नई दिल्ली।। उत्तराखंड के पौड़ी जिले में अलकनंदा पर प्रस्तावित 320 मेगावॉट की कोटली-भेल-1बी परियोजना की पर्यावरणीय मंजूरी खारिज कर दी गई है। पहाड़ की नदियों, जंगलों और संस्कृति को बचाने की लड़ाई लड़ रहे जन संगठनों ने राष्ट्रीय पर्यावरण अपीलीय प्राधिकरण (एनईएए) के इस फैसले पर खुशी जताई है।
उत्तराखंड सरकार ने इस जलविद्युत परियोजना के निर्माण का जिम्मा राष्ट्रीय जल ऊर्जा निगम (एनएचपीसी)को सौंपा हुआ है। स्थानीय जनता के भारी विरोध के बावजूद इस योजना पर काम जारी रहने से स्थानीय लोगों में सख्त नाराजगी थी। वे पिछले तीन साल से लगातार इसका विरोध कर रहे थे, लेकिन केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने 14 अगस्त, 2007 को इसकी मंजूरी दे दी थी। एनएचपीसी के पास एनईएए के फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में जाने का विकल्प है।
' रन ऑफ द रिवर' करार दी जा रही इस परियोजना के लिए देवप्रयाग से कोई ढाई किलोमीटर ऊपर अलकनंदा नदी पर 90 मीटर ऊंचा बांध बनाने का प्रस्ताव है। इसके लिए जो जलाशय बनेगा, उसकी लंबाई करीब 27.5 किलोमीटर होगी। इसके कारण टिहरी और पौड़ी जिले के 27 गांव प्रभावित होंगे और करीब 497 हेक्टेयर वन भूमि तथा 503 हेक्टेयर कृषि एवं अन्य भूमि बांध की चपेट में आ जाएगी।
एनईएए में इस परियोजना के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले माटू जनसंगठन के विमल भाई का कहना है कि पहाड़ में स्थापित और प्रस्तावित सभी बिजली परियोजनाओं की ही तरह इस परियोजना में भी स्थानीय जनता के हर अधिकार की जबर्दस्त अनदेखी की गई है।
इसके पर्यावरणीय एवं अन्य प्रभावों पर विचार के लिए 21 जनवरी और 2 जून, 2007 को पौड़ी और टिहरी में जो जन सुनवाई हुई, उसमें जनता को अपनी बात ठीक से रखने का मौका तक नहीं दिया गया। वहां बांध समर्थक अफसरों और उससे फायदा उठाने की ताक में बैठे ठेकेदारों का ही बोलबाला था।
उत्तराखंड सरकार ने इस जलविद्युत परियोजना के निर्माण का जिम्मा राष्ट्रीय जल ऊर्जा निगम (एनएचपीसी)को सौंपा हुआ है। स्थानीय जनता के भारी विरोध के बावजूद इस योजना पर काम जारी रहने से स्थानीय लोगों में सख्त नाराजगी थी। वे पिछले तीन साल से लगातार इसका विरोध कर रहे थे, लेकिन केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने 14 अगस्त, 2007 को इसकी मंजूरी दे दी थी। एनएचपीसी के पास एनईएए के फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में जाने का विकल्प है।
' रन ऑफ द रिवर' करार दी जा रही इस परियोजना के लिए देवप्रयाग से कोई ढाई किलोमीटर ऊपर अलकनंदा नदी पर 90 मीटर ऊंचा बांध बनाने का प्रस्ताव है। इसके लिए जो जलाशय बनेगा, उसकी लंबाई करीब 27.5 किलोमीटर होगी। इसके कारण टिहरी और पौड़ी जिले के 27 गांव प्रभावित होंगे और करीब 497 हेक्टेयर वन भूमि तथा 503 हेक्टेयर कृषि एवं अन्य भूमि बांध की चपेट में आ जाएगी।
एनईएए में इस परियोजना के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले माटू जनसंगठन के विमल भाई का कहना है कि पहाड़ में स्थापित और प्रस्तावित सभी बिजली परियोजनाओं की ही तरह इस परियोजना में भी स्थानीय जनता के हर अधिकार की जबर्दस्त अनदेखी की गई है।
इसके पर्यावरणीय एवं अन्य प्रभावों पर विचार के लिए 21 जनवरी और 2 जून, 2007 को पौड़ी और टिहरी में जो जन सुनवाई हुई, उसमें जनता को अपनी बात ठीक से रखने का मौका तक नहीं दिया गया। वहां बांध समर्थक अफसरों और उससे फायदा उठाने की ताक में बैठे ठेकेदारों का ही बोलबाला था।
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