अक्षय ऊर्जा की तरफ बढ़ने में है भलाई

सरकार को चाहिए कि वह अक्षय ऊर्जा कानून लागू करे। 2050 तक कार्बन के उत्सर्जन में 4 फीसद की कमी करने की जरूरत है। बिजली उत्पादन में तो क्रमश: बढ़ोतरी करते हुए 2050 तक अक्षय ऊर्जा की हिस्सेदारी करीब 64 प्रतिशत करने की जरूरत है। तभी ऊर्जा मिलेगी और विकास भी अपने ढर्रे पर होगा।

दिल्ली में एक सितम्बर से बिजली की दरों में बढ़ोतरी होने वाली है। इधर, बिजली की दर देश के कई हिस्सों में बढ़ाए गए हैं और आगे भी इनका बढ़ना तय है। इतना होते हुए भी यह नहीं कहा जा सकता कि उन्हें हर समय बिजली सुनिश्चित हो पाएगी बल्कि सच्चाई यह है कि बिजली मिलने के घंटों में लगातार कमी आएगी। दरअसल, देश के महानगरों समेत लगभग सारे शहरों में बिजली कटौती की समस्या घनघोर रूप में मौजूद है। जाहिर है, शहरों में इसकी आपूर्ति से ही जलापूर्ति और कई अन्य साधनों की मौजूदगी जुड़ी है। लेकिन पारंपरिक स्रोतों पर हमारी निर्भरता अभी इतनी है कि मांग से हमेशा आपूर्ति कम ही रहेगी। मामला महज बिजली की नहीं बल्कि संपूर्ण तौर पर ऊर्जा संसाधनों की कमी का है। हमारे यहां कोयला आधारित बिजली उत्पादक संयंत्र ही अधिक हैं और कोयले के भंडार दिनोंदिन कम होते जा रहे हैं।

अभी देश के व्यावसायिक ऊर्जा खपत में कोयले का योगदान करीब 67 प्रतिशत है। दरअसल, अब हम विकास का खामियाजा भुगतने की राह पर हैं। कुछ दिनों में नहीं चेता जाए तो आगे यकीनन व्यवस्थाएं अस्त-व्यस्त होंगी। तमाम तकनीकी विकास के बावजूद अधिकांश देशों में मुख्यतया कोयले और पेट्रोलियम फ्यूल ही प्रयोग में आते हैं। इन क्षयशील संसाधनों के भरोसे अब हम अधिक दूर नहीं जा सकते। अपने देश में तो सौर, पवन, बायोमास से लगभग 6100 मेगावाट विद्युत क्षमता ही पावर ग्रीड को उपलब्ध है, जो कुल संस्थापित क्षमता का मात्र साढ़े 5 प्रतिशत है। कोयला व पेट्रोलियम न सिर्फ क्षयशील ऊर्जा की प्रकृति के कारण बल्कि ग्लोबल वार्मिंग के लिए भी काफी हानिकर हैं। वहीं, विकास के लिए बिजली की मांग में अनवरत वृद्धि होगी। इसे पैदा करने के पारंपरिक साधनों का अगर इसी तरह उपयोग होता रहा तो प्राकृतिक संसाधनों के दोहन की रफ्तार में इजाफा होगा।

अब ये संसाधन अगर क्षय ऊर्जा के स्रोत रहे तो इससे बिजली की मांग पूरी होने का सवाल ही पैदा नहीं होता। हमें कोयला व पेट्रोल आधारित ऊर्जा स्रोतों के बजाय दूसरे विकल्पों पर गौर करना जरूरी है। पवन ऊर्जा, सौर ऊर्जा, जैव ऊर्जा इनमें शामिल हैं। ये ऊर्जा के अक्षय भंडार हैं जो कभी खत्म नहीं होंगे। फिर इनसे प्रदूषण का खतरा भी नहीं है। इन साधनों के साथ-साथ भूगर्भिक गर्मी और समुद्री लहरों से भी बिजली बनाने की कोशिश की जानी चाहिए जबकि परमाणुविक पदार्थों से बिजली बनाने में भी खतरे हैं। वैसे ऊर्जा की बर्बादी अत्यंत कम हो, इसके प्रयास कहीं अधिक जरूरी हैं। कम बिजली खपत करने वाले कॉम्पेक्ट फ्लोरोसेंट लैंप जैसे लाइटिंग उपकरण और न्यून ईंधन खाने वाली गाड़ियों का निर्माण होना चाहिए। फिर कम्प्यूटर, फ्रीज, एयरकंडीशन जैसे 20 सर्वाधिक बिजली खाने वाले उपकरणों की जगह दूसरी कम खपत वाले विकल्पों को अगले 5-6 वर्षों में अनिवार्य करने संबंधित नीति बने।

इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों व वाहन निर्माताओं को स्पष्टतया निर्देश दिए जाएं कि नई तकनीक से युक्त उत्पादों का ही निर्माण करें। अगले दो-तीन सालों में 100 किमी के सफर में 5-6 लीटर से ज्यादा ईंधन खाने वाले गाड़ियों पर रोक लगाई जानी चाहिए। सरकार को चाहिए कि वह अक्षय ऊर्जा कानून लागू करे। 2050 तक कार्बन के उत्सर्जन में 4 फीसद की कमी करने की जरूरत है। बिजली उत्पादन में तो क्रमश: बढ़ोतरी करते हुए 2050 तक अक्षय ऊर्जा की हिस्सेदारी करीब 64 प्रतिशत करने की जरूरत है। तभी ऊर्जा मिलेगी और विकास भी अपने ढर्रे पर होगा।
 

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