पानी जिंदगी बचाता है, मगर जब ये खराब हो जाए तो जिंदगी को बैसाखी पर भी ला देता है। आगरा के बरौली अहीर ब्लॉक की पचगाईं ग्राम पंचायत इसका उदाहरण है। यहाँ के भूमिगत पानी में इतना फ्लोराइड है कि इसको उपयोग में लाने से लोग शारीरिक विकार का शिकार हो रहे हैं। इस ग्राम पंचायत का शायद ही ऐसा कोई घर होगा, जिसमें हड्डी और जोड़ों से सम्बन्धित समस्या से ग्रसित सदस्य न हो। वैसे तो भूमिगत पानी में फ्लोराइड की समस्या से आस-पास के लगभग 130 गाँव प्रभावित है लेकिन पचगाईं ग्राम पंचायत का भूमिगत पानी पूरी तरह से खराब हो गया है। जल निगम भी इस पर अपनी मुहर लगा चुका है। अब ग्रामीण गंगाजल की मांग कर रहे हैं।
इस ग्राम पंचायत के पट्टी पचगाईं गाँव में रहने वाली 60 वर्षीय बादामी जब ब्याह कर इस गाँव में आई थी, तब पूरी तरह से स्वस्थ थी। मगर, भूमिगत पानी के लगातार उपयोग से उम्र के साथ उसके पैरों की हड्डियाँ टेढ़ी पड़ती गईं। अब वह चल फिर नहीं सकतीं। यही हाल इंद्रवती के 12 वर्षीय बेटे रोहित का है। वह बताती हैं कि 6-7 साल पहले तक उनका बच्चा पूरी तरह से स्वस्थ था। मगर, धीर-धीरे उसके हाथ-पैर टेढ़े पड़ने लगे। डॉक्टर को दिखाया तो उन्होंने उसकी इस हालत की वजह पानी में अधिक फ्लोराइड बताया। 22 वर्षीय प्रेम शंकर का भी ऐसा ही कुछ हाल है।
गाँव में हैण्डपम्प और टीटीएसपी (टैंक टाइप स्टैंड पोस्ट) तो हैं लेकिन इनका पानी भी फ्लोराइड युक्त है। ये सिर्फ दैनिक उपयोग में काम आ सकता है लेकिन पीने के लिये उन्हें बाहर से ही पानी खरीदना पड़ रहा है। आर्थिक रूप से कमजोर ग्रामीण यही पानी पीने को मजबूर हैं। जबकि कुछ साल पहले जब यह समस्या उठी थी तब प्रशासनिक अधिकारियों के कहने पर जल निगम ने पानी की जाँच के बाद विभाग ने ही हैण्डपम्पों और टीटीएसपी पर लाल रंग से क्रास के निशान लगा दिया था।
टीटीएसपी पर तो यहाँ तक लिख दिया था कि इसका पानी पीने योग्य नहीं है। ऐसे में अब ग्रामीणों को गंगाजल से आस है। उन्हें जब से पता चला कि आगरा में गंगाजल जल्द आने वाला है, वह अपने क्षेत्रों में पाइप लाइन के माध्यम से गंगाजल की सप्लाई की मांग कर रहे हैं।
अनुश्रवण समिति ने उठाया था मुद्दा
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर गठित अनुश्रवण समिति की बैठक में वर्ष 2013 में भी पचगाईं की समस्या उठी थी। तब तत्कालीन मंडलायुक्त प्रदीप भटनागर के निर्देश पर जल निगम सहित कई विभागों के अधिकारियों ने क्षेत्र का भ्रमण कर रिपोर्ट तैयार की। यहाँ की समस्याओं को अपनी रिपोर्ट में इंगित किया था। मगर, समय के साथ इस रिपोर्ट को भी दबा दिया गया।
रोहता नहर भी प्रदूषण का शिकार
भूमिगत पानी खराब होने पर ग्रामीणों के पास इसकी उपलब्धता के लिये दूसरा विकल्प भी नहीं है। गाँव के किनारे रोहता नहर है। मगर, यह भी नाले का रूप ले चुकी है। नहर में पानी की बजाय सिल्ट और गंदा पानी ही बचा है। ग्रामीणों के उपयोग तो दूर पशुओं को पिलाने के लायक नहीं है। ऐसे में यह नहर भी साथ छोड़ गई है।
गाँव की बदनामी से डरने लगे लोग
गाँव में पानी खराब होने की समस्या को सार्वजनिक करने से भी अब ग्रामीण बचने लगे हैं। उनका कहना है कि सालों से वह अपनी समस्या से अधिकारियों को अवगत करा चुके हैं लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई। अब यह समस्या गाँव पर बदनामी का दाग लगाने लगी है। पानी खराब की चर्चा दूर-दूर तक फैलने से गाँव के लड़कों की शादी की समस्या तक खड़ी हो रही है।
प्रधान राधेश्याम कुशवाह का कहना है कि भूमिगत पानी में फ्लोराइड अधिक होने से पूरी पचगाईं ग्राम पंचायत प्रभावित है। इसके प्रयोग से लोगों में शारीरिक विकार हो रहे हैं। कई बार अधिकारियों को अवगत कराया गया। अब तक समस्या का समाधान नहीं निकला है। अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों से गंगाजल उपलब्ध कराने के लिये कहा गया है।
1. 20 हजार की आबादी है पचगाईं ग्राम पंचायत क्षेत्र में
2. 95 ओवरहेड पानी की टंकियाँ बननी थी 2008-09 में
3. 130 गाँव (आस-पास) भी फ्लोराइड से प्रभावित हैं
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