भारतीय राष्ट्रीय कला एवं संस्कृति निधि के ठाकुर रणवीर सिंह ने इस ओर प्रशासन का ध्यान आकर्षित किया था। अनदेखी के कारण आज भी यह क्षेत्र तलवंडी, दादाबाड़ी के लिये वर्षा के दिनों में अभिशाप बन जाता है। अब यह तालाब पूर्णतया नष्ट है। इस प्रकार रंगबाड़ी व खड़े गणेश जी के पीछे भी एक तालाब है जिसके आसपास भू-माफियाओं ने भू-खण्ड काट डाले। 1347 में कोटा के पूर्व शासक धीरदेव ने 13 तालाब बनवाए थे जिन्हें आज शासकों ने बेरहमी से नष्ट होने दिया। अरावली पर्वतमालाओं की गोद में बसा बूंदी शहर प्राचीन हाड़ौती की राजधानी रहा। ऐतिहासिक विरासत को समेटे इस पर्यटन नगरी में जलाशयों की श्रेष्ठ परम्परा विद्यमान रही है।
जैत सागर
यह बूंदी नगर का सबसे विशाल जलाशय है। अपनी विशालता के कारण ही यह तालाब बूंदी निवासियों द्वारा बड़े तालाब के नाम से पुकारा जाता है। कहते हैं कि इसका निर्माण मीणा जैता ने कराया था, जिससे राव देवा ने बूंदी हस्तगत की थी। उसी से इसका नाम जैत सागर पड़ा। बूंदी के राव सुर्जन (1611-42 वि.) की माता गहलोत जी जयवंती ने सम्वत 1625 में इसकी कच्ची पाल की पक्की कराया। पुराने लोग इसे जोध सागर भी कहते हैं। महाराव बुद्ध सिंह (1752-96 वि.) का छोटा भाई जोधसिंह सम्वत 1763 वि.) की गणगौर के दिन उत्सव माने के लिये अपनी पत्नी स्वरूप कुंवरी के साथ नौका में जल क्रीड़ा कर रहा था। नाच और गानों के रंग के साथ शराब के रंग में किसी मस्त हाथी ने नाव उलट दी। जोध सिंह अपनी पत्नी सहित इस सरोवर में डूब गया। उसी के शोक में राव बुद्ध सिंह ने गणगौर का राजकीय स्तर पर मनाना बन्द कर दिया। जन साधारण में आज भी यह घटना इसी रूप में प्रचलित है।
“मैमता गज आ मल्या, खंचगी लेवी डोर
जैता सागर माइनें (हाठों) ले डूब्यो गणगौर”
आज इस झील के किनारे सुख महल पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र है। झील में नौका विहार का आनन्द किसी भी तरह माऊंट आबू की नक्की झील से कम नहीं है। तालाबों की श्रेष्ठ परम्परा का यह जीवन्त रूप में अब भी मौजूद है। बढ़ती आबादी और लोगों की व्यावसायिक प्रवृत्ति का दबाव इस पर भी खतरे के रूप में मँडरा रहा है, जिसे बचाने की कोई योजना हमारे शासकों के पास नहीं है।
जैत सागर के किनारे राजाओं महाराजाओं के सुख के लिये 1830 से 76 के बीच राव राजा विष्णु सिंह ने सुख महल बनाया जो आज भी झील रूपी रानी के मुकुट के समान दिखाई देता है। ऐसा वर्णन है कि अंग्रेजी कवि रुडयार्ड किपलिंग ने जैत सागर के पर्वतीय सौन्दर्य की अनूठी छटा का रसपान किया था। अतिथि सत्कार की श्रेष्ठ परम्परा का जीवन्त गवाह बन गया है, सुख महल।
फूल सागर
बूंदी से तीन मील पश्चिम की ओर रमणीक, सरोवर है इसका निर्माण महाराव राजा भोज (1642-64 वि.) की उप पत्नी (रखैल) ललफूता जी ने सम्वत 1659 वि. में बनवाया था। इसके किनारे सुरम्य उद्यान व बावड़ी महाराव राजा मानसिंह (1715-1738 वि.) तथा उद्यान के पीछे स्थित महल कुंड छतरियाँ महाराव राजा राम सिंह जी (1878-1943) के शासन में बनी। इसी झील को भी सरकार के राजस्व, वन विभाग ने लावारिस छोड़ रखा है।
नवलखा
नवलखा सागर या छोटा तालाब बूंदी का सबसे सुन्दर जलाशय रहा है इसे अब नवल सागर के नाम से भी पुकारा जाता है। शहर के बीच तालाब और उसमें छतरी युक्त शिव मन्दिर होने के कारण राजस्थान के रमणीक, सरोवरों की पंक्ति में एक है। इसका निर्माण महाराजा उम्मेद सिंह ने (1796-1827) कराया था। इसके उत्तरी किनारे पर बहालचन्द मेहता के पारिवारिक मकान होने से इस मोहल्ले का नाम बालचन्द पाड़ा हो गया। पूर्व दिशा में मोती महल होने से घाट को सुन्दर घाट कहा जाने लगा।
आज भी इस तालाब के जल में तीज डोलयात्रा पर प्रतिमाओं का स्नान होता है। दुर्भाग्य से शहर के कई गन्दे नाले इस झील में गिरने से इसकी मौलिकता समाप्त होती जा रही है। जयपुर-जबलपुर राष्ट्रीय राजमार्ग से गुजरने वाले हर यात्री का मन मोहने वाले इस तालाब को जिला प्रशासन और नगरपालिका ने अपने हाल पर छोड़ रखा है। इसके बारे में लोक कहावत है।
“बाण गगा तो वाराणसी, बड़ो तालाब कासी
नौ लक्खा में न्हासी वो ही बैकुंठा में जासी”
कनक सागर
इसे दुगारी का तालाब भी कहा जाता है। दुगारी बूंदी जिले का बड़ा ठिकाना रहा है। यह तालाब प्राकृतिक जलस्रोतों में सबसे बड़ा है, जिसमें आज भी प्रवासी पक्षी बहुतायत में आते हैं। राव राजा भोजू (1055 वि.) की रानी कनकावती ने दुगारी की घाटी में इसका निर्माण कराया। था। इसके किनारे जलेश्वरनाथ का शिखर बंध मन्दिर है जिसे तालाब के निर्माण के साथ ही कनकावती ने बनवाया था।
मन्दिर पर उत्कीर्ण शिलालेख से पात चलता है कि इस मन्दिर का निर्माण 1112 वि. में पूर्ण हो गया था। जलाशय के किनारे ही दुगारी का दुर्ग है। आज भी तालाब सिंचाई का महत्त्वपूर्ण स्रोत है। प्रकृतिविज्ञ राकेश व्यास बताते हैं कि दुगारी का तालाब पक्षी विहार की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण पर्यटन स्थल बन सकता है। यहाँ पर पेती केंट (केरट) नामक दुर्लभ पक्षी देखा गया है। शिकारियों के कारण इस तालाब की नैसर्गिक सुन्दरता पर खतरा मँडरा रहा है।
रामसर
हिंडोली के रामसर तालाब का निर्माण किसी रामशाह नामक महाजन ने 16वीं शताब्दी में कराया था। महाराव राजा रघुवीर सिंह ने (1946-1948 वि.) इसकी पाल को पक्की करा कर उस पर सुन्दर कोठी, बारहद्वारी और बाग लगाकर तालाब के सौन्दर्य में चार चाँद लगा दिये। यह सरोवर भी सिंचाई के काम आता था।
मवल सागर
विख्यात सोलंकी कुंवण नौणसी के नाम पर बसे उपनगर नैनवां के चारों ओर तालाब थे। इनका निर्माण नगर की बसावट के साथ ही हुआ। इनमें से एक को नवल सागर कहा जाता है। इसके किनारे नैणसी कुंर और सतियों की छतरियाँ हैं जिनके अवशेष मात्र हैं। एक तालाब में बाकायदा खेती होने लगी है। पालों पर पक्के निर्माण हो गए तथा नगर की गन्दगी इनमें डाली जाने लगी है।
किशोर सागर
कोटा शहर के मध्य स्थित किशोर सागर (छत्र विलास) तालाब और उसके बीच स्थित जगमन्दिर दोनों अलग-अलग समय में अलग-अलग राजाओं ने बनवाए थे। किशोर सागर जिसे बड़ा तालाब भी कहा जाता है का निर्माण बूंदी के राव राजा सुर्जन के पुत्र राजकुमार धीरेन्द्र ने 1346 ईस्वी में कराया था।
उस जमाने में यह तालाब आज जहाँ पुरानी सब्जी मंडी स्थित प्रोटेस्टेंट चर्च स्थापित है के किनारों को छूता था क्योंकि 1892 में मेयो कालेज से शिक्षा प्राप्त कर लौटते ही महाराव उम्मेद सिंह द्वितीय ने चर्च के लिये भूमि इसी तालाब के किनारे प्रदान की थी। उस समय तालाब का विस्तार नई सब्जी मंडी कोट तक था। लेकिन कालान्तर में बस्तियों के फैलाव से तालाब पूरता गया और पूरते-पूरते अब यहाँ नगर विकास न्यास ने कपड़ा मार्केट खड़ा कर दिया।
यहाँ के एक राजा दुर्जनशाल सिंह की रानी बृजकंवर, मेवाड़ के राणा संग्राम सिंह की पुत्री और राजकुमार जगतसिंह की बहिन थी। कहा जाता है कि यह रानी अपनी पैतृक झीलों की नगरी उदयपुर की याद में खोये रहकर महल के झरोखे में बैठे घंटों चम्बल नदी को निहारा करती थी। रानी को प्रसन्न करने के लिये महाराव दुर्जनशाल ने किशोर सागर नामक इस झील का निर्माण कराया। तालाब के बीच स्थित जगमन्दिर शिल्प और सौन्दर्य से परिपूर्ण संध्या की लालिमा युक्त आकाश में जल के मध्य से जब अपनी अप्रतिम छटा बिखेरता है तो इसकी शोभा देखते ही बनती है। जगमन्दिर में पहले सात खजूर के वृक्ष थे अब तीन ही दिखाई देते हैं।
तालाब की पाल को महाराव किशोर सिंह ने बनवाया था। इसका विकास क्रमिक रूप से हुआ। इस ऐतिहासिक विरासत को अब बढ़ते अतिक्रमणों से एवं अनियंत्रित विकास कार्यों के कारण गम्भीर खतरा हो गया। तालाब के किनारों पर मन्दिरों की आड़ में स्वार्थी तत्वों ने राजनीतिक संरक्षण प्राप्त कर अवैध निर्माण खड़े कर लिये। चम्बल की दाईं मुख्य नहर इसी तालाब से होकर निकाली गई। जब नहर चलती है तो इसें पानी रहता है अन्यथा कीचड़ भरा डाबरा ही बना रहता है जिसमें मच्छर पैदा होते हैं।
शहर की विभिन्न बस्तियों का गन्दा पानी नहर के पानी के साथ तालाब में आ जाता है जिससे इसमें जलकुम्भी फैल जाती है। गर्मी में जब नहर बन्द हो जाती है तो इसमें भैंसे तैरती हैं। सामन्तीकाल में कठोर नियमों के चलते कोई ऐतिहासिक विरासत को नुकसान पहुँचाने का साहस नहीं करता था। आजादी के बाद लोकतांत्रिक सरकारों का ध्यान कृषि औद्योगिक व सामाजिक विकास का रहा। शहर की बढ़ती जनसंख्या अत्रिकमण की उच्छृंखल प्रवृत्ति दूषित राजनीतिक स्वार्थों क कारण इस किशोर सागर तालाब से सटी जमीन पर अवैध (बाद में वैध) निर्माण हो गए। गीताभवन, लकड़ी बाजार एवं मन्दिरों के नाम पर बदनुमा दाग है।
आपाधापी वाली व्यावसायिक प्रवृत्ति के जोर पकड़ने से नव धनिक वर्ग ने जन्म लिया। अवैध तरीकों से सरकारी सार्वजनिक जमीनों पर कब्जे कर उन्हें ऊँचे दामों पर बेजने में सिद्धहस्त गिरोह पनप गए। यहाँ तक कि आम जनता के साथ नगर निगम ने भी कूड़ा कचरा तालाब में डालना शुरू कर दिया जिससे पर्यावरण प्रदूषण की समस्या मुँह बाए खड़ी हो गई।
अराजक ने स्वेच्छाचारी प्रवृत्ति के लोगों तथा राजनीतिक स्वार्थी गिरोह के आगे लाचार प्रशासन नकारा साबित हुआ तालाब परिसर के प्राकृतिक दृष्टि से सर्वोत्तम कोनों पर आज अवैध देवस्थान बन गए। कुछ ही वर्ष पूर्व नाग देवता स्मृति स्थल के नाम पर अवांछित निर्माण किया। दक्षिणपूर्व में बृज विलास भवन (अब संग्रहालय) के पास पक्का निर्माण कर धन कमाने का कुकृत्य जारी है। ऐसे स्थानों पर सत्तादल के लोग मंत्री व अफसर समारोहों में भाग लेकर अतिक्रमणकारियों का हौसला आफजाई करते हैं।
तूफानी गति से बढ़ती आबादी के दौर में आवासीय जरूरतें पूरी करने में शासन असमर्थ रहा। ऐसे में किसी ऐतिहासिक कलात्मक पर्यटन दृष्टि से महत्त्वपूर्ण विरासत के संरक्षण का कार्य दृढ़ इच्छा शक्ति के बिना अधूरा है। किशोर सागर तालाब की पाल पर ही सार्वजनिक निर्माण विभाग ने राष्ट्रीय राजमार्ग निकाल रखा है जिस पर दौड़ते वाहनों की रेलमपेल में तालाब का संवर्धन महती जरूरत है। जिसे भूला दिया गया।
गणेश तालाब
140 वर्ष पूर्व रियासत काल में बनाया गया गणेश तालाब पर राजस्थान आवासन मण्डल ने देखते-ही-देखते बस्ती खड़ी कर दी। कोटा के मास्टर प्लान 2001 के अनुसार यह खुली जगह रहनी चाहिए। यहाँ पर 12’ ऊँची और 5’ मोटी पाल थी और बीच-बीच में कलात्मक बुर्ज जैसी बनावट थी। यह तालाब कोटा शहर को बाढ़ से बचाने में मददगार सिद्ध हो सकता था।
भारतीय राष्ट्रीय कला एवं संस्कृति निधि के ठाकुर रणवीर सिंह ने इस ओर प्रशासन का ध्यान आकर्षित किया था। अनदेखी के कारण आज भी यह क्षेत्र तलवंडी, दादाबाड़ी के लिये वर्षा के दिनों में अभिशाप बन जाता है। अब यह तालाब पूर्णतया नष्ट है। इस प्रकार रंगबाड़ी व खड़े गणेश जी के पीछे भी एक तालाब है जिसके आसपास भू-माफियाओं ने भू-खण्ड काट डाले। 1347 में कोटा के पूर्व शासक धीरदेव ने 13 तालाब बनवाए थे जिन्हें आज शासकों ने बेरहमी से नष्ट होने दिया।
तड़ाग पर खतरे
1. बढ़ते अतिक्रमणों से
2. साफ-सफाई का अभाव
3. राजस्व विभाग की अनदेखी
4. भू-माफियाओं का बढ़ता प्रभाव
5. सरकारी विभागों में तालमेल का अभाव
6. कृषि भूमि की बदलती उपयोगिता
7. छोटे जलाशयों की महत्ता भूलाना
8. दोषपूर्ण योजनाएँ
9. राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी
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Post By: RuralWater