ऐसे हुआ योजना का विस्तार

वास्तव में यह समय कोसी परियोजना के तटबंधों की स्वीकृति के बाद का है। कोसी पर तटबंध बन जाने पर विशेषज्ञों की राय केवल हाँ में हाँ मिलाने तक सीमित रह गयी। तटबंधों से बाढ़ सुरक्षा की बहस केवल कोसी के लिए हुई थी उसके बाद तो तटबंधों की ही बाढ़ आ गयी।

सरकार इस क्षेत्र की समस्या के प्रति कैसे चेती उसके बारे में लेखक को डॉ. जगन्नाथ मिश्र, भूतपूर्व मुख्यमंत्री ने बताया। उन्होंने कहा, ‘‘...उस समय मैं सिंचाई मंत्री था। मैं मुख्यमंत्री बना अब्दुल गफ्फूर साहब के बाद। जिस क्षेत्र में मेरा कार्य क्षेत्र है-सहरसा, सुपौल, मधुबनी, दरभंगा, सीतामढ़ी, अररिया आदि की मुख्य समस्या बाढ़ ही है। बागमती, कोसी और महानन्दा उस इलाके में प्रलयंकारी बाढ़ लाती हैं। मेरी कोशिश थी अगर हम लोग सरकार की तरफ से कुछ कर सकें तो करना चाहिये। यह एक ईमानदार पहल थी पर असल में यह काम तो इंजीनियरों को करना था। हमारा बस सुझाव भर था कि तटबंध बना कर बागमती की बाढ़ की विभीषिका को रोका जाए। इससे हमारे दरभंगा और मधुबनी के क्षेत्रों को भी लाभ पहुँचने वाला था। अधवारा समूह की नदियाँ मधुबनी और दरभंगा होकर बहती हैं। अधवारा समूह के लिए हमारी तीन फेज़ की योजना थी जो कि बन नहीं पायी। बागमती परियोजना इंजीनियरों को बनानी थी, गंगा फ्लड कन्ट्रोल कमीशन आदि का यह काम था। हमारी इच्छा केवल बाढ़ से उस क्षेत्र को निजात देने की थी। मैं सिंचाई मंत्री रह चुका था और वहाँ की आवश्यकताओं और प्राथमिकताओं को समझता था और मेरे मुख्यमंत्री बनने के बाद भी मेरी नज़र उन प्राथमिकताओं पर थी। सीतामढ़ी, मधुबनी और दरभंगा बाढ़ से तबाह होता था हर साल इसलिए उनकी चिन्ता स्वाभाविक थी।’’

इस तरह से 1975 में तीन विभिन्न स्तरों पर पूरी की जाने वाली अधवारा बाढ़ नियंत्रण परियोजना की नींव पड़ी (चित्र-1.8, अध्याय-1)।

फेज-1: इस फेज में शिकाओ स्लुइस के नज़दीक पुपरी प्रखंड के हिरौली गाँव में दरभंगा-बागमती नदी के दाहिने किनारे से लेकर और सौली घाट से नीचे बायें किनारे पर हायाघाट तक तटबंध बनाने का प्रस्ताव है। त्रिमुहान घाट के नीचे दरभंगा-बागमती और रातो के किनारे तोड़ कर बहने के कारण बाढ़ समस्या काफी गंभीर हो जाया करती है। पानी के इस फैलाव को रोकने के लिए दरभंगा-बागमती के दाहिने किनारे पर एकमीघाट से शुरू करके त्रिमुहान घाट, निहसा होते हुए शिकाओ स्लुइस के पास पुपरी प्रखंड के हिरौली गाँव तक 66 किलामीटर लम्बे तटबंध बनाने का प्रस्ताव है। इसके साथ ही इस नदी के बायें किनारे पर मब्बी से सौलीघाट तक 32 किलोमीटर लम्बे तटबंध बनाने का प्रस्ताव है। पुपरी में खिरोई तटबंध की 7 किलोमीटर लम्बाई को ऊँचा करना तथा ऐग्रोपट्टी के नज़दीक इस तटबंध में 360 मीटर गैप को भी भरना इस योजना का हिस्सा है। इतना कर लेने पर 871 वर्ग किलोमीटर भूमि को बाढ़ से सुरक्षा दी जा सकेगी।

फेज-2: इस फेज में रातो और धौस नदियों के दोनों किनारों पर कुल मिला कर 88 किलो मीटर लम्बे तटबंध बनाने की योजना है जिससे 230 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को बाढ़ से सुरक्षा मिलेगी।

फेज-3: अंतिम फेज में सोनबरसा और सोनबरसा बाजार के बीच जमुरा, अधवारा और झीम नदियों पर लगभग 54 किलोमीटर लम्बे तटबंध बना कर 218 वर्ग किलोमीटर भूमि को बाढ़ से सुरक्षा दिये जाने की बात कही जाती है।

अधवारा समूह की नदियों पर तटबंधों के बन जाने के कारण हायाघाट के नीचे वाले करेह तटबंधों पर पानी का दबाव बढ़ेगा। एक अनुमान के अनुसार लगभग 40,000 घनसेक का अतिरिक्त प्रवाह दरभंगा-बागमती तटबंधों के कारण हायाघाट पर प्रवाहित होगा। अध्ययन से यह भी पता लगा है कि बागमती तथा अधवारा समूह की नदियों की बाढ़ अक्सर एक साथ भी आया करती है। इस अतिरिक्त प्रवाह के कारण उच्चतम बाढ़ स्तर और बढ़ेगा और यह वृद्धि लगभग 2 फुट (60 सेन्टी मीटर) होगी और इस कारण करेह के तटबंधों को इसी अनुपात में और ऊँचा करना पड़ेगा। बागमती परियोजना के प्राक्कलन में इस काम का प्रावधान कर लिया गया है।

दरभंगा-बागमती से कमला नदी की दो पुरानी छाड़न धारायें बायें तट पर संगम करती हैं जिनके नाम क्रमशः छाजरी और बछराजा हैं। छाजरी का पानी किनारे तोड़ कर नहीं बहता है जब कि बछराजा छिछली है। इस नदी के बाएँ तट पर 13 कि.मी. लम्बे तटबंध बनाने का प्रस्ताव है।

नई अधवारा परियोजना जो 1975 में प्रकाश में आयी है और जिस का क्रियान्वयन होना है वह 1954 में विशेषज्ञों द्वारा यह कह कर खारिज की गयी थी कि इससे क्षेत्र की बाढ़ समस्याएँ और दुरूह होंगी। खिरोई तटबंध की योजना 1955 में स्वीकृत हो गयी थी और उस पर काम भी तभी शुरू हो गया था। वास्तव में यह समय कोसी परियोजना के तटबंधों की स्वीकृति के बाद का है। कोसी पर तटबंधबन जाने पर विशेषज्ञों की राय केवल हाँ में हाँ मिलाने तक सीमित रह गयी। तटबंधों से बाढ़ सुरक्षा की बहस केवल कोसी के लिए हुई थी उसके बाद तो तटबंधों की ही बाढ़ आ गयी। दरभंगा में लहेरियासराय से जठमलपुर के बीच का क्षेत्र जिसने देखा है वह यह बात आसानी से समझ सकता है कि खिरोई तथा दरभंगा-बागमती के बीच के दोआब में बसने वाले गाँवों की स्थिति भविष्य में क्या होने वाली है यद्यपि आधिकारिक रूप से मात्र 3,600 एकड़ भूमि की भविष्य में तबाही होना कबूल किया जाता है। इस तबाही में मुजफ्फरपुर-दरभंगा तथा सीतामढ़ी-दरभंगा मार्गों का अपना विशिष्ट योगदान होगा। योजना के दूसरे खण्ड में रातो और धौंस पर तटबंध बनेंगे। इस दोनों नदियों के बीच बसे क्षेत्र की परेशानियाँ इन तटबंधों के साथ साथ बढ़ेंगी। कुछ ऐसा ही तीसरे खण्ड में अधवारा के दाहिने तटबंध और सीतामढ़ी-सोनबरसा मार्ग से सीमाबद्ध क्षेत्र में भी होगा।

इन सभी इलाकों में यह मान भी लिया जाए कि बाहर से आया सारा पानी रूपांकित क्षमता के अनुसार तटबंधों के बीच नदियों से होकर बह जायगा तथा तटबंधों के बीच में सिल्ट का भी कोई जमाव नहीं होगा और यह तटबंध कभी नहीं टूटेंगे तो भी वर्षा के पानी की निकासी की गंभीर समस्याएँ देखने में आयेंगी। साथ ही बहुत सा पानी इन नदियों में तटबंधों के कारण बाहर रुक जायेगा जिससे तटबंधों के बाहर भी जल जमाव होगा। रातो और धौंस नदियाँ प्रायः उत्तर से दक्षिण दिशा में बहती हैं जिसके दोआब का पानी दक्षिण में सुरसरी से निस्सरित होता है। सुरसरी पर तटबंध बनने से दोनों नदियों के बीच के क्षेत्र में यह प्रवाह बाधित होगा और पानी अधिक दिन बना रहेगा जिसको कम करने के लिए यह योजना बनायी गयी है। खिरोई के बायें तटबंध तथा रातो के दाहिने तटबंधके बीच के दोआब के प्रवाह को भीठा के पास सुरसरी में डालने के लिए प्रयास किया जा रहा है। इस क्षेत्र में हरदी, कण्टावा, बरवे, माढ़ा, हरसिंघी आदि धाराओं का पानी प्रवाहित होगा और निश्चित रूप से जल संकुलन का कारण बनेगा।

बाढ़ सुरक्षा की यह सारी योजना तत्काल सहायता की योजना है जिसके दूरगामी परिणाम अभी से ही भयावह लगते हैं।

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Post By: tridmin
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