किसी भी क्षेत्र में स्वच्छता बनाए रखने के लिए ड्रेनेज व्यवस्था का सुचारु और व्यवस्थित होना बेहद जरूरी है, लेकिन भारत की ड्रेनेज व्यवस्था प्रारंभ से ही पटरी से उतरी हुई है। जिस कारण यहां गलियां, खाली प्लाॅट और तालाब गंदगी से भरे रहते हैं। नदियों और झीलों में भी बड़े पैमाने पर ड्रेनेजों को सीधे बहा दिया जाता है। नतीजतन, देश के अधिकांश जलस्रोत प्रदूषित हो चुके हैं। ड्रेनेज की पर्याप्त व्यवस्था के अभाव में भूजल भी प्रदूषित होता है, जो विभिन्न प्रकार की बीमारियों का कारण बन रहा है। दिल्ली में यमुना नदी इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। हालांकि सरकार ने व्यवस्था को सुधारने के कई प्रयास किए हैं, लेकिन धरातल पर जल प्रदूषण को कम करने में कम कारगर साबित हो रहे हैं।
देश की राजधानी दिल्ली हो या अर्थिक राजधानी मुंबई, हर जगह खुले और बदबूदार नाले आसानी से मिल जाएंगे। विश्व की अध्यात्मिक नगरी हरिद्वार से लेकर बनारस और कानुपर तक ऐसे सैंकड़ों नाले हैं। कई इलाकों की छोटी-छोटी नालियों से होकर इन नालों में पानी जाता है, और ये नाले सीधे नदियों में गिरते हैं। ये खुले नाले विभिन्न बीमारियों का घर बन चुके हैं। कई इलाकों में नालों के जमा पानी के आसपास बस्तियां बसी हुई हैं। तो कहीं शहरों के बीच से निकलते नालों की दुर्गंध से लोगों का जीना दूभर हो गया है। स्पष्ट कहें तो भारत में व्यवस्थित ड्रेनेज सुविधा नहीं है। जो सुविधा और व्यवस्था है, वो अपर्याप्त है। तरफ तरह से ऊंट के मुंह में जीरे के समान है।
एनएसएस के 76वें दौर की ‘भारत में पेयजल, स्वच्छता, आरोग्यता एवं आवासीय स्थिति’ 2019 के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2012 में भारत के 38.1 प्रतिशत क्षेत्र में ड्रेनेज की सुविधा नहीं थी। इसमें 50.1 प्रतिशत ग्रामीण और 87.5 प्रतिशत शहरी इलाका शामिल है, जबकि दिसंबर 2018 में देश के 28.3 प्रतिशत घरों में ड्रेनेज व्यवस्था नहीं थी। इसमें 61.1 प्रतिशत ग्रामीण और 92 प्रतिशत शहरी इलाका शामिल है। यानी देश के ग्रामीण इलाकों में आज भी ड्रेनेज की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है। सीएसई की ‘स्टेट ऑफ इंडियाज़ इनवायरमेंट रिपोर्ट 2020’ के मुताबिक 79.1 प्रतिशत ग्रामीण घर और 30.3 प्रतिशत शहरी इलाकों के घरों में या तो ओपन ड्रेन है या फिर किसी प्रकार की ड्रेनेज व्यवस्था नहीं है। रिपोर्ट के मुताबिक ग्रामीण भारत के 12.7 प्रतिशत घरों में अंडरग्राउंड, 8.2 प्रतिशत घरों पक्का ड्रेन, 40.2 घरों में ओपन ड्रेन है, जबकि 38.9 प्रतिशत घरों में किसी भी प्रकार की ड्रेनेज व्यवस्था नहीं है।
ओडिशा के ग्रामीण इलाकों में ड्रेनेज की व्यवस्था काफी खराब है, यहां 82 प्रतिशत ग्रामीण घरों में ड्रेनेज नहीं है, 12 प्रतिशत घरों में ओपन ड्रेन की सुविधा है, जबकि 3.3 प्रतिशत घरों में पक्का और 2.7 घरों में अंडरग्राउंड ड्रेनज है। त्रिपुरा के ग्रामीण इलाकों के 78.7 प्रतिशत घरों में ड्रेनेज नहीं है। यहां 20.5 प्रतिशत ग्रामीण घरों में ही ड्रेन हैं, 0.7 प्रतिशत घरों में पक्का और 0.1 प्रतिशत घरों में अंडरग्राउंड ड्रेनेज है। चंडीगढ़ के ग्रामीण इलाकों में ड्रेनेज व्यवस्था सबसे उत्तम है। यहां हर घर में अंडरग्राउंड ड्रेनेज व्यवस्था है। ग्रामीण की अपेक्षा शहरी भारत की स्थिति में काफी सुधार है।
भारत के शहरी इलाकों के केवल 8 प्रतिशत घरों में ही ड्रेनेज की व्यवस्था नहीं है, जबकि 22.3 प्रतिशत घरों में ओपन ड्रेन, 16.2 प्रतिशत घरों में पक्का ड्रेन और 65.7 प्रतिशत घरों में अंडरग्राउंड ड्रेन की व्यवस्था है। हरियाणा के 65.7 प्रतिशत, हिमाचल प्रदेश के 55.2 प्रतिशत शहरी घरों में अंडरग्राउंड ड्रेनेज सुविधा है। हालांकि लक्षद्वीप के शहरी इलाको के 23.9 प्रतिशत, त्रिपुरा में 39.9 प्रतिशत और ओडिशा के 30.2 प्रतिशत घरों में किसी भी प्रकार की ड्रेनेज सुविधा नहीं है। ये जानकारी नीचे चार्ट में भी गई है।
गंदे पानी का ठीक प्रकार से प्रबंधन किए बिना उसे जलस्रोतों में बहाने और ओपन ड्रेनेज व्यवस्था तथा पर्याप्त सफाई न होने के कारण लोग विभिन्न बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं। आंकड़ों के मुताबिक देश के 13.3 प्रतिशत लोगों को हैजा, पेचिश और दस्त, 10.1 प्रतिशत लोगों को डेंगू, मलेरिया, चिकनगुनिया, इन्सेफेलाइटिस, 6.4 प्रतिशत लोग त्वचा रोग, 2.5 प्रतिशत पीलिया की चपेट में आए थे।
भारत की इसी अव्यवस्थित और अपर्याप्त ड्रेनेज व्यवस्था के कारण देश में जल प्रदूषत बढ़ रहा है। जल प्रदूषण को बढ़ाने में केवल घरों में से निकलने वाला वेस्ट ही नहीं, बल्कि अहम योगदान तो औद्योगिक वेस्ट का है। जिस कारण देश में सतही जल प्रदूषित हो रहा है। इसका असर भूजल पर भी पड़ रहा है। ऐसे में सरकार को पर्यावरणीय कानूनो का सख्ती से पालन करवाने की जरूरत है। जल को प्राथमिकता देनी होगी। इसमें ड्रेनेज के पानी का प्रबंधन कर उसे खेती के उपयोग के अलावा उद्योगों को मशीनों और वाहनों की धुलाई आदि के लिए सप्लाई किया जा सकता है। इससे बड़े पैमाने पर पानी की बचत की जा सकती है।
हिमांशु भट्ट (8057170025)
/articles/ankadaenh-bhaarata-maen-haausahaolada-daraenaeja-vayavasathaa