खेतले हैं वरुण अपनी प्रणय-लीला।
घोर केश-समूह छितरा, काटती अपने किनारे,
गगन को घन-घन कँपाती, पर्वतों को तोड़ विखरा,
गज घटा-से बन बहाती, आज कर्दम धूमिला सरि
नाचती उन्मादिनी-सी, नाचते हैं वरुण जल में
लहर-लहरों में उठाए हाथ पीला,
आज मंदाकिनी जल में
खेलते हैं वरुण अपनी प्रणय-लीला।
घोर केश-समूह छितरा, काटती अपने किनारे,
गगन को घन-घन कँपाती, पर्वतों को तोड़ विखरा,
गज घटा-से बन बहाती, आज कर्दम धूमिला सरि
नाचती उन्मादिनी-सी, नाचते हैं वरुण जल में
लहर-लहरों में उठाए हाथ पीला,
आज मंदाकिनी जल में
खेलते हैं वरुण अपनी प्रणय-लीला।
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