![कॉप 28 शिखर सम्मेलन](/sites/default/files/styles/node_lead_image/public/2023-12/OIG.t0hWd44Mej5sQ0y.jpeg?itok=xRfJivns)
30 नवंबर को, दुबई ने एक ऐतिहासिक कदम के साथ जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन के लिए पार्टियों का 28वां सम्मेलन (COP28) लॉन्च किया: हानि और क्षति कोष का संचालन। इस फंड का उद्देश्य कमजोर देशों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने में मदद करना है। COP28 के अध्यक्ष सुल्तान अहमद अल जाबेर ने इस निर्णय को एक "ऐतिहासिक" अवसर घोषित किया, यह पहली बार है कि किसी COP के उद्घाटन दिवस पर कोई प्रस्ताव अपनाया गया। दुबई में कॉप 28 सम्मेलन संपन्न हो गया, जिसमें दुनिया भर के करीब 200 देशों ने भागीदारी की। इस सम्मेलन में पहली बार जीवाश्म ईंधन को समाप्त करने की दिशा में शुरुआती कदम उठाने की बात की गई है, इसलिए इसे ऐतिहासिक माना जा रहा है। कॉप 28 समझौते के पांच प्रमुख बिंदु रहे।
पहला, सभी देशों ने सहमति जताई कि जीवाश्म ईंधन की जगह स्वच्छ ऊर्जा की ओर रुख किया जाए, ताकि 2050 तक नेट जीरो के लक्ष्य को हासिल किया जा सके। दूसरा, हरित ऊर्जा को वर्ष 2030 तक तीन गुना किया जाए, ताकि ऊर्जा दक्षता दोगुनी हो जाए। तीसरा, समझौते में ट्रांजिशनल फ्यूल का जिक्र है, जिसका संदर्भ गैस माना जा रहा है। चौथा, सभी देशों को अपने स्वैच्छिक जलवायु लक्ष्य (एनडीसी) को 2024 के अंत तक पूरे करने होंगे। पांचवां, अमीर देशों द्वारा कॉर्बन ऑफसेट के रूप में जंगलों का उपयोग करने के लिए गरीब देशों को भुगतान करने का जिक्र किया गया है।
समझौते के आखिरी मसौदे से कोयला आधारित बिजली उत्पादन को चरणबद्ध तरीके से घटाने के संदों को भारत और चीन के दबाव में हटा दिया गया। जलवायु समझौते में कहा गया है कि सदी के आखिर तक तापमान में वृद्धि को डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिए ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में त्वरित कटौती की जरूरत है।
प्रमुख मुद्दों पर ठोस नतीजा
भले ही दुबई सम्मेलन को ऐतिहासिक बताया जा रहा है, लेकिन तीन प्रमुख मुद्दों पर कोई ठोस नतीजा नहीं निकला है। इसमें सबसे पहला जलवायु वित्त का मामला है। गरीब व विकासशील देशों को जलवायु लक्ष्य हासिल करने के लिए बड़े पैमाने पर धन की आवश्यकता है, लेकिन नए कोष पर कोई सहमति नहीं बन पाई है। दूसरी बात यह है कि स्वास्थ्य व्यवस्था को लचीला बनाने और मीथेन उत्सर्जन में कमी को लेकर कोई लक्ष्य निर्धारित नहीं किया गया है। तीसरा मुद्दा यह है कि अनुकूलन प्रयासों में तेजी लाने के लिए नए लक्ष्यों का ऐलान नहीं हो पाया है और न ही अलग-अलग देशों की जिम्मेदारियां तय की गई हैं।
ज्यादा पूंजी की आवश्यकता
वर्ष 2030 तक दस हजार गीगावाट स्थापित रिन्यूएबल एनर्जी (आरई) के लक्ष्य को हासिल करने के लिए सरकारों और वित्तीय संस्थानों को निवेश बढ़ाने और ज्यादा पूंजी की आवश्यकता होगी। उदाहरण के लिए अफ्रीकी देशों को रिन्यूएबल एनर्जी (आरई) परियोजनाओं में वैश्विक निवेश का तीन फीसदी से भी कम हिस्सा मिलता है। इस सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी हिस्सा लिया। भारत सहित ग्लोबल साउथ के देशों की जलवायु परिवर्तन में छोटी भूमिका है, लेकिन उन पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव बहुत अधिक है। लेकिन संसाधनों की कमी के बावजूद, ये देश जलवायु कार्रवाई के लिए प्रतिबद्ध हैं।
स्रोत : अमर उजाला उड़ान, 20 दिसंबर 2023, वर्ष 10 अंक 50 बुधवार
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