आन्दोलन और कानूनी लड़ाई साथ-साथ

चानपुरा गाँव में बनने वाले रिंग बांध से उत्पन्न होने वाली गंभीर समस्याओं के प्रति राज्य सरकार को आगाह किया। उन्होंने कहा कि चानपुरा पूरबी टोल को छोड़ कर पश्चिम टोला, धनुखी, माधोपुर, बिशनपुर, तरैया, शुजातपुर आदि गाँवों के लोग इस बांध से आतंकित थे। पंडित झा ने आरोप लगाया कि 22 लाख रुपये के खर्च से एक गाँव को बाढ़ से बचाने की योजना बनाते समय राज्य सरकार द्वारा अन्य गाँवों की सुरक्षा पर जरा भी ध्यान नहीं दिया गया है।’’

जब इस नये रिंग बांध का काम लगभग 12 आना पूरा हो गया तब उसका विरोध शुरू हुआ। इस बीच रिंग बांध के समर्थक और विरोधी दोनों ही ब्रह्मचारी जी से अपनी-अपनी तकलीफें बताने के लिए संपर्क करते रहे और ब्रह्मचारी जी सभी को तसल्ली देते रहे कि वह किसी का अहित नहीं होने देंगे। पछुआरी टोल से 76 वर्षीय द्वारका नाथ चौधरी बताते हैं, ‘‘...हमारे गाँव के एक बुजुर्ग चले गए ब्रह्मचारी जी के पास दिल्ली यह कहने के लिए अगर यह बांध पूरा हो गया तो उनकी जगह-जमीन पूरी तरह बरबाद हो जायेगी। ब्रह्मचारी जी ने उन्हें आश्वासन दिया कि जब आप आ गए हैं तो आपका काम हो जायेगा। फिर ब्रह्मचारी जी ने बांध का तीसरा हवाई सर्वेक्षण किया। तब फिर तीसरी योजना बनी। इसमें भी हम लोगों की जमीन जाती थी और हमें कोई फायदा नहीं होना था। तब हमने और दुःखहरण चौधरी ने बांध के खिलाफ मुकदमा दायर किया और हमारी तरफ से ताराकान्त झा ने वकालत की।

जब यह मामला दायर हुआ तो दिल्ली से ब्रह्मचारी जी का फोन आया कि किसी तरह की चिन्ता मत कीजिये और जैसा आप चाहते हैं वैसा ही होगा। आप लोग दिल्ली आइये। हमने भी सोचा कि जहाँ नाखून से काम चलता हो वहाँ तलवार क्यों चलायें। मैंने दुःखहरण बाबू से कहा कि चलिये, दिल्ली चलते हैं। इस बीच ब्रह्मचारी जी ने हम दोनों के लिए हवाई जहाज का टिकट भिजवा दिया। हमें वहाँ ब्रह्मचारी जी के आश्रम विश्वायतन में बहुत अच्छे कमरे में रखा गया था मगर न तो वहाँ हम लोगों ने कभी भर पेट खाना खाया, न पूरी नींद सोये और न ही कमरे में रहते हुए आपस में कोई बात-चीत की। दुःखहरण बाबू कुछ बोलने को होते थे तो मैं रोक देता था कि पता नहीं कमरे में हमारी बातें रिकार्ड करने की व्यवस्था कर दी गयी होगी तो हम लोग मुसीबत में पड़ जायेंगे। मैं भी बोलने को होता था तो दुःखहरण बाबू रोक देते थे। हम लोगों को बात करनी होती थी तो कमरे से बाहर चले जाते थे।

कुछ दिन वहाँ रहने के बाद जब हम लोगों ने जाने की बात कही तब ब्रह्मचारी जी का बुलावा आया बात-चीत के लिए। दुःखहरण बाबू जाने के लिए तैयार थे मगर मुझे डर लगता था। फिर भी जाना तो था ही। गए, मगर जहाँ प्रतीक्षा करनी थी वहाँ हमसे भी डेढ़ हाथ ऊँचे जवान 5 मिनट बाद आकर हमारे अगल-बगल में खड़े हो गए। हमको मृत्यु का स्मरण हो गया। दुःखहरण बाबू कुछ ऊँचा सुनते थे। वे शायद इस स्थिति से खुश नहीं थे और कुछ कहना चाहते थे मगर मैंने उनका हाथ दबा दिया। फिर हिम्मत जुटा कर मैंने ब्रह्मचारी जी से कहा कि आप ने तो गांव का हवाई सर्वेक्षण किया, जमीन पर तो उतरे नहीं कि हम लोग सारी परिस्थिति आप को समझा पाते।

यह सच है कि अगर यह बांध जैसा बन रहा है वैसा ही बन गया तो पछुआरी टोल बरबाद हो जायेगा। हम ने उनको याद दिलाया कि उन्हीं के परिवार के सौजन्य से हम लोग चानपुरा बसने के लिए आये थे और अगर उसी परिवार के कारण हम लोग उजड़ जायेंगे तो यह अच्छा तो नहीं ही होगा। वैसे आप जो चाहेंगे वही होगा। अगर आप की कृपा होगी तो हमारा पुनर्वास हो जायेगा और आप रूठ जायेंगे तो हम तो आप को गांव भी नहीं ले जा सकेंगे। उन्होंने आश्वासन दिया कि सब कुछ ठीक हो जायेगा। हम लोग लौट कर आये तो यहाँ काम चालू था। कोई 2000 लोग विरोध में खड़े थे। हम लोग ब्रह्मचारी जी का रुतबा देख कर आये थे। इसलिए हमने सबको समझाने की कोशिश की कि ब्रह्मचारी जी से झंझट कर के पार नहीं पाइयेगा। दरभंगा जिले का पूरा प्रशासन एक तरफ और अकेले ब्रह्मचारी जी दूसरी तरफ-फिर भी उनका पलड़ा भारी रहेगा।

अब जो हो रहा है, होने दीजिये। फिर भी लोग माने नहीं। पछुआरी टोल और आस-पास के प्रभावित होने वाले गाँवों की लगभग 5,000 महिलाओं को आगे कर के प्रदर्शन जारी रहा तो पता नहीं कहाँ से महिला पुलिस भारी तादाद में उतार दी गयी। पुलिस के जवान भी जो लगाये गए वे किसी भी मायने में बिहार पुलिस के नहीं लगते थे। अब औरतों को बाल पकड़ कर खींचा जाने लगा और आदमियों के सीने पर संगीनें तनी तो पूरा विरोध बिखर गया। बहुत से लोगों को पकड़ कर मधुबनी की सब-डिवीजन जेल में बंद कर दिया गया। कुछ लोगों को यहाँ से उठा कर दूर-दराज इलाकों के रास्ते में कहीं-कहीं छोड़ दिया। यह लोग बाद में किसी तरह तीन-चार दिन में अपने गाँव लौटे। आस-पास के गांव जैसे धनुखी, फुलबरिया, बर्री, माधोपुर आदि 15-20 गांवों के लोग हम लोगों के साथ शामिल थे। जेल भरने का सिलसिला कई दिन चला मगर हमारा विरोध बहुत बड़ी ताकत से था।

हमलोगों की अपेक्षा बस इतनी ही थी कि बांध अगर बनता तो इसमें पछुआरी टोल को भी शामिल कर लिया जाए, इससे सबकी सुरक्षा हो जायेगी। बांध का विरोध नहीं था।’’

ब्रह्मचारी जी ने जिस किसी को जो भी आश्वासन दिया हो पर चानपुरा में रिंग बांध के निर्माण की खबरें और उसको लेकर उभरा विरोध भी चर्चा में कम नहीं था। बिहार से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र इस मसले को समय-समय पर उठाते रहे। ‘‘भारतीय जनता पार्टी के बिहार प्रशाखा के उपाध्यक्ष पं. ताराकान्त झा, ऐडवोकेट ने श्री धीरेन्द्र ब्रह्मचारी के जन्मस्थान चानपुरा गाँव में बनने वाले रिंग बांध से उत्पन्न होने वाली गंभीर समस्याओं के प्रति राज्य सरकार को आगाह किया। उन्होंने कहा कि चानपुरा पूरबी टोल को छोड़ कर पश्चिम टोला, धनुखी, माधोपुर, बिशनपुर, तरैया, शुजातपुर आदि गाँवों के लोग इस बांध से आतंकित थे। पंडित झा ने आरोप लगाया कि 22 लाख रुपये के खर्च से एक गाँव को बाढ़ से बचाने की योजना बनाते समय राज्य सरकार द्वारा अन्य गाँवों की सुरक्षा पर जरा भी ध्यान नहीं दिया गया है।’’

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Post By: tridmin
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