अनुसंधान और नवाचार की संस्कृति को बढ़ावा

अनुसंधान और नवाचार की संस्कृति को बढ़ावा
अनुसंधान और नवाचार की संस्कृति को बढ़ावा

मेक इन इंडिया को ज्यादातर लोग विनिर्माण (मैन्युफैक्चरिंग) पर आधारित कार्यक्रम और पहल के रूप में देखते हैं लेकिन विनिर्माण के साथ-साथ उसके कई अन्य पहलू भी हैं। विनिर्माण कोई हवा में नहीं हो जाता और विनिर्माण का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए अनेक बुनियादी पक्षों पर काम करना जरूरी है, जैसे निवेश को प्रोत्साहित करना तथा आधारभूत ढांचे (इन्फास्ट्रक्चर) का विकास करना। इनके बिना विनिर्माण पर केंद्रित लक्ष्य वांछित परिणाम हासिल नहीं कर सकेंगे।

"जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान, जय अनुसंधान" प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा दिया गया यह नारा भले ही सांकेतिक या प्रतीकात्मक दिखाई दे लेकिन ऐसे नारों तथा उनके भीतर छिपे संदेश का प्रभाव गाँव-गाँव तक जाता है। बात सिर्फ नारों तक सीमित नहीं है बल्कि अनुसंधान के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता सरकारी प्राथमिकताओं, फंडिंग और योजनाओं में भी झलकती है। इतना ही नहीं, आज हमें ज़मीनी स्तर पर इसके परिणाम भी दिखाई देने लगे हैं।

इसी के मद्देनजर 25 सितंबर, 2014 को शुरू किए गए मेक इन इंडिया कार्यक्रम के उद्देश्यों में आवश्यक निवेश की व्यवस्था करना, विश्व स्तरीय इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास करना और भारत को विनिर्माण, डिजाइन एवं नवाचार का केंद्र बनाना शामिल है। इसका एक अहम पहलू है नवाचार को प्रोत्साहन देना क्योंकि प्रतिस्पर्धा और प्रतिद्वद्विता भरे विश्व में स्वदेशी नवाचार के बिना मजबूत और ठोस भविष्य की इमारत खड़ी नहीं की जा सकती। नवाचार वह ईंधन है जो निरंतर नए विचारों, प्रयोगों, संभावनाओं,अनुसंधान और आविष्कारों का रास्ता साफ करता है और विकास के नए रास्ते खोलता है। बिना नवाचार  के बाहरी ज्ञान पर निर्भर रहते हुए विकास के इंजन को स्थायी रूप से नहीं चलाया जा सकता।  

पिछले कुछ वर्षों में मेक इन इंडिया के कारण भारत में आर्थिक, औद्योगिक, वैज्ञानिक, तकनीकी और अनुसंधान के क्षेत्रों में जैसा सकारात्मक रुझान देखा गया है, वह पारम्परिक रूप से नहीं देखा गया था। हालांकि भारत ने अतीत में भी विज्ञान से जुड़े अनेक क्षेत्रों में कई महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ दर्ज की है किंतु सतत और सुव्यवस्थित ढंग से अनुसंधान, विकास और नवाचार को प्राथमिकता देने का चलन अब देखने में आया है। भारत में इस बात की स्वीकार्यता दिखाई देती है कि यदि हमें वैश्विक अर्थव्यवस्था में अपने महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को हासिल करना है तो नवाचार, अनुसंधान और विकास को प्राथमिकता बनाना ही होगा। आखिरकार देश विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का लक्ष्य लेकर चल रहा है और 2025 के अंत तक पाँच ट्रिलियन का लक्ष्य हमारे सामने है।

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की दृष्टि में अनुसंधान और नवाचार की कितनी महत्ता है, वह इस बात से जाहिर होता है कि उन्होंने 'जय जवान जय किसान' के नारे में 'जय अनुसंधान को जोड़ा था पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी ने स्व. लाल बहादुर शास्त्री के दिए इस नारे में 'जय विज्ञान को जोड़ा था तो श्री मोदी के दिए नए शब्दों के बाद यह हो गया 'जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान, जय अनुसंधान भले ही यह सांकेतिक या प्रतीकात्मक दिखाई दे लेकिन ऐसे नारों तथा उनके भीतर छिपे संदेश का प्रभाव गाँव-गाँव तक जाता है। बात सिर्फ नारों तक सीमित नहीं है बल्कि अनुसंधान के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता सरकारी प्राथमिकताओं फडिंग और योजनाओं में भी झलकती है। इतना ही जमीनी स्तर पर इसके परिणाम भी दिखाई देने लगे हैं 

पेटेंट और शोध पत्र

नैसकॉम की एक रिपोर्ट के अनुसार सन  2022 में  समाप्त हुए दशक के दौरान भारत में पेटेंट फाइल करने के मामले में अभूतपूर्व बढ़ोतरी दर्ज की गई है। वार्षिक आधार पर यह वृद्धि 13.6 प्रतिशत है। सन् 2010 और 2022 के बीच में भारत में कुल 5,84,000 पेटेंट आवेदन दाखिल किए गए जिनमें से 2,66,000 टेक्नोलॉजी के क्षेत्र से थे। महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि इन तकनीकी पेटेंटों में से लगभग दो तिहाई पेटेंट नई और उभरती हुई टेक्नोलॉजी पर केंद्रित है, जैसे कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, बिग डेटा साइवर सुरक्षा और ब्लॉकचेन दूरसंचार क्षेत्र में दाखिल किए गए पेटेंटों में से लगभग ढाई प्रतिशत पेटेंट  5जी और 6जी पर केंद्रित हैं। ये आंकड़े दुनिया में नवाचार के मानचित्र पर भारत की मजबूत होती स्थिति को स्पष्ट करते हैं।

हालांकि यह सच है कि आज भी पेटेंट दाखिल करने के मामले में हम चीन और अमेरिका जैसे देशों की तुलना में बहुत पीछे है दुनिया भर में दाखिल किए जाने वाले पेटेंट के आवेदनों में से आये केवल चीन से आगे है संख्या सुनकर आपको आश्चर्य होगा कि  सन 2021 के आंकड़े बताते हैं कि चीन ने इस वर्ष के दौरान 15.85 लाख पेटेंट आवेदन दाखिल किए थे। अमेरिका ने 5.91 लाख आवेदनों के साथ दूसरे नंबर पर था भारत के लिए संतोष का विषय यह है कि हम वैश्विक सूची में छठे नंबर तक आ  पहुँचे हैं। दूसरी बड़ी बात है हमारे यहाँ दाखिल होने वाले पेटेंटो की स्वस्थ विकास दर (13.6 प्रतिशत) एक सकारात्मक रुझान की तरफ इशारा करती है।

इसी तरह, 2017 से 2022 के बीच भारत में शोध (रिसर्च) संबंधी प्रकाशनों (पेपर्स) की संख्या में 54 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। दुनिया भर में शोध के डेटा पर नजर रखने वाली फर्म साइवैल (Scival) के रिसर्च इनसाइट्स डेटाबेस में कहा गया है। कि भारत में हुई यह वृद्धि वैश्विक औसत के दोगुने से भी अधिक है और भारत की तुलना में शैक्षणिक लिहाज से अधिक विकसित माने जाने वाले कई पश्चिमी देशों से आगे है। इस अवधि में भारत के 54 प्रतिशत के मुकाबले वैश्विक विकास दर 22 प्रतिशत की रही।

भारत में 2017-22 के दौरान लगभग 13 लाख अकादमिक पेपर पेश किए गए जो सिर्फ चीन (45 लाख), अमेरिका (44 लाख) और इंग्लैंड (14 लाख से कम है। अगर भारत की वृद्धि दर बरकरार रही तो बहुत जल्दी हम तीसरे नंबर पर तो आ ही सकते हैं।

विधेयक के प्रमुख बिंदु

  • एनईपी की सिफारिशों के अनुसार देश में वैज्ञानिक अनुसंधान की उच्चस्तरीय रणनीतिक दिशा प्रदान करने के लिए शीर्ष निकाय
  • 2023-28 की अवधि के लिए 50,000 करोड़ रुपये का प्रावधान।
  • डीएसटी एनआरएफ का प्रशासनिक विभाग होगा।
  • प्रधानमंत्री बोर्ड के पदेन अध्यक्ष होंगे।
  • एनआरएफ उद्योग, शिक्षा, सरकारी विभागों और अनुसंधान संस्थानों के बीच सहयोग स्थापित करेगा।
  • 2008 में स्थापित विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड) को निरस्त कर एनआरएफ में शामिल किया जाएगा। 

निवेश और नीतियां

सरकार ने विकास और अनुसंधान के क्षेत्र में निवेश को निरंतर बढ़ाया है। सन 2020 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का लगभग 0.8% हिस्सा अनुसंधान के लिए रखा गया था हमारे जैसे देश की सीमाओं को देखते हुए यह एक ठोस आंकड़ा है। हालांकि हमें यह स्वीकार करना होगा कि यह अब भी वैश्विक औसत (1.7%) की तुलना में लगभग आधा ही है और / निरंतर वृद्धि लाजिमी है।

ऐसे में नवाचार के विभिन्न पैमानों पर हमारे देश का आगे  बढ़ते दिखाई देना सुखद तो है ही, इस बात की तरफ भी करता है कि देश में अनुसंधान, विकास और नवाचार के पक्ष में धीरे-धीरे माहौल बन रहा है। सरकारी और निजी क्षेत्रों के प्रयास रंग ला रहे हैं और युवाओं के बीच भी अभिरुचि पैदा हो रही है। किंतु यह सब अनायास नहीं हो गया है। किसी जमाने में 'बौद्धिक संपदा अधिकार जैसी शब्दावली हमारे लिए एक पहेली के समान हुआ करती थी लेकिन ऐसे अधिकार नए भारत की हकीकत है। सन् 2016 में भारत में बौद्धिक संपदा अधिकार नीति लागू की गई। शोध और विकास पर सरकारी खर्च का बढ़ना एक बात है और नीतिगत आधार पर तथा ढाँचागत आधार पर एक विश्वसनीय तंत्र तैयार करना अलग बात है। दोनों ही क्षेत्रों में बदलाव साफ दिखाई देता है। 

बौद्धिक संपदा अधिकार नीति प्रमुख पहलू

  • ट्रिप्स (TRIPS) का पालन करने के लिए ठोस नीतिगत फ्रेमवर्क की स्थापना ट्रिप्स विश्व व्यापार संगठन के तहत एक अंतरराष्ट्रीय कानूनी समझौता है जो बौद्धिक कानूनों के व्यापार से संबंधित पहलुओं पर दश देता है।
  • विश्वस्तरीय आईटी समर्पित पेटेंट कार्यालयों की स्थापना।  
  • पेटेंट आवेदनों की प्रारंभिक जाँच के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खोज के प्रामाणिक सिस्टम।
  • पेटेंट आवेदनों की जाँच के लिए 721 अतिरिक्त सक्षम जाँचकर्ताओं की नियुक्ति।
  • पेटेट की जाँच का समय, जो पहले सात साल हुआ करता था को घटाकर 18 महीने पर लाया जाना
  • ट्रेडमार्क आवेदनों की जाँच का समय 13 महीने से घटाकर एक महीने पर लाया जाना आदि।

भारत सरकार ने वर्षों से अनुसंधान और विकास को बढ़ावा देने के लिए कई प्रयास किए है। सन 1971 में स्थापित विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी), देश में विज्ञान और प्रौद्योगिकी को प्रोत्साहित करने के लिए जिम्मेदार है। डीएसटी शोध और विकास परियोजनाओं के लिए वित्त प्रदान करता है और अनुसंधान संस्थानों और टेक्नोलॉजी पार्कों की स्थापना को भी बढ़ावा देता है इसी तरह, सन 1942 में स्थापित वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) अनुसंधान और विकास के मामले में देश के सबसे बड़े संगठनों में से एक है। सीएसआईआर ने विमानन, जैव प्रौद्योगिकी और सूचना प्रौद्योगिकी जैसे कई क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान किए हैं।

हाल के वर्षों में जिन क्षेत्रों में अनुसंधान, विकास और नवाचार पर काफी काम हुआ है, उनमें रक्षा, इंजीनियरिंग और स्वास्थ्य टेक्नोलॉजी उल्लेखनीय है डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक तकनीकों के क्षेत्र में हुआ कामकाज तो जगजाहिर ही है। यह सिलसिला जारी रहना चाहिए क्योंकि भारत के निरंतर विकास को सुनिश्चित करने तथा वैश्विक बाजार का लाभ उठाने के लिए यह जरूरी है इंडिया ब्रांड इक्विटी फाउंडेशन के एक अध्ययन के अनुसार भारत में अकेले इंजीनियरिंग के क्षेत्र में ही अनुसंधान, विकास और उत्पाद विकास का बाजार सन 2025 तक 63 अरब अमेरिकी डॉलर 15.23 लाख करोड़ रुपए) का होने वाला है। अन्य क्षेत्रों को भी जोड़ लिया जाए तो हमारी अर्थव्यवस्था पर इसका कितना बड़ा प्रभाव पड़ेगा, इसकी कल्पना करना मुश्किल नहीं है।

नेशनल रिसर्च फाउंडेशन विधेयक 2023

पिछली 9 अगस्त को संसद में पारित किए गए अनुसंधान नेशनल रिसर्च फाउंडेशन (एनआरएफ) विधेयक, 2023 से अब तक के प्रयासों, निवेश, नीतियों और कार्यक्रमों को बल मिलेगा। यह कानून बनने के बाद भारत ऐसे गिने-चुने देशों की सूची में आ गया है जहाँ पर अनुसंधान और विकास को इतनी गंभीरता और महता के साथ देखा जा रहा है। केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा है कि 'अनुसंधान नेशनल रिसर्च फाउंडेशन' आजादी के सौ साल बाद 2047 में भारत का कद क्या होने वाला है, इस तरफ संकेत करता है। यह कानून, जिसकी परिकल्पना प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने की है, भारत के विकसित देशों की चुनिंदा लीग में शामिल होने का मार्ग प्रशस्त करेगा।

इस कानून के आने से देश इस क्षेत्र में सुव्यवस्थित और सुनियोजित ढंग से कदम आगे बढ़ाने जा रहा है। अनुसंधान एवं विकास पर होने वाले खर्च मे ठोस बढ़ोतरी  देखने को मिलेगी। एनआरएफ की कार्यकारी परिषद को न केवल विभिन्न परियोजनाओं की प्रगति की निगरानी का काम सौंपा गया है, बल्कि विभिन्न स्तरों पर फंडिंग की जवाबदेही का विश्लेषण करने का भी काम सौंपा गया है कानून के तहत पाँच साल के लिए 50,000 करोड़ रुपये खर्च करने का प्रावधान किया गया है जिनमें से 36000 करोड़ रुपये (लगभग 80 प्रतिशत) गैर-सरकारी साबों से आएंगे। उनमें घरेलू और वैश्विक दोनों ही तरह के खोत शामिल हैं।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी को समर्पित अनेक वैश्विक तथा राष्ट्रीय संस्थान, गैर-सरकारी संगठन, चैरिटी संगठन आदि भी शोध तथा विकास पर आधारित परियोजनाओं को वित्तीय प्रोत्साहन देते हैं। भारत में अनुसंधान और विकास पर होने वाला 60 प्रतिशत खर्च सरकार के हिस्से में आता है। इस मामले में निजी को आगे आने की जरूरत है लेकिन उसकी अनेक सीमाएं हैं। आर सार इन सीमाओं से अवगत है उम्मीद है कि अब इन आंकड़ो में  बदलाव आएगा।

यह कानून गणितीय विज्ञान इंजीनियरिंग एवं प्रौद्योगिकी, पर्यवारण  पृथ्वी विज्ञान, स्वास्थ्य और कृषि सहित प्राकृतिक विज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधान, नवाचार और उद्यमिता के लिए एक उच्चस्तरीय रणनीतिक दिशा प्रदान करेगा। इसके आने से मानविकी और सामाजिक विज्ञान के वैज्ञानिकों और तकनीकी परस्पर मेल को बढ़ावा दिया जाएगा। विधेयक के तहत राज्यों के विश्वविद्यालयों और संस्थानों के लिए अलग-अलग धनराशि निर्धारित की गई है। इससे न सिर्फ उन्हें अपने स्तर पर बेरोकटोक कार्य करने की आजादी मिलेगी बल्कि एक किस्म की स्वस्थ प्रतिस्पर्धा भी खड़ी होगी जो सकारात्मक माहौल को जन्म देगी।  भारत के  विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों, अनुसंधान संस्थानों और एडी प्रयोगशालाओं में अनुसंधान और नवाचार की संस्कृति को बढ़ावा मिल सकेगा।

नए कानून के तहत स्थापित होने वाला नेशनल रिसर्च फाउंडेशन उद्योग, शिक्षा और सरकारी विभागों तथा अनुसंधान संस्थानों के बीच सहयोग स्थापित करेगा, और वैज्ञानिक एवं संबंधित मंत्रालयों के अलावा उद्योगों और राज्य सरकारों की भागीदारी तथा योगदान के लिए परस्पर तालमेल का एक तंत्र तैयार करेगा यह एक नीतिगत ढांचा बनाने और नियामक प्रक्रियाओं को स्थापित करने पर ध्यान केंद्रित करेगा जो अनुसंधान एवं विकास पर उद्योग द्वारा सहयोग और बढ़े हुए खर्च को प्रोत्साहित कर सके। 

इस संदर्भ में शीर्ष स्तर पर प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली शासी परिषद ( गवर्निंग बोर्ड) का गठन किया जा रहा है जिसमें विभिन्न विषयों के प्रतिष्ठित शोधकर्ता और पेशेवर शामिल होंगे। चूंकि एनआरएफ का दायरा व्यापक है और वह सभी मंत्रालयों से संबंध रखता है इसलिए प्रधानमंत्री स्वयं बोर्ड के पदेन अध्यक्ष होंगे केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री और केंद्रीय शिक्षा मंत्री इसके पदेन उपाध्यक्ष होंगे।  एनआरएफ  का कामकाज भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार की अध्य्क्षता में एक कार्यकारी परिषद् द्वारा शासित होगा।   
स्रोत; कुरुक्षेत्र सितंबर 2023 

Path Alias

/articles/anusandhan-aur-navachar-ki-sanskriti-ko-badhava

Post By: Shivendra
×