आजादी बचाओ आंदोलन का पानी के निजीकरण के खिलाफ आंदोलन

मुफ्त में मिलने वाला पानी अब बोतल में बिक रहा है
मुफ्त में मिलने वाला पानी अब बोतल में बिक रहा है
भारत में पानी के निजीकरण के लिए विश्वबैंक तथा अन्य फंडिंग एजेंसियों के दबाव में बहुराष्ट्रीय कंपनियों को पानी के कारोबार में मुनाफा कमाने का मौका देने के लिए बड़े पैमाने पर केंद्र और राज्य सरकारों की कोशिशें चल रही हैं। केंद्र सरकार की जल नीति-2012 इसी दिशा में पहला बड़ा कदम है। संविधान में संशोधन करके पनी के मुद्दे को राज्य सूची से निकाल कर समवर्ती सूची में डालने का इरादा है जिससे कि केंद्र सभी राज्यों के लिए एक जैसे नियम कानून बना सके। इन नियम कानूनों को लागू करने के लिए नियमन प्राधिकरण प्रत्येक राज्य में बनाए जा रहे हैं। जलनीति-2012 के मुताबिक पानी का मालिकाना हक भू मालिकों से छीनकर सरकार को सौंपने की तैयारी है। पानी को एक आर्थिक वस्तु (Commodity) माना गया है और उसकी खरीद फरोख्त तथा मूल्य निर्धारण की व्यवस्था जलनीति में की गई है। कई राज्यों ने अपने यहां पानी के निजीकरण की व्यवस्था कर दी है।

ऐसे में भारत में पूरी तरह से स्थितियां निर्मित होती जा रही है जब कारपोरेट्स पानी के कारोबार में उतर पड़े। यदि पानी पर कारपोरेट्स का कब्जा हो जाता है तो देश के आम आदमी के सामने भयावह स्थिति बन जाएगी। उसे पीने के लिए, कृषि के लिए और अपना छोटा मोटा धंधा चलाने के लिए पानी खरीदना पड़ेगा। पानी पर से उसका प्रकृति प्रदत्त अधिकार खत्म हो जाएगा और वह पानी के लिए पूरी तरह बाजारू ताकतों पर निर्भर हो जाएगा।

आंदोलन मानता है कि पानी पर पहला और अंतिम अधिकार स्थानीय जल समुदायों का है। 4-5 जून 2012 को इलाहाबाद में आंदोलन के राष्ट्रीय शिविर में आंदोलन का निर्णय लिया गया है कि पानी के कारपोरेटीकरण के खिलाफ देशव्यापी सिविल नाफरमानी आंदोलन चलाया जाय, कारपोरेटों को भगाया जाय और पानी पर स्थानीय जन समुदाय की मालकियत स्थापित की जाय। अगले कुछ महीने में देशभर में आंदोलन की इकाईयों को सक्रिया किया जाय, जहां इकाईयां नहीं है वहां इकाई बनाकर उन्हें भी सक्रिय किया जाय और पूरी तैयारी के साथ पानी के निजीकरण का विरोध किया जाय।

सिविल नाफरमानी के कदम सिविल नाफरमानी का मतलब है कि पानी की व्यवस्था और नियमन के लिए हम किसी भी नियम-कानून को नहीं मानेंगे। इसका शुरुआत निम्न कदमों से की जाय।

1. पानी के निशुल्क सार्वजनिक जन प्याऊ और पशु प्याऊ लगाकर : सभी इकाईयां अपने-अपने प्रभाव क्षेत्रों में स्थानीय सहयोग से निशुल्क सार्वजनिक जन प्याऊ और पशु प्याऊ लगवाएं।
2. बोतल बंद पानी की बिक्री को रोका जाय। पेप्सी कोला, कोकाकोला और अन्य कंपनियों की पानी की बोतलों को न बिकने दें, उनकी बिक्री के खिलाफ एजेंसियों और दुकानों पर छोटी-छोटी टोलियों में सत्याग्रह आयोजित करें।
3. पानी के बाटलिंग प्लांटों को सत्याग्रह करके बंद करवायें और पानी का कारोबार करने वाली कंपनियों को न घुसने दें।
4. कृषि हेतु तथा अपने छोटे-मोटे धंधे हेतु पानी का उपयोग निशुल्क करें। यदि की शुल्क मांगने आता है तो उसका अहिंसक विरोध करें।
5. अपनी नगर पालिकाओं और टाउन एरिया में सार्वजनिक पानी व्यवस्था के निजीकरण के खिलाफ लोगों को लामबंद करके उसे रोकने की तैयारी करें।
6. नदियों, तालाबों, झीलों और अन्य सार्वजनिक पानी स्रोतों को निजी कंपनियों या ठेकेदारों को सौंपने के खिलाफ आंदोलन की तैयारी करें।
7. पानी के निजीकरण की दिशा में सरकार का कोई नियम-कानून बनता है या आम जनता के लिए की आदेश आता है तो सामूहिक रूप से उसे अस्वीकार करें।

इन कार्यों को करते हुए, नियम कानूनों को तोड़ते हुए यदि प्रशासन द्वारा दमन होता है, गिरफ्तारी होती है या जेल जाना पड़ता है तो उसे सहर्ष स्वीकार करें। पुलिस या प्रशासन से भिड़े नहीं।

आजादी बचाओ आंदोलन की राष्ट्रीय संयोजन समिति ने पानी के निजीकरण के खिलाफ देशव्यापी सिविल नाफरमानी आंदोलन के लिए टीम गठित की है जिसमें-

डॉ. मिथिलेश डांगी (09430708229),
विवेकानंद माथने (09822994821),
राजीव लोचन साह (09411496825),
डॉ. कृष्ण स्वरूप आनंदी (09415369227)
और मनोज त्यागी (09415279612) है।
जरूरत पड़ने पर इस टीम से संपर्क करें।
या राष्ट्रीय कार्यालय के पते-21-बी, मोतीलाल नेहरू रोड, इलाहाबाद-211002,
फोन-09235406243 पर संपर्क करें।

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