आजीविका का सवाल महत्त्वपूर्ण

meet on livelihood
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वाराणसी के गंगा किनारे 200 मी. के अंदर किसी भी प्रकार के निर्माण/पुनर्निर्माण रोक लगाने के तानाशाही सरकारी निर्णय के खिलाफ लोग आक्रोशित हैं। इसे तुगलकी फरमान बता रहे हैं।

इस सरकारी निर्णय के खिलाफ रविदास घाट नगवा पर आयोजित नागरिक संवाद प्रतिरोध का इजहार किया गया। गौरतलब है कि वीडीए (विलेज डेवलपमेन्ट अथॉरिटी) द्वारा यह प्रतिबन्ध लगाया गया है, जबकि इलाहाबाद विकास प्राधिकरण द्वारा नदी किनारे 500 मी. के अंदर यह प्रतिबन्ध है, वीडीए द्वारा जारी नियमावली में मात्र चार पंक्तियों के इस तानाशाही फरमान से क्षेत्र के लोग काफी परेशान हैं और वीडीए के अधिकारियों के भ्रष्ट आचरण से इस नीम पर करेला चढ़ गया है, प्रदेश सरकार के कानून के अनुपालन के क्रम में वीडीए के भ्रष्ट कर्मचारी, अधिकारी फायदा उठा रहे हैं पैसे और पॉवर के सम्बन्ध के आधार पर कुछ चुनिंदा लोगों को निर्माण की अनुमति दे रहे हैं और दूसरी ओर बहुसंख्यक जनता को परेशान कर रहे हैं फलस्वरूप समाज में असमानता का भाव पैदा हो रहा है और कानून के प्रति आदर भाव में भी कमी आ रही है।

संवाद में विख्यात सामाजिक कार्यकर्ता डॉ संदीप पाण्डेय ने कहा की, 'धरोहर संरक्षण जरूरी है लेकिन यह काम जीवित लोगों के अपने घर में सुरक्षित रहने के अधिकार और छोटे मोटे आजीविका के अधिकार को छीन कर सम्पादित नहीं किया जाना चाहिए।' नियमावली में ही लिखा है की मठ मन्दिरों को अनुमति दी जाएगी, अजीब है की भगवान का तो नया घर बन सकता है लेकिन इन्सान अपने घर की मरम्मत भी नहीं करा सकता है और जिस गरीब के पास और कोई विकल्प न हो वो उसी जर्जर घर में दब कर मरने पर मजबूर हो रहा होगा या वीडीए के लोगों की जी हजूरी और जेब गर्म कर रहा होगा।

वाराणसी शहर अति प्राचीन है और यहाँ के घर गलियाँ सब पुराने और जर्जर हैं। लगातार मरम्मत की माँग करती होंगी, ऐसे में ये कैसा कानून है जो मरम्मत पर भी प्रतिबंध लगाता है और यदि किसी व्यक्ति के दो कमरों का घर है कल को उसके बच्चे बड़े हुए, शादी हुई, परिवार बढ़ा तो भी वह दो ही कमरों में रहे ये कैसे सम्भव है? सरकार से माँग की गई कि निर्माण की शर्ते चाहे तो कड़ी बनाये और उसके अनुपालन के तंत्र को भी मजबूत बनाये मगर आम नागरिकों को अपने इस इस तानाशाही फरमान से निजात दिलाये और तत्काल प्रभाव से जो ध्वस्तीकरण और नोटिस आदि की कार्रवाई चल रही है उस पर रोक लगाई जाए और वीडीए को इस कार्यक्रम से अलग करे क्योंकि हाल ही में प्रकाशित कैग की रिपोर्ट में प्रदेश के सारे विकास प्राधिकरणों की कार्यप्रणाली पर अंगुली उठाई गई है और एक बात की बनारस में पिछले तीन-चार दशक में वीडीए ने गंगा किनारे कितने नक्शे पास किया है यह सार्वजानिक कर दें तो वीडीए की कार्यप्रणाली और मुस्तैदी का पता स्वत: चल जाएगा।

संवाद कार्यक्रम में प्रमुख रूप से चिंतामणि सेठ, गोविन्द शर्मा, धनंजय त्रिपाठी, पितांबर मिश्र, बिमलेंदु कुमार , भुवनेश्वर द्विवेदी, गिरीश तिवारी, संत लाल यादव, विनय सिंह, हरी, गीता शास्त्री, डॉ अवधेश दीक्षित, कुमकुम झा, अंजनी तिवारी, रामविलाश सिंह, अस्पताली सोनकर पंकज पाण्डेय सहित सैकड़ों महिला पुरुष उपस्थित रहे। सभा के अन्त में सर्वमत से 25 अगस्त को वीडीए कार्यालय पर प्रदर्शन की योजना बनाई गई है।
 

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