बचपन में जब हमने भगवान की पूजा के मंत्र कण्ठ किये तब एक मंत्र में भारत की मुख्य सात नदियों को हमारी पूजा के कलश में (लोटे में) आकर बैठने की प्रार्थना करते थे। उसमें सिंधु नदी थी। हमने सुना कि सिंधु बड़ी होने के कारण उसे सिंधुनद कहते हैं। सिंधु, ब्रह्मपुत्र और शोणभद्र ये भारत के प्रख्यात नद है।
बाद में हमने भूगोल में पढ़ा कि सिंधुनद हिमालय के उस पार मानस सरोवर के प्रदेश में जन्म लेता है। और पश्चिम की ओर बहकर हिमालय के पश्चिम सिरे तक जाकर वहां से दक्षिण में आकर सिंधप्रदेश को पानी पिलाकर पश्चिम समुद्र में करांची के पास मिलता है। सिंधु के आखिरी प्रवाह के कारण ही सिंध प्रांत को उसका नाम मिला है।
ऐसे बड़े सिंधुनद को पांच पहाड़ी नदियों का पानी पहुंचाया जाता है। जिस प्रदेश में से ये पांच नदियां बहती हैं उसका नाम हो गया पंजाब। पंजाब का प्राचीन नाम पंचनद है। पंच=पांच+आब=पानी; पांच पानी वाला प्रदेश।
सिंधु नदी से मिलने वाली पांच नदियों के नाम हमने बचपन में कण्ठ किये थे आज भी वैसे के वैसे याद हैं। झेलम, चिनाब, रावी, व्यास और सतलज। इन पांच नदियों में झेलम तो अलग थी। बाकी की चार आपस में मिलती-जुलती थीं। चिनाब, रावी और व्यास ये नदियां सतलज से मिलती हैं और सतलज जाकर इन सब नदियों का पानी सिंधु को अर्पण करती हैं।
इतना सुनने के बाद सतलज के बारे में ज्यादा जानने की इच्छा हुई।
पता चला कि इस नदी का नाम वेदों में पाया जाता है। वहां उसके तीन रूप है, शतद्रु अथवा शुतुद्री। नाम का अर्थ होता है ‘सौ प्रवाहों में बहने वाली नदी’ (द्रु याने बहना, गीता 11-28)
इस नदी का इतिहास भी विचित्र है। कभी यह एक नदी के सात बहेगी, कभी उस नदी को छोड़कर दूसरी को साथ लेगी। इतिहास में यह भी लिखा है कि किसी समय पर नदी अपना-अपना पानी सिंधु को न देते हुए सीधा कच्छ के रण में छोड़ देती थी। ई.स. 1000 के करीब यह नदी अपना पानी हकरा नदी को देती थी। कभी वह घग्गर नदी में बहती थी। अब लोगों ने इस नदी में से अनेक नहरें निकाली हैं।
इस नदी ने जिस तरह अपना प्रवाह अनेक बार बदला वैसे उनके नाम भी बदल गये हैं- मच्छुवाह, हरियाणी, दण्ड, नुरनी नीली, घरह इ. अनेक नाम उसने धारण किये हैं। अगर किसी कवि ने सोचा-तो इस नदी के इतिहास को लेकर एक बड़ा उपन्यास बना सकेगा। अपने आठ सौ मील के प्रवाह में उसने जितने नखरे किये हैं। वैसे दुनिया की और किसी नदी ने नहीं किये होंगे। इसके प्रवाह तो सौ से अधिक हैं ही। इसके नखरे सौ से कम कैसे हो सकते हैं?
बाद में हमने भूगोल में पढ़ा कि सिंधुनद हिमालय के उस पार मानस सरोवर के प्रदेश में जन्म लेता है। और पश्चिम की ओर बहकर हिमालय के पश्चिम सिरे तक जाकर वहां से दक्षिण में आकर सिंधप्रदेश को पानी पिलाकर पश्चिम समुद्र में करांची के पास मिलता है। सिंधु के आखिरी प्रवाह के कारण ही सिंध प्रांत को उसका नाम मिला है।
ऐसे बड़े सिंधुनद को पांच पहाड़ी नदियों का पानी पहुंचाया जाता है। जिस प्रदेश में से ये पांच नदियां बहती हैं उसका नाम हो गया पंजाब। पंजाब का प्राचीन नाम पंचनद है। पंच=पांच+आब=पानी; पांच पानी वाला प्रदेश।
सिंधु नदी से मिलने वाली पांच नदियों के नाम हमने बचपन में कण्ठ किये थे आज भी वैसे के वैसे याद हैं। झेलम, चिनाब, रावी, व्यास और सतलज। इन पांच नदियों में झेलम तो अलग थी। बाकी की चार आपस में मिलती-जुलती थीं। चिनाब, रावी और व्यास ये नदियां सतलज से मिलती हैं और सतलज जाकर इन सब नदियों का पानी सिंधु को अर्पण करती हैं।
इतना सुनने के बाद सतलज के बारे में ज्यादा जानने की इच्छा हुई।
पता चला कि इस नदी का नाम वेदों में पाया जाता है। वहां उसके तीन रूप है, शतद्रु अथवा शुतुद्री। नाम का अर्थ होता है ‘सौ प्रवाहों में बहने वाली नदी’ (द्रु याने बहना, गीता 11-28)
इस नदी का इतिहास भी विचित्र है। कभी यह एक नदी के सात बहेगी, कभी उस नदी को छोड़कर दूसरी को साथ लेगी। इतिहास में यह भी लिखा है कि किसी समय पर नदी अपना-अपना पानी सिंधु को न देते हुए सीधा कच्छ के रण में छोड़ देती थी। ई.स. 1000 के करीब यह नदी अपना पानी हकरा नदी को देती थी। कभी वह घग्गर नदी में बहती थी। अब लोगों ने इस नदी में से अनेक नहरें निकाली हैं।
इस नदी ने जिस तरह अपना प्रवाह अनेक बार बदला वैसे उनके नाम भी बदल गये हैं- मच्छुवाह, हरियाणी, दण्ड, नुरनी नीली, घरह इ. अनेक नाम उसने धारण किये हैं। अगर किसी कवि ने सोचा-तो इस नदी के इतिहास को लेकर एक बड़ा उपन्यास बना सकेगा। अपने आठ सौ मील के प्रवाह में उसने जितने नखरे किये हैं। वैसे दुनिया की और किसी नदी ने नहीं किये होंगे। इसके प्रवाह तो सौ से अधिक हैं ही। इसके नखरे सौ से कम कैसे हो सकते हैं?
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