आखिर कौन सुनेगा पहाड़ के किसानों का दर्द

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धानाचूली: सालों से पहाड़ में गिरती फसल की पैदावार पर न तो सरकार गम्भीर दिखाई दे रही है, न ही जनप्रतिनिधि। हाल यह हो गया है किसान अपनी पीड़ा बताएँ भी तो किसको? उन्हें सूदखोरों व बैंकों के कर्ज से उबरने का मौका ही नहीं मिल पा रहा है। ऐसे में पहाड़ का किसान साल-दर-साल पीछे को जा रहा है। जंगली जानवरों द्वारा हो रहे फसल के नुकसान, महँगे बीज और खाद-मृदा परीक्षण का नही होना, लागत के बराबर भाव न मिलना, न जाने कितनी समस्याओं को लेकर आज अन्नदाता घिर गया है। ऊपर से जब सरकार का किसानों की आय दोगुनी करने की बात का जुमला सुनाई देता है तो घाव पर एक और नश्तर चुभता प्रतीत होता है। पहाड़ के किसान अब इसे अपना उपहास मानकर मौन साध लेने को विवश हैं।

आज आलीशान कोठियों या ऑफिसों में बैठे नेता व अधिकारी जो किसानों के लिये उनकी आय दोगुनी करने की बात करते हैं तो परिहास से अधिक कुछ नजर नहीं आता। धरातल पर उतर कर पहाड़ के किसानों की स्थिति का कोई जायजा तो ले, कि कैसे वह अपनी आजीविका चला रहे हैं। महँगा बीज, महँगी खाद का वास्तविक मूल्य भी अर्जित नहीं हो पाना, जंगली जानवरों का फसल चौपट करना, इन संकटों से घिरा आखिरकार अपना दुखड़ा रोए तो कहाँ रोए? ऐसे में सरकार न तो किसानों को सब्सिडी में बीज ही दिला पाई न ही उसका भाव। घर से लेकर मंडी तक सारे बिचौलियों की ही निकल पड़ती है।

बताते चलें कि नैनीताल के अधिकांश ग्रामीण क्षेत्र में लोग खेतीबाड़ी व बागवानी से अपना जीवन यापन करते आ रहे हैं। पर आज तक यहाँ के किसानों के लिये सरकार या कोई भी जन प्रतिनिधि ठोस कार्ययोजना नहीं दे पाया। इस कारण यहाँ का काश्तकार कर्ज में डूबता जा रहा है। कभी किसान मंडी की बात होती है तो कभी कृषि विज्ञान केन्द्र स्थापना करने की, पर आज तक बात ही हुई है। काम कुछ नहीं हुआ। आलू के महँगे बीज के कारण सैकड़ों किसान मटर इस आस में लगा रहे हैं कि लागत तो कम होगी। मुक्तेश्वर किसान प्रोड्यूसर कम्पनी के एमडी देवेंद्र सिंह बिष्ट का कहना है रामगढ़ एवं धारी व ओखलकांडा विकास खंड का अधिकांश भाग बागवानी और साग-भाजी आलू उत्पादक क्षेत्र है। जहाँ पर लगभग 150 गाँवों के किसान नकदी फसल पैदा कर आजीविका चलाते हैं। पहाड़ के नेताओं ने किसानों के नाम पर बहुत कुछ अपने घरों को भरा लेकिन दुर्भाग्य है कि आज तक किसी भी विकास खंड में न तो कृषि विज्ञान केन्द्र की स्थापना की न ही बीज उत्पादन की ओर ही ध्यान दिया। आज मजबूरी में किसानों को बाहरी प्रदेशों से महँगा आलू का बीज लेना पड़ रहा है।

देवेंद्र कहते हैं कि इसी क्षेत्र में सैकड़ों ऐसे किसान हैं जिनके नाम जमीन तक दर्ज नहीं है। हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी आज सरकार द्वारा भूमिधरी का अधिकार देने की कोशिश तक नहीं की गई। ऐसे में यहाँ की जनता पलायन नहीं करेगी तो क्या करेगी। वे मानते हैं कि मौजूदा स्थिति के चलते आने वाले समय में पहाड़ में सारे खेत बंजर न हो जाएँ। यह एक गम्भीर खतरा है।

1. सरकार व स्थानीय जन प्रतिनिधियों की अनदेखी से हुआ लाचार किसान
2. कई दशकों से नहीं खुल पाए कृषि विज्ञान केन्द्र
3. मृदा परीक्षण कराए बीत गए सालों, पूरे क्षेत्र की एक जैसी रिपोर्ट
4. महँगे बीज के साथ जंगली जानवर बने मुसीबत
5. फसल का भाव लागत के बराबर भी नहीं मिलता


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