भोपाल में 2-3 दिसम्बर, 1984 की दरम्यानी रात हुए गैस काण्ड का दर्द लोगों के जेहन में एकदम ताजा हो उठा, जब शहरवासियों ने भोपाल गैस त्रासदी पर बनी फिल्म ‘भोपाल : अ प्रेयर फॉर रेन’ देखी। उस भयावह त्रासदी से दर्शक दुबारा रूबरू हुए। खचाखच हुए दर्शकदीर्घा में प्रदेश के मुख्यमन्त्री शिवराज सिंह के साथ ही कई मन्त्रीगण सपरिवार उपस्थित थे। मुख्यमन्त्री फिल्म देखकर इतने अभिभूत हुए कि तुरन्त ही फिल्म को कर मुक्त करने का ऐलान कर दिया लेकिन गृह मन्त्री बाबूलाल गौर ने विवादास्पद बयान दे डाला। उन्होंने कहा कि फिल्म वॉरेन एंडरसन के पक्ष में बनाई गई है। उनका गुणगान करते हुए यूनियन कार्बाइड हादसे के लिए कम्पनी के अन्य अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराया गया है। गौर ने कहा, “फिल्म का मकसद गैस त्रासदी के मुख्य आरोपी एंडरसन के प्रति भारतीयों के मन की नफरत को सहानुभूति में बदलना लगता है।” गृह मन्त्री ने कहा, कि फिल्म में बताया गया है, कि देश के बाहर जहाँ-जहाँ भी यूनियन कार्बाइड कम्पनी चल रही है, वहाँ-वहाँ सरकारी नियमों के अनुसार काम चल रहा है। फिल्म में ऐसा देश और देश के बाहर यूनियन कार्बाइड के कारखानों के विरोध में हो रहे आन्दोलनों को शान्त करने के लिए किया गया है। और यह गलत है।
इस फिल्म में हॉलीवुड के अनुभवी और सशक्त कलाकार मार्टिन शीन ने गैस त्रासदी के कथित मुख्य आरोपी वॉरेन एंडरसन की भूमिका निभाई है, जो यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन के सीईओ थे। फिल्म में एंडरसन को बहुत ही सहज और सरल व्यक्ति के रूप में चित्रित किया गया है जो दर्शकों के बीच एंडरसन की सकारात्मक छवि बनाने का प्रयास है। हालांकि शीन कहते हैं कि उन्हें बुरे व्यक्तियों की भूमिका उतनी पसन्द नहीं है, जितनी वह अच्छे व्यक्ति का किरदार सहज तरीके से निभाते हैं। शीन अभी कुछ समय से सामाजिक कार्यों से जुड़े हैं। इसलिए भी फिल्म में वॉरेन एंडरसन को विलेन नहीं, बल्कि एक ईमानदार व्यक्ति के रूप में प्रस्तूत करने में उन्हें ज्यादा परेशानी नहीं हुई। शीन ने स्क्रीप्ट के साथ भले ही न्याय किया हो, लेकिन दर्शकों को एंडरसन को इस रूप में चित्रित किया जाना नगवार गुजरा।
फिल्म में संवाद के जरिए यह बताने की कोशिश भी की गई है कि हादशे की जिम्मेदार तत्कालीन प्रदेश सरकार हैं, क्योंकि जब कारखाना बनाया गया था, तब वहाँ कोई बस्ती नहीं बनी थी और वह स्थान वीरान और शहर से दूर था, लेकिन कारखाना बनते ही उसके आस-पास बस्ती बनने लगी और सरकार ने इसे नहीं रोका।
फिल्म में तत्कालीन सरकार की खींचाई करते हुए कई बार दिखाया गया है- मसलन पर्दे पर मुख्यमन्त्री शुक्ला का वॉरेन एंडरसन के साथ बैठकर शराब पीना और कम्पनी के पक्ष में कागजात पर हस्ताक्षर करना। इसके बाद कम्पनी के एक वरिष्ठ अधिकारी द्वारा उन्हें बन्द पैकेट थमाना और साथ में चुनाव की बात करना। ये सारी बातें यह दिखाने की कोशिश है, कि यहाँ राजनीतिक लाभ के लिए नेता किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं?
फिल्म की शुरुआत ही मुख्य किरदार के साइकिल रिक्शा चलाने से होती है जबकि भोपाल में साइकिल रिक्शा है ही नहीं। रिक्शे के टूट जाने से दाने-दाने को मोहताज मुख्य नायक (राजपाल यादव) को किसी तरह यूनियन कार्बाइड में काम मिल जाता है, जिससे उसकी जिन्दगी की गाड़ी आगे चल पड़ती है। जरूरतमन्द नायक एक आज्ञाकारी कर्मचारी के रूप में जो भी काम उसे सौंपा जाता है, उससे वह कभी पीछे नहीं रहता। केमिकल प्लांट से जिस दिन जहरीली गैस का रिसाव हुआ था उस दिन उसकी बहन की शादी थी। लेकिन वह शादी बीच में ही छोड़कर प्लांट के रिसाव को बन्द करने पहुँच जाता है, तब तक जहरीली गैस ने हजारों जिन्दगियाँ लील ली थी, जिसमें उसकी अर्धांगिनी मुख्य नायिका (तनिष्ठा चटर्जी) भी थीं।
फिल्म ‘भोपाल : अ प्रेयर फॉर रेन’ के बारे में यह विवाद छिड़ गया है कि गैस काण्ड के मुख्य आरोपी, यूनियन कार्बाइड के कर्ता-धर्ता वॉरेन एंडरसन के प्रति गुस्से को शान्त करने की कोशिश है या वाकई पीड़ितों के प्रति हमदर्दी और एक ऐतिहासिक त्रासदी को दर्ज करने की कोशिश? हाल में भोपाल में इसके प्रदर्शन में मौजुद भावुक मुख्यमन्त्री ने फिल्म को किया कर मुक्त, तो गृह मन्त्री ने बताया की यह एंडरसन के पाप धोने की कोशिश है।गैस काण्ड की 30वीं बरसी के मौके पर सहारा मूवी स्टूडियो और रिजिंग स्टार एंटरटेनमेंट ने यह फिल्म बनाई है। फिल्म 7 नवम्बर को ही अमेरिका में रीलिज हो चुकी है और वहाँ उसे दर्शकों की अच्छी प्रतिक्रिया मिली है। मार्टिन शीन बताते हैं, “मुझे इस घटना के बारे में जानकारी थी, इसलिए इस किरदार को निभाने के लिए मैं मजबूर हो गया था। जैसे-जैसे अभिनेताओं की उम्र बढ़ती है, वैसे-वैसे अभिनय को लेकर समझ बढ़ती है। इस घटना के बारे में मैंने उस वक्त अखबारों में पढ़ा और टीवी पर देखा था। मैं बता नहीं सकता कि वह कितनी भयावह घटना थी, क्योंकि लोगों की मौत के आँकड़े हर दिन बढ़ रहे थे, जिसे तब बहुत कम करके बताया जा रहा था। हफ्तों बाद मरने वालों का आँकड़ा इस कदर बढ़ता गया कि मैं टूट-सा गया था। हालांकि, कुछ समय बाद इस घटना से तो ऊबर गया, लेकिन यादें अब भी सालती हैं।” एंडरसन के किरदार के बारे वे वह बताते हैं, “मैंने यह किरदार इसलिए किया, क्योंकि मैं उस घटना की बारीकियों को करीब से देखना चाहता था। सब कुछ जानने का मौका मिल रहा था।” व्यक्तिगत रूप में वह एंडरसन के पक्ष में बोलते हुए कहा कि भारत छोड़ने के बाद एंडरसन कभी दुनिया के सामने नहीं आया। वह इस घटना से बहुत आहत था और गुमनामी की जिन्दगी जीया और गुमनामी में ही दुनिया को अलविदा कह दिया। शीन बताते हैं कि एंडरसन जैसा था, वैसा ही दिखाया गया है। पश्चिमी देश का एक सीईओ जो कम्पनी में काम कर रहे लोगों के प्रति बेपरवाह नजरिए वाला इंसान था। उसे लगता था कि वो जो भी कर रहा है, वह सही है और उसमें ही लोगों की भलाई है। यह एक बिग बजट फिल्म है और इंडिपेंडेंट बॉलीवुड प्रोजेक्ट नहीं था। एक ऐसी फिल्म, जिसमें समाज की आवाज और दर्द है। इस तरह का सिनेमा बनाना कठिन होता है। बॉलीवुड में ऐसे विषय बेहतरीन नहीं बन सकते।
इस फिल्म की शूटिंग 5 साल पहले हैदराबाद में हुई थी, जब इस घटना को 25 साल हो चुके थे। तब इसकी शूटिंग इंटरनेश्नल फीचर फिल्म के तौर पर हुई थी और ज्यादातर कलाकर घटना से अनजान थे। निर्माता ने भोपाल के लोगों, पीड़ितों, समाजसेवी संगठनों और प्लांट के कर्मचारियों सभी से बात की थी। उन्होंने अमेरिका और भारत के बीच हुई केमिकल प्लांट से जुड़ी डील के कागजात भी खंगाले, लेकिन इस बीच एंडरसन कहीं नहीं मिला। कुछ महीने पहले पता चला कि एंडरसन की मौत हो चुकी है। इसकी भी जानकारी सार्वजनिक नहीं हुई। फिल्म निर्माता ने एंडरसन से संपर्क करने की कोशिश की। वो चाहते थे, कि एंडरसन फिल्म की कहानी पढ़े, लेकिन वो कभी सामने नहीं आया।
इधर, निर्माताओं ने किसी भी कानूनी पचड़े से बचने के लिए फिल्म का इंश्योरेंस कवरेज लिया है। यह इंश्योरेंस 10 करोड़ डॉलर (करीब 6.18 अरब रुपए) का बताया जा रहा है। निर्देशक रवि कुमार बताते हैं कि इस तरह की फिल्म इंश्योरेंस कवर के बिना नहीं बनाई जा सकती क्योंकि निर्माता कोई चांस नहीं लेना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि हमारे खिलाफ किसी भी कानूनी मामले से बचने के लिए इंश्योरेंस ठीक है। फिल्म के मुनाफे का एक हिस्सा सम्भावना ट्रस्ट को जाएगा, जो भोपाल गैस त्रासदी में पीड़ितों के लिए काम करता है।
न्यूयॉर्क में हुई इस फिल्म की स्क्रीनिंग में हॉलीवुड के कई दिग्गज मौजूद थे। वहीं दर्शकों में फिल्म के निर्देशक रवि कुमार, निर्माता चांदनी रॉय, रवि वालिया और एक्टर मार्टिन शीन सहित कई सदस्य थे। सभी इतिहास का एक ऐसा अध्याय देख रहे थे, जिसे मानव इतिहास की सबसे बड़ी त्रासदी कहा जाता है। भोपाल में फिल्म के मुख्य कलाकार तनिष्ठा चटर्जी, राजपाल यादव, मनोज जोशी के साथ ही निर्देशक रवि कुमार मौजूद थे।
इस फिल्म में हॉलीवुड के अनुभवी और सशक्त कलाकार मार्टिन शीन ने गैस त्रासदी के कथित मुख्य आरोपी वॉरेन एंडरसन की भूमिका निभाई है, जो यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन के सीईओ थे। फिल्म में एंडरसन को बहुत ही सहज और सरल व्यक्ति के रूप में चित्रित किया गया है जो दर्शकों के बीच एंडरसन की सकारात्मक छवि बनाने का प्रयास है। हालांकि शीन कहते हैं कि उन्हें बुरे व्यक्तियों की भूमिका उतनी पसन्द नहीं है, जितनी वह अच्छे व्यक्ति का किरदार सहज तरीके से निभाते हैं। शीन अभी कुछ समय से सामाजिक कार्यों से जुड़े हैं। इसलिए भी फिल्म में वॉरेन एंडरसन को विलेन नहीं, बल्कि एक ईमानदार व्यक्ति के रूप में प्रस्तूत करने में उन्हें ज्यादा परेशानी नहीं हुई। शीन ने स्क्रीप्ट के साथ भले ही न्याय किया हो, लेकिन दर्शकों को एंडरसन को इस रूप में चित्रित किया जाना नगवार गुजरा।
फिल्म में संवाद के जरिए यह बताने की कोशिश भी की गई है कि हादशे की जिम्मेदार तत्कालीन प्रदेश सरकार हैं, क्योंकि जब कारखाना बनाया गया था, तब वहाँ कोई बस्ती नहीं बनी थी और वह स्थान वीरान और शहर से दूर था, लेकिन कारखाना बनते ही उसके आस-पास बस्ती बनने लगी और सरकार ने इसे नहीं रोका।
फिल्म में तत्कालीन सरकार की खींचाई करते हुए कई बार दिखाया गया है- मसलन पर्दे पर मुख्यमन्त्री शुक्ला का वॉरेन एंडरसन के साथ बैठकर शराब पीना और कम्पनी के पक्ष में कागजात पर हस्ताक्षर करना। इसके बाद कम्पनी के एक वरिष्ठ अधिकारी द्वारा उन्हें बन्द पैकेट थमाना और साथ में चुनाव की बात करना। ये सारी बातें यह दिखाने की कोशिश है, कि यहाँ राजनीतिक लाभ के लिए नेता किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं?
फिल्म की शुरुआत ही मुख्य किरदार के साइकिल रिक्शा चलाने से होती है जबकि भोपाल में साइकिल रिक्शा है ही नहीं। रिक्शे के टूट जाने से दाने-दाने को मोहताज मुख्य नायक (राजपाल यादव) को किसी तरह यूनियन कार्बाइड में काम मिल जाता है, जिससे उसकी जिन्दगी की गाड़ी आगे चल पड़ती है। जरूरतमन्द नायक एक आज्ञाकारी कर्मचारी के रूप में जो भी काम उसे सौंपा जाता है, उससे वह कभी पीछे नहीं रहता। केमिकल प्लांट से जिस दिन जहरीली गैस का रिसाव हुआ था उस दिन उसकी बहन की शादी थी। लेकिन वह शादी बीच में ही छोड़कर प्लांट के रिसाव को बन्द करने पहुँच जाता है, तब तक जहरीली गैस ने हजारों जिन्दगियाँ लील ली थी, जिसमें उसकी अर्धांगिनी मुख्य नायिका (तनिष्ठा चटर्जी) भी थीं।
फिल्म ‘भोपाल : अ प्रेयर फॉर रेन’ के बारे में यह विवाद छिड़ गया है कि गैस काण्ड के मुख्य आरोपी, यूनियन कार्बाइड के कर्ता-धर्ता वॉरेन एंडरसन के प्रति गुस्से को शान्त करने की कोशिश है या वाकई पीड़ितों के प्रति हमदर्दी और एक ऐतिहासिक त्रासदी को दर्ज करने की कोशिश? हाल में भोपाल में इसके प्रदर्शन में मौजुद भावुक मुख्यमन्त्री ने फिल्म को किया कर मुक्त, तो गृह मन्त्री ने बताया की यह एंडरसन के पाप धोने की कोशिश है।गैस काण्ड की 30वीं बरसी के मौके पर सहारा मूवी स्टूडियो और रिजिंग स्टार एंटरटेनमेंट ने यह फिल्म बनाई है। फिल्म 7 नवम्बर को ही अमेरिका में रीलिज हो चुकी है और वहाँ उसे दर्शकों की अच्छी प्रतिक्रिया मिली है। मार्टिन शीन बताते हैं, “मुझे इस घटना के बारे में जानकारी थी, इसलिए इस किरदार को निभाने के लिए मैं मजबूर हो गया था। जैसे-जैसे अभिनेताओं की उम्र बढ़ती है, वैसे-वैसे अभिनय को लेकर समझ बढ़ती है। इस घटना के बारे में मैंने उस वक्त अखबारों में पढ़ा और टीवी पर देखा था। मैं बता नहीं सकता कि वह कितनी भयावह घटना थी, क्योंकि लोगों की मौत के आँकड़े हर दिन बढ़ रहे थे, जिसे तब बहुत कम करके बताया जा रहा था। हफ्तों बाद मरने वालों का आँकड़ा इस कदर बढ़ता गया कि मैं टूट-सा गया था। हालांकि, कुछ समय बाद इस घटना से तो ऊबर गया, लेकिन यादें अब भी सालती हैं।” एंडरसन के किरदार के बारे वे वह बताते हैं, “मैंने यह किरदार इसलिए किया, क्योंकि मैं उस घटना की बारीकियों को करीब से देखना चाहता था। सब कुछ जानने का मौका मिल रहा था।” व्यक्तिगत रूप में वह एंडरसन के पक्ष में बोलते हुए कहा कि भारत छोड़ने के बाद एंडरसन कभी दुनिया के सामने नहीं आया। वह इस घटना से बहुत आहत था और गुमनामी की जिन्दगी जीया और गुमनामी में ही दुनिया को अलविदा कह दिया। शीन बताते हैं कि एंडरसन जैसा था, वैसा ही दिखाया गया है। पश्चिमी देश का एक सीईओ जो कम्पनी में काम कर रहे लोगों के प्रति बेपरवाह नजरिए वाला इंसान था। उसे लगता था कि वो जो भी कर रहा है, वह सही है और उसमें ही लोगों की भलाई है। यह एक बिग बजट फिल्म है और इंडिपेंडेंट बॉलीवुड प्रोजेक्ट नहीं था। एक ऐसी फिल्म, जिसमें समाज की आवाज और दर्द है। इस तरह का सिनेमा बनाना कठिन होता है। बॉलीवुड में ऐसे विषय बेहतरीन नहीं बन सकते।
इस फिल्म की शूटिंग 5 साल पहले हैदराबाद में हुई थी, जब इस घटना को 25 साल हो चुके थे। तब इसकी शूटिंग इंटरनेश्नल फीचर फिल्म के तौर पर हुई थी और ज्यादातर कलाकर घटना से अनजान थे। निर्माता ने भोपाल के लोगों, पीड़ितों, समाजसेवी संगठनों और प्लांट के कर्मचारियों सभी से बात की थी। उन्होंने अमेरिका और भारत के बीच हुई केमिकल प्लांट से जुड़ी डील के कागजात भी खंगाले, लेकिन इस बीच एंडरसन कहीं नहीं मिला। कुछ महीने पहले पता चला कि एंडरसन की मौत हो चुकी है। इसकी भी जानकारी सार्वजनिक नहीं हुई। फिल्म निर्माता ने एंडरसन से संपर्क करने की कोशिश की। वो चाहते थे, कि एंडरसन फिल्म की कहानी पढ़े, लेकिन वो कभी सामने नहीं आया।
इधर, निर्माताओं ने किसी भी कानूनी पचड़े से बचने के लिए फिल्म का इंश्योरेंस कवरेज लिया है। यह इंश्योरेंस 10 करोड़ डॉलर (करीब 6.18 अरब रुपए) का बताया जा रहा है। निर्देशक रवि कुमार बताते हैं कि इस तरह की फिल्म इंश्योरेंस कवर के बिना नहीं बनाई जा सकती क्योंकि निर्माता कोई चांस नहीं लेना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि हमारे खिलाफ किसी भी कानूनी मामले से बचने के लिए इंश्योरेंस ठीक है। फिल्म के मुनाफे का एक हिस्सा सम्भावना ट्रस्ट को जाएगा, जो भोपाल गैस त्रासदी में पीड़ितों के लिए काम करता है।
न्यूयॉर्क में हुई इस फिल्म की स्क्रीनिंग में हॉलीवुड के कई दिग्गज मौजूद थे। वहीं दर्शकों में फिल्म के निर्देशक रवि कुमार, निर्माता चांदनी रॉय, रवि वालिया और एक्टर मार्टिन शीन सहित कई सदस्य थे। सभी इतिहास का एक ऐसा अध्याय देख रहे थे, जिसे मानव इतिहास की सबसे बड़ी त्रासदी कहा जाता है। भोपाल में फिल्म के मुख्य कलाकार तनिष्ठा चटर्जी, राजपाल यादव, मनोज जोशी के साथ ही निर्देशक रवि कुमार मौजूद थे।
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Post By: Shivendra