ऐसे बनता है पानी

बोतलबंद पानी पर ‘परिवर्तन’ की खोजी रिपोर्ट



पिछले कुछ वर्षों में पानी को साफ करने की तकनीक आरओ सिस्टम ने लोगों को खुब लुभाया है। इस तकनीक का पूरा नाम है रिवर्स ओस्मोसिस प्रोसेस यानी आरओ। इस तकनीक में पानी को बेहद तेज दबाव के साथ साफ किया जाता है। इस तकनीक में पानी में बैक्टीरिया होने की आशंका बेहद कम हो जाती है। यह पेयजल को साफ करने का उच्चस्तरीय तरीका माना जाता है। इस तकनीक को इतना प्रभावशाली माना जाता है कि पहले चरण में ही पानी का अशुद्धियां दूर हो जाती हैं। जल ही जीवन है। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। प्यास बुझाने से लेकर जीवन के हर छोटे-मोटे कामों में पानी का प्रयोग होता है। ऐसे में पानी का शुद्ध होना बेहद जरूरी होता है। पीने के पानी से लेकर नहाने के पानी तक का शुद्ध होना बेहद जरूरी होता है। शुद्ध पानी की महत्वता को लोग भी बेहतर समझने लगे हैं।

वैसे तो पानी को साफ करने के कई तरीके हैं जिनमें पानी को उबालने के पारंपरिक तरीके से लेकर कैंडल वाटर फिल्टर, मल्टी स्टेज शुद्धिकरण, क्लोरीनेशन, हैलोजन टैबलेट, यूवी (अल्ट्रावायलेट) रेडिएशन सिस्टम तक शामिल है। पानी को साफ करने के हर तकनीक का फायदा और नुकसान है। तकनीक को चुनने से पहले पानी के स्रोत और गुणवत्ता पर जोर दिया जाता है।

लेकिन पिछले कुछ वर्षों में पानी को साफ करने की तकनीक आरओ सिस्टम ने लोगों को खुब लुभाया है। इस तकनीक का पूरा नाम है रिवर्स ओस्मोसिस प्रोसेस यानी आरओ। इस तकनीक में पानी को बेहद तेज दबाव के साथ साफ किया जाता है। इस तकनीक में पानी में बैक्टीरिया होने की आशंका बेहद कम हो जाती है।

यह पेयजल को साफ करने का उच्चस्तरीय तरीका माना जाता है। इस तकनीक को इतना प्रभावशाली माना जाता है कि पहले चरण में ही पानी का अशुद्धियां दूर हो जाती हैं। पानी पर दबाव डालकर पानी में से ज्यादातर बड़े कणों व ऑयन का अलग किया जाता है।

यह सिस्टम पानी को पांच चरणों में साफ करता है और उसे गंदगी, धूल, बैक्टीरिया आदि से मुक्त कर शुद्ध व मीठा बनाता है। आरओ प्रक्रिया में पानी को कई महीन झिल्लियों से गुजरना पड़ता है और इनसे गुजरने के बाद गंदा-से-गंदा पानी भी पीने लायक हो जाता है। झिल्लियां बिजली से संचालित होती है।

पहल चरण में संरक्षित बोरवेल से कच्चा पानी लेने के बाद इसे स्टोरेज टैंक में रख लिया जाता है। इस दौरान पानी के पीएच मान्य और टीडीएस (पानी में घुले मिनरल) का स्तर मापा जाता है। इसके बाद पानी को बैक्टीरियामुक्त करने के लिए कच्चे पानी के टैंक में वाणिज्यिक ग्रेड क्लोरिन मिलाया जाता है।

दूसरे चरण में पानी से बड़े कणों को हटाया जाता है। इसके लिए कच्चे पानी के टैंक से पानी को सैंड (रेत) फिल्टर में भेजा जाता है। इसके बाद पानी में मौजूद गंदगी का परीक्षण किया जाता है।

तीसरे चरण में सैंड फिल्टर से गंदगीमुक्त पानी को सक्रिय कार्बन फिल्टर से गुजरना पड़ता है। इस दौरान पानी में मौजूद किसी भी तरह की अवांछित गंध को दूर किया जाता है। पूरी प्रक्रिया के दौरान यह भी सुनिश्चित किया जाता है कि पहले चरण में पानी में मिलाया गया क्लोरिन का कोई अंश शेष न रहा गया हो। इसमें क्लोरेटेक्स विधि का प्रयोग किया जाता है। चौथे चरण में सक्रिय कार्बन फिल्टर प्रक्रिया से प्राप्त पानी को रिवर्स ओस्मोसिस प्रक्रिया से गुजारना पड़ता है।

रिवर्स ओसमोसिस एक पृथक्करण की प्रक्रिया है जिसमें किसी भी घोल को छलनी में से दबाव के साथ डाला जाता है जिसमें घुलनशील विलायन छलनी में ही रुक जाता है और शुद्ध द्रव बाहर निकलता है। सामान्य ओस्मोसिस प्रक्रिया में एक झिल्ली अथवा छलनी के माध्यम से घोल को न्यून पदार्थ एकत्रीकरण वाले क्षेत्र से उच्च पदार्थ एकत्रीकरण वाले क्षेत्र में बिना किसी बाहरी दबाव के बहता है लेकिन रिवर्स ओस्मोसिस प्रक्रिया में एक झिल्ली अथवा छलनी के माध्यम से घोल को उच्च पदार्थ एकत्रीकरण वाले क्षेत्र से न्यून पदार्थ एकत्रीकरण वाले क्षेत्र में अधिक ओस्मोटिक दबाव में दबाव के साथ ले जाया जाता है।

इसके बाद पानी के पीएच मान्य और टीडीएस का स्तर मापा जाता है। फिर पानी को स्टेनलेस स्टील के टैंक में जमा किया जाता है। इसके बाद ओजोनेटर पाइप के माध्यम से पानी को ओजोनाइज्ड किया जाता है। पानी को यूवी हाउसिंग में भेज दिया जाता है जहां यूवी लैंप की मदद से पानी में शेष बैक्टीरिया को मारा जाता है। इसके बाद माइक्रोन फिल्टर की मदद से पानी को छान लिया जाता है। इस दौरान विभिन्न स्तर पर पानी का शुद्धिकरण किया जाता है।

यूवी रेडिएशन सिस्टम


इसमें यूवी रेडिएशन विधि से पानी को पीने लायक बनाया जाता है। पानी में मौजूद वायरस और बैक्टीरिया के डीएनए को निशाना बनाया जाता है। जिससे वायरस और बैक्टीरिया का सफाया हो जाता है। पानी शुद्ध करने के अन्य तरीकों की तरह इसमें न तो कुछ मिलाया जाता है और न ही पानी से कुछ हटाया जाता है। यूवी प्यूरीफायर्स तीन-चार प्यूरीफिकेशन चरणों में आते हैं। जिनमें सेडीमेंट फिल्टर यानी प्री फिल्टर प्रक्रिया और सक्रिय कार्बन कार्टिरेज प्रमुख हैं।

क्लोरीनेशन


पानी को बीमार बना देने वाले किटाणुओं से बचाने के लिए आज भी व्यापक तौर पर क्लोरिनेशन तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है। यह एक ऐसा पुराना तरीका है जिसका अभी भी लोग खूब इस्तेमाल करते हैं। नगरपालिका से लेकर अस्पताल तक इसका प्रयोग कर रहे हैं। इसमें पानी तो शुद्ध होता ही साथ में पानी के स्वाद में भी हल्का बदलाव आ जाता है।

उबला पानी


यह एक ऐसा तरीका है जिसे घर-घर में इस्तेमाल किया जाता है। इस पर लोग विश्वास भी करते हैं। पानी का बीस मिनट तक लगातार सौ डिग्री सेल्सियस पर उबलने से इसमें मौजूद जीवाणु और विषाणु दोनों मर जाते हैं। पानी उबाल कर ठंडा कर लेना चाहिए। एक बात का ध्यान रखना चाहिए कि उबले हुए पानी को साफ-सुथरे बर्तन में ही रखा जाना चाहिए।

कैंडल वाटर फिल्टर आज भी ज्यादातर घरों में कैंडल वाटर फिल्टर के दर्शन हो जाते हैं। कई लोग नल के पानी को सीधे कैंडल वाटर फिल्टर में डाल देते हैं तो कई पानी को उबलने के बाद इसमें डालते हैं। कैंडल धीरे-धीरे पानी को छानने लगता है। इसमें समय-समय पर कैंडल बदलने की आवश्यकता होती है।

सजा नहीं होती


भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) ने जब से बोतलबंद पानी के लिए आईएसआई मार्क अनिवार्य किया है तब से पानी की गुणवत्ता बढ़ी है। बोलबंद पानी के कारोबार में लगी कई कंपनियां बीआईएस के नियमों का पालन कर रह हैं लेकिन कई ऐसी कंपनियां भी हैं जो बिना किसी लाइसेंस के आईएसआई मार्क का इस्तेमाल कर लोगों को बेवकूफ बना रही हैं।

सेहत के साथ-साथ लोगों का आर्थिक नुकसान भी हो रहा है। इनको रोकने के लिए सरकार ने अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। इस संबंध में बंगलूरू और महानगर पालिका के अधिकारियों को कई बार लिखा गया है। ज्ञापन भी सौंपा गया है। वे कुछ दिनों के लिए गैर कानूनी कंपनियां को बंद कर देते हैं पर किसी की गिरफ्तारी नहीं होती है। आज तक कर्नाटक में शायद ही किसी को पानी के नियमों का उल्लंघन करने के लिए गिरफ्तार किया गया होगा। -
राजेंद्र भंसाली, मालिक, एनीटाईम वाटर

लेवल कंपनी का और पानी नल का


इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि बोतलबंद पानी के नाम पर कई लोगों के साथ धोखा हो रहा है। इस पर अंकुश लगाने की दिशा में सरकार काम करे या नहीं ग्राहकों को जागरुक होने की जरूरत है। पानी खरीदने से पहले बैच नंबर, एक्सपायरी डेट, आईएसआई मार्क, मैन्युफैक्चरिंग तिथि जरूर जांच लेनी चाहिए।

कई बार खासकर 20 लीटर के कैन पर लेवल तो कंपनी का होता है। पर पानी नल का। ऐसे में मुनाफाखोर लोगों के साथ-साथ कंपनियों को भी धोखा देते हैं। इससे बचने के लिए लोगों को चाहिए कि वे कंपनी को फोन कर सुनिश्चित कर लें कि पानी कंपनी से आ रही है या नहीं? ग्राहकों की जागरुक रहने की जरूरत है। -
पवन कुमार जैन, एसएलएन मिनरल

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Post By: Shivendra
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