स्थिति में पहुँच गया है। बोर्ड ने सुझाया है कि जलसंरक्षण के लिए विभिन्न विभागों द्वारा अलग-अलग कार्यक्रम न चलाकर एकीकृत कार्यक्रम बनाया जाए। उसका कहना है कि बोरिंग की अनुमति भूजल सर्वेक्षण के बिना नहीं दिया जाना चाहिए।

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