भारत में गंगा-यमुना सहित नदियों की सफाई पर कई वर्षों में करोड़ों रुपए खर्च किये गए लेकिन नतीजा डाक के तीन पात रहा। नदियाँ साफ होने के बजाय और गन्दी व प्रदूषित हो गई। यहाँ तक कि एक बड़ा वर्ग यह कहने लगा है कि इन नदियों की सफाई सम्भव नहीं है। लेकिन राजनीतिक इच्छाशक्ति और जनभागीदारी हो तो इन नदियों की सफाई सम्भव है। विश्व में इसकी कई मिसाल हैं।
भारत में गंगा सफाई परियोजना पर करोड़ों रुपए और कई बरस लग गए लेकिन गंगा साफ नहीं हुई, बल्कि और मैली हो गई। पर्यावरण के जानकार इसके लिये संघर्ष भी कर रहे हैं लेकिन एक बड़ा वर्ग यह कहने लगा है कि गंगा की सफाई सम्भव नहीं है। पर ऐसा नहीं है। जर्मनी और चीन में इसकी मिसाल है कि किस तरह नदी या झील के पानी को साफ किया जा सकता है।जर्मनी, चीन जैसे विशाल देशों में भी नदियाँ हमसे कहीं ज्यादा आँसू बहाती थी। हाँ, यह बात अलग है कि उन देशों में नदियों को उनके हाल पर नहीं छोड़ दिया जाता। करीब दस साल पहले जर्मनी की एल्बे नदी विश्व की सबसे ज्यादा प्रदूषित नदी थी। लेकिन आज उसकी गिनती विश्व की सबसे साफ नदियों में की जाती है। इसकी वजह यह है उस देश की सरकार ने नदियों को अपने देश की धरोहर माना है। अभी ज्यादा समय नहीं हुआ है जब जर्मनी की नदियों में इतनी गन्दगी थी कि इसमें रहने वाली मछलियाँ अल्सर से मर रही थीं। आज ये नदियाँ बिल्कुल साफ हैं। क्या एल्बे नदी से भारत सीख ले सकता है? नदी के पानी पर तैरता प्लास्टिक और कल-कारखाने का कचरा, साँस लेने बार-बार सतह पर आती अधमरी मछलियाँ और प्रदूषित पानी के कारण ऐसी स्थिति भारत सहित दुनिया के कई देशों में पैदा हो गई है। कुछ साल पहले तक जर्मनी की नदियों की भी यही हालत थी। लेकिन अब यहाँ मछलियाँ लौट आई हैं, खासकर चेक गणराज्य से निकल कर हैम्बर्ग के आगे उत्तरी सागर में जाने वाली एल्बे नदी का पानी काफी प्रदूषित था। 1990 में जर्मनी के एकीकरण तक नालियों का पानी और कल कारखाने का कचरा सीधे एल्बे नदी में डाल दिया जाता था।
ऐसे में प्रश्न उठता है कि फिर जर्मनी की नदियाँ कैसे साफ की गईं? आज अगर एल्बे नदी साफ है तो उसमें जर्मनी के लोगों की जनभागीदारी बहुत अहम है। वहीं जर्मन सरकार की दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति भी काफी महत्त्वपूर्ण है। वहाँ की सरकार ने सबसे पहले जर्मन लोगों में जन-जागरुकता फैलाई कि नदी हमारे जीवन के लिये कितनी महत्त्वपूर्ण है। साथ ही लोगों को नदी को गन्दा न करने की सलाह दी। जर्मनी में नदी को लेकर यह जन-जागरुकता बहुत ही कारगर साबित हुई। वहीं सरकार ने दृढ़ इच्छाशक्ति दिखाते हुए नदी को प्रदूषित करने वाले कई फैक्टरियों को बन्द करने का निर्णय लिया। इस बाबत न सिर्फ फरमान जारी किया गया बल्कि एल्बे के आस-पास की कई फ़ैक्टरियों को कड़े पर्यावरण नियमों के तहत बन्द कर दिया गया। वहीं बेहतर प्रबन्धन से सीवेज और गन्दा पानी को लगातार साफ किया गया। इस तरह एल्बे नदी को जनभागीदारी, कड़े पर्यावरण नियमों और बेहतर प्रबन्धन से बचा लिया। अब मछली पकड़ने वालों और तैराकों के लिये भी एल्बे नदी खुली है। इसमें तैरने से अब कोई खतरा नहीं है। साथ ही मछलियों सहित बाकी जलीय जीव भी लौट रहे हैं।
हैम्बर्ग यूनिवर्सिटी के बायोलॉजिस्ट फाइट हेनिश के मुताबिक जर्मनी की बाकी नदियों के लिये भी ऐसा ही किया गया। फाइट हेनिश कहते हैं कि एल्बे के मामले में भी काफी काम होना अभी बाकी है, जबकि नदी अब धीरे-धीरे प्राकृतिक स्थिति में पहुँच रही है। हेनिश जोर देते हैं कि पानी की गुणवत्ता सिर्फ रासायनिक तौर पर अच्छी हुई है, लेकिन नदी की संरचना और उसका प्राकृतवास और खराब हुआ है।
जर्मनी की एमशर नदी को यूरोप की सबसे गन्दी नदियों में गिना जाता था। भारी औद्योगिक क्षेत्र में होने की वजह से इसमें हर तरह का कचरा फेंका गया। लेकिन हाल के दिनों एमशर नदी को साफ करने की मुहिम चलाई गई है। नदी की सफाई के लिये भारी-भरकम परियोजना बनाई गई है, जिसके जरिए पाँच साल में नदी के गन्दे पानी को साफ किया जाएगा। नदी साफ करने के बाबत एमशर कोआॅपरेटिव के प्रवक्ता मिशाएल श्टाइनबाख का कहना है कि, हम नदी को साफ करके इसे प्राकृतिक स्थिति में पहुँचाना चाहते हैं, ताकि यहाँ फिर से मछलियाँ, पौधे और जानवर रह सकें। उन्होंने कहा कि इलाके के लोगों के लिये भी नदी की सफाई बहुत जरूरी है, ताकि ये आराम और सैर सपाटे की जगह बन सके।
करीब 80 किलोमीटर लम्बी एमशर नदी के आस-पास लगभग 30 लाख की आबादी रहती है। यह नदी जर्मनी के नॉर्थ राइन वेस्टफेलिया के रुअर क्षेत्र से होकर गुजरती है और अन्त में यूरोप की सबसे बड़ी नदियों में शुमार राइन नदी में मिल जाती है। रुअर का इलाका बरसों कोयले की खानों और स्टील उद्योग के लिये जाना जाता रहा। इसका खामियाजा एमशर नदी को भुगतना पड़ा। वहाँ जल निकासी की कोई योजना नहीं बन पाई और कई बार उद्योगों का कचरा भी नदियों में डाला जाने लगा। और स्थिति इतनी बदतर हो गई कि लोगों को नदी के पास जाने से भी रोक दिया गया।
नदी सफाई की मिसाल : टेम्स नदी
टेम्स नदी कभी दुनिया का सबसे व्यस्त जलमार्ग हुआ करता था। लंदन की आबादी बढ़ने के साथ ही टेम्स नदी में भी प्रदूषण बढ़ता गया। सन 1850 तक लंदन की टेम्स नदी का हाल दिल्ली की यमुना नदी से भी बदतर था। गन्दगी की वजह से लंदन में हैजा फैल गया। टेम्स नदी की सफाई के लिये हालांकि समय समय पर लंदन में कई जनअभियान शुरू किये गए। इस खतरे को देखते हुए 1958 में संसद ने एक मॉडर्न सीवेज सिस्टम की योजना बनाई। इस योजना के चीफ इंजीनियर जोसेफ बेजेलगेट थे। उन्होंने काफी शोध के बाद पूरे लंदन शहर में जमीन के अन्दर 134 किलोमीटर का एक सीवेज सिस्टम बनाया। साथ ही टेम्स नदी के साथ-साथ सड़क बनाई गई, ट्रीटमेंट प्लांट्स लगाए गए। इस सीवेज सिस्टम में टेम्स का पानी ट्रीटमेंट के बाद लोगों के घरों में जाता है और लोगों के घरों में उपयोग किये गए जल मल को ट्रीटमेंट के बाद टेम्स में छोड़ा जाता है। लंदन के इस सीवेज सिस्टम को बने हुए 150 साल पूरे हो चुके हैं। लंदन शहर की जनसंख्या आज कई सौ गुना ज्यादा हो गई है, लेकिन आज भी लंदन का सीवेज सिस्टम दुरुस्त है। योजना का मतलब यही होता है कि उसे भविष्य को समझते हुए बनाया जाये। हमारे यहाँ सब उल्टा हो रहा है। अंग्रेजों का शासन तंत्र मौजूद है, लेकिन दूरदर्शिता नहीं है। टेम्स नदी को लेकर वहाँ की सरकार भी कितनी ज्यादा गम्भीर है इसका अन्दाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वहाँ 1950 में नया जल शोधन यंत्र लगाया गया और 1960 में नया कानून बनाकर वैसी कम्पनियों को बन्द कर दिया गया जो गन्दा पानी टेम्स में छोड़ रहे थे।
दूसरी तरफ 2000 में शुरू हुई टेम्स रिवर क्लीन अप अभियान टेम्स के लिये वरदान साबित हुआ। इस अभियान के तहत साल में तय एक दिन लंदन शहर में जहाँ-जहाँ से टेम्स नदी गुजरती है, हर जगह लोग एकत्र होकर नदी की सफाई करते हैं। पिछले 14 सालों से टेम्स रिवर क्लीन अप अभियान निरन्तर जारी है। आगामी टेम्स रिवर क्लीन अप अभियान 18 अप्रैल, 2015 को है। इस अभियान की खास बात यह है कि सफाई के लिये टेम्स के तट पर पहुँचने वाले सभी लोग सफाई का सारा सामान अपने साथ लेकर आते हैं। और साल में तय उस दिन पूरी 346 किलो मीटर लम्बी टेम्स नदी की सफाई की जाती है, ताकि किसी भी एक हिस्से में गन्दगी रहने पर पूरी नदी फिर से प्रदूषित न हो जाये। ये वहाँ के लोगों के जज्बे और इच्छाशक्ति का ही नतीजा है कि बहुत कम समय में ही अपने बल पर वहाँ के लोगों ने टेम्स को वापस उसके पुराने स्वरूप में लौटा दिया।
पानी सफाई की प्रक्रिया
वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट में पानी की सफाई बड़े से छोटे वाले नियम पर चलती है। पहले मेकेनिकल सफाई में बड़े आकार का कचरा अलग किया जाता है और फिर छोटे। रेत को अलग किया जाता है क्योंकि इससे पम्प को नुकसान हो सकता है। सेटलिंग टैंक सुनिश्चित करता है कि पानी में घुले पदार्थों के अलावा सिर्फ बैक्टीरिया ही मौजूद हों। जर्मनी ने तो अपनी नदियाँ बचा ली लेकिन दुनिया के कई देशों में खासकर भारत में नदियाँ भारी प्रदूषण का शिकार हो रही हैं। क्या यूरोपीय तरीके से इन नदियों की सफाई की जा सकती है? जर्मनी में नदी साफ करने के लिये जो योजना बनी है उसके मुताबिक अलग-अलग ट्रीटमेंट प्लांट बनाकर नदी को साफ किया जा रहा है। जर्मन शहर बोट्रॉप के ऐसे ही एक प्लांट के इंजीनियर मानफ्रेड रूटर बताते हैं, ‘पानी को दो चरणों में साफ किया जा रहा है। पहले मैकेनिकल प्रक्रिया से और फिर जैविक ढंग से। पहले ठोस गन्दगी निकाली जाती है और फिर पानी में घुली मिली दूसरी चीजों को निकाला जाता है।’ उन्होंने बताया कि पानी को पीने लायक साफ करने की योजना नहीं है लेकिन उनकी कोशिश है कि इसे दूसरे कामों के लायक बना दिया जाये। गौरतलब है कि जर्मनी के बोट्रॉप के संयंत्र में हर रोज करीब सात लाख घनमीटर पानी साफ किया जाता है। यह काम बेहद जटिल है क्योंकि पानी की सफाई कई चरणों में होती है। इस सफाई के दौरान पानी एक हौज से दूसरे हौज में जाता है और हर हौज में जाते हुए वह पहले से ज्यादा साफ होता है।
पानी साफ करने की इस योजना में पर्यावरण का खास ख्याल रखा गया है। बोट्रॉप संयंत्र में पानी की सफाई से निकले कचरे को जमा करके उसे चार बड़े कंटेनरों में जलाया जाता है और इससे हासिल होने वाली ऊर्जा से संयंत्र की करीब 60 फीसदी बिजली खपत भी पूरी की जाती है। संयंत्रों से निकलने के बाद साफ पानी आगे जाकर राइन नदी में मिल जाता है। एमशर, राइन नदी की सहायक नदी है।
पानी सफाई की इस योजना में करीब साढ़े चार अरब यूरो का खर्च अनुमान है और इसका ज्यादातर हिस्सा स्थानीय लोगों से ही जल शुल्क के तौर पर लिया जाएगा। प्रवक्ता श्टाइनबाख कहते हैं, ‘‘साढ़े चार अरब की रकम बहुत बड़ी लगती है। लेकिन यह काम लगभग 30 साल में पूरा किया जा रहा है। इसे 1990 के दशक में शुरू किया और और 2017-18 तक इसकी हर बूँद साफ करने की योजना है। हमारा उद्देश्य है कि 2020 तक इसे पारिस्थितिकी के साथ मिला कर काम पूरा कर दिया जाये।’’
दुनिया की पाँच सबसे स्वच्छ नदियाँ
दुनियाभर में पाँच ऐसी नदियाँ मौजूद हैं, जो अपनी स्वच्छता के कारण मशहूर हैं। वहीं, भारत की गंगा और यमुना नदी दुनिया की शीर्ष पाँच प्रदूषित नदियों में शामिल हैं।
टेम्स नदी, लंदन : टेम्स नदी दुनिया की सबसे स्वच्छ नदी है। इसे लंदन की गंगा भी कहा जाता है। करीब 80 लाख की आबादी वाला लंदन शहर टेम्स के किनारे बसा है। टेम्स नदी चैल्थनम में सेवेन स्प्रिंग्स से निकलती है और आॅक्सफार्ड, रैडिंग, मेडनहैड, विंड्सर, ईटन और लंदन जैसे शहरों से होती हुई 346 किलोमीटर की यात्रा पूरी कर इंग्लिश चैनल में जाकर गिरती है। पहले यह नदी काफी प्रदूषित थी, जिस कारण से कई लोगों की मौत भी हो गई। इसके बाद इसकी सफाई की गई और यह दुनिया की सबसे स्वच्छ नदी में शुमार की जाने लगी।
तारा (ड्रिना) नदी, मोंटेनेग्रो और बोस्रिया : दुनिया की दूसरी सबसे स्वच्छ नदी में तारा (ड्रिना) नदी का नाम लिया जाता है। यह नदी मोंटेनेग्रो और बोस्रिया के बीच बहती है। यह ग्रांड कैन्योन के बाद दूसरी सबसे लम्बी और गहरी घाटी का निर्माण करती है, जिसकी लम्बाई 78 किलोमीटर है। इसे यूनेस्को ने वर्ल्ड हेरिटेज साइट घोषित कर रखा है।
सेंट क्रोइक्स नदी, अमेरिका : सेंट क्रोइक्स नदी को दुनिया की तीसरी सबसे स्वच्छ नदी के रूप में शुमार किया जाता है। इसे मिसिसिपी की सहायक नदी के रूप में जाना जाता है। इस नदी की कुल लम्बाई 272 किलोमीटर है।
टॉर्न नदी, स्वीडन : स्वीडन में टॉर्न नदी को टॉर्नियों के नाम से भी जाना जाता है। यह दुनिया की चौथी सबसे स्वच्छ नदी है। यह उत्तरी स्वीडन और फिनलैंड के बीच बहती है।
ली नदी, गुआंग्जी, चीन : दुनिया की सबसे स्वच्छ नदियों में चीन के गुआँग्जी क्षेत्र में बहने वाली ली नदी भी शामिल है। स्वच्छता के मामले में इसका नाम पाँचवें नम्बर पर आता है। यह नदी माओअर माउंटेन से निकलकर गुली नदी में मिल जाती है।
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