वर्ल्ड बैंक के मुताबिक, धरती पर रोज एक व्यक्ति करीब 1.5 किलोग्राम कचरा फेंकता है। यहां तक कि जिस रिहाइश में ज्यादा समृद्ध लोग रहते हैं, वहां ज्यादा कचरा निकलता है। और एक बात अमीर-गरीब सब में आम है, ये कि हममें कचरेदान में कचरा डालने की आदत नहीं है।अपने देश के ज्यादातर शहरों में रेलवे स्टेशन के आसपास कोई न कोई सड़क महात्मा गांधी के नाम से जरूर है। और उन शहरों में इस सड़क पर बाटा का शोरूम भी जरूर होता था। बहुत से तो अब भी होंगे। यहां मॉल कल्चर के बावजूद आज भी इस ब्रांड के जूते बेचे जा रहे हैं। रेलवे स्टेशन के आसपास बाटा का शोरूम खोलने का आइडिया कंपनी के प्रबंधन को काफी पहले आया। तब काफी अध्ययन के बाद पता चला कि भारतीय तभी नए जूते-चप्पल खरीदते हैं, जब कहीं जा रहे होते हैं। इस तरह जूते खरीदने-बेचने का सिलसिला शुरू हुआ, जो आदत बन गया।
इस गांधी जयंती पर भी ऐसा ही एक सिलसिला शुरू होने जा रहा है। बेंगलुरू की ही बात करते हैं। यहां कई कंपनियों के प्रमुख, स्टूडेंट्स और आईटी या फार्मा सेक्टर में काम कर रहे नौजवान एक साथ आए हैं। करीब 600 लोगों के जुटने की संभावना है। इससे ज्यादा भी हो सकते हैं। ये सभी दो अक्टूबर को 'क्लीन इंडिया कैम्पेन में हिस्सा लेंगे। हाथ में झाड़ू लिए महात्मा गांधी रोड की सफाई करते नजर आएंगे। देशवासियों से महात्मा गांधी को इस तरह श्रद्धांजलि देने का आह्वान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया है। वे खुद दिल्ली से इस अभियान की शुरुआत करेंगे।
बेंगलुरू में इस अभियान के लिए जुटने वाले लोग सिर्फ सड़कों की सफाई नहीं करेंगे। बल्कि फुटपाथों की रिपेयरिंग भी करेंगे। उन पर बेंच लगाएंगे। सार्वजनिक स्थलों पर यूरिनल बनाएंगे जहां टूटे-फूटे हैं, उन्हें दुरुस्त करेंगे। इन युवाओं ने एक फेसबुक पेज भी शुरू किया है। इसका कैप्शन है, 'एडॉप्ट माइल क्लीन अप ड्राइव'। यानि एक मील इलाके की सफाई अभियान का जिम्मा अपने हाथ में लीजिए। इस पेज पर अब तक जबर्दस्त रिस्पॉन्स मिल रहा है। साइट के मुताबिक, अभियान के पीछे मेन आइडिया ये है कि हर छोटी-बड़ी बात पर सरकार से शिकायत करें, इसके बजाय बेहतर ये है कि आस-पड़ोस की सफाई को खुद अपने हाथ में लें। अपनी जिम्मेदारी समझें। गांधीजी खुद इसी तरह के अभियान में यकीन रखते थे।
वर्ल्ड बैंक के मुताबिक, धरती पर रोज एक व्यक्ति करीब 1.5 किलोग्राम कचरा फेंकता है। यहां तक कि जिस रिहाइश में ज्यादा समृद्ध लोग रहते हैं, वहां ज्यादा कचरा निकलता है। और एक बात अमीर-गरीब सब में आम है, ये कि हममें कचरेदान में कचरा डालने की आदत नहीं है। जबकि ऐसा हो तो कचरा इकट्ठा करने वालों को इलाके की साफ-सफाई व्यवस्था दुरुस्त रखने में मदद मिल जाती है।
देश में ज्यादा पर्यटक आएं, इसलिए पिछले साल केंद्रीय पर्यटन मंत्री के. चिरंजीवी ने ऐसी ही पहल की थी। उन्होंने आगरा में ताजमहल से पर्यटन केंद्रों की सफाई का अभियान शुरू किया था। इसके तहत सरकारी क्षेत्र की कंपनी ओएनजीसी ने ताजमहल को गोद लिया था। यानी उसने वहां साफ-सफाई की जिम्मेदारी अपने ऊपर ली थी। इसी तरह जून 2012 में भारतीय पर्यटन विकास निगम ने दिल्ली में कुतुब मीनार की स्वच्छता बनाए रखने का जिम्मा लिया था। सही मायने में 'क्लीन इंडिया कैम्पेन की शुरुआत वहीं से हुई, जो अब बड़ा आकार ले रही है।
फंडा : कोई आइडिया कहीं से भी शुरू हो सकता है। लेकिन उसकी सफलता इस पर निर्भर करती है कि उस पर तब तक काम होता रहे, जब तक वह आदत बन जाए।
इस गांधी जयंती पर भी ऐसा ही एक सिलसिला शुरू होने जा रहा है। बेंगलुरू की ही बात करते हैं। यहां कई कंपनियों के प्रमुख, स्टूडेंट्स और आईटी या फार्मा सेक्टर में काम कर रहे नौजवान एक साथ आए हैं। करीब 600 लोगों के जुटने की संभावना है। इससे ज्यादा भी हो सकते हैं। ये सभी दो अक्टूबर को 'क्लीन इंडिया कैम्पेन में हिस्सा लेंगे। हाथ में झाड़ू लिए महात्मा गांधी रोड की सफाई करते नजर आएंगे। देशवासियों से महात्मा गांधी को इस तरह श्रद्धांजलि देने का आह्वान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया है। वे खुद दिल्ली से इस अभियान की शुरुआत करेंगे।
बेंगलुरू में इस अभियान के लिए जुटने वाले लोग सिर्फ सड़कों की सफाई नहीं करेंगे। बल्कि फुटपाथों की रिपेयरिंग भी करेंगे। उन पर बेंच लगाएंगे। सार्वजनिक स्थलों पर यूरिनल बनाएंगे जहां टूटे-फूटे हैं, उन्हें दुरुस्त करेंगे। इन युवाओं ने एक फेसबुक पेज भी शुरू किया है। इसका कैप्शन है, 'एडॉप्ट माइल क्लीन अप ड्राइव'। यानि एक मील इलाके की सफाई अभियान का जिम्मा अपने हाथ में लीजिए। इस पेज पर अब तक जबर्दस्त रिस्पॉन्स मिल रहा है। साइट के मुताबिक, अभियान के पीछे मेन आइडिया ये है कि हर छोटी-बड़ी बात पर सरकार से शिकायत करें, इसके बजाय बेहतर ये है कि आस-पड़ोस की सफाई को खुद अपने हाथ में लें। अपनी जिम्मेदारी समझें। गांधीजी खुद इसी तरह के अभियान में यकीन रखते थे।
वर्ल्ड बैंक के मुताबिक, धरती पर रोज एक व्यक्ति करीब 1.5 किलोग्राम कचरा फेंकता है। यहां तक कि जिस रिहाइश में ज्यादा समृद्ध लोग रहते हैं, वहां ज्यादा कचरा निकलता है। और एक बात अमीर-गरीब सब में आम है, ये कि हममें कचरेदान में कचरा डालने की आदत नहीं है। जबकि ऐसा हो तो कचरा इकट्ठा करने वालों को इलाके की साफ-सफाई व्यवस्था दुरुस्त रखने में मदद मिल जाती है।
देश में ज्यादा पर्यटक आएं, इसलिए पिछले साल केंद्रीय पर्यटन मंत्री के. चिरंजीवी ने ऐसी ही पहल की थी। उन्होंने आगरा में ताजमहल से पर्यटन केंद्रों की सफाई का अभियान शुरू किया था। इसके तहत सरकारी क्षेत्र की कंपनी ओएनजीसी ने ताजमहल को गोद लिया था। यानी उसने वहां साफ-सफाई की जिम्मेदारी अपने ऊपर ली थी। इसी तरह जून 2012 में भारतीय पर्यटन विकास निगम ने दिल्ली में कुतुब मीनार की स्वच्छता बनाए रखने का जिम्मा लिया था। सही मायने में 'क्लीन इंडिया कैम्पेन की शुरुआत वहीं से हुई, जो अब बड़ा आकार ले रही है।
फंडा : कोई आइडिया कहीं से भी शुरू हो सकता है। लेकिन उसकी सफलता इस पर निर्भर करती है कि उस पर तब तक काम होता रहे, जब तक वह आदत बन जाए।
Path Alias
/articles/aidaiyaa-vahai-saphala-jao-adata-bana-jaae
Post By: pankajbagwan