अगर दुनिया को बचाना है .........

तो हिमालय को पेड़ों से ढकें


जागरण – याहू / प्रसिद्ध पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा मानते हैं कि अगर दुनिया को बचाना है तो हिमालय को पूरी तरह पेड़ों से ढकना होगा। पर्यावरण संरक्षण और ग्लोबल वार्मिग के खतरों सहित तमाम मुद्दों पर देहरादून में 'दैनिक जागरण' के मुख्य संवाददाता अतुल बरतरिया ने बहुगुणा से बातचीत की। पेश हैं इसके प्रमुख अंश-

'ग्लोबल वार्मिग' के खतरों से निपटने के लिए कई राष्ट्रों ने सख्त मानक बनाए हैं। भारत के इस दिशा में उठाए गए कदम और सरकार की कोशिशें क्या पर्याप्त नजर आते हैं?

मानवता का भला इसी में है कि जमीन, जंगल और जल जैसी प्रकृति की अनमोल धरोहरों के साथ खिलवाड़ न हो, जबकि हो ये रहा है कि हम प्राकृतिक संसाधनों का अपनी जरूरतों के लिए इस्तेमाल तो कर रहे हैं, मगर बदले में इसकी किसी तरह की भरपाई नहीं कर रहे। मेरा साफ मानना है कि पर्वतीय इलाके में तो गंगा को रोकना ही नहीं चाहिए। उत्तराखंड में गंगोत्री से टिहरी तक सौ मील क्षेत्र में आठ सौ फीट का ढलान है। इसमें गंगा के बहाव का इस्तेमाल करके पर्याप्त जल विद्युत पैदा की जा सकती है। बड़े-बड़े बांधों से दुनिया का भला नहीं होने वाला। जर्मनी इसका उदाहरण है, जिसका बड़े बांधों से बुरा हाल हुआ। इसकी वजह से गाद की समस्या है और इसको साफ करने के क्रम में मछलियां मर रही हैं। गंगा किनारे बसे शहरों के उद्योगों ने इस अहम नदी को एक गंदा नाला भर बना दिया है। इसलिए गंगा की सफाई की कोशिश पहाड़ से ही शुरू होनी चाहिए। साथ ही औद्योगिक कचरे के निष्पादन के लिए केवल नियम-कानून ही काफी नहीं हैं, बल्कि इनका अनुपालन सुनिश्चित करने को प्राथमिकता देनी होगी।

ग्लोबल वार्मिग विकसित देशों की देन है। ऐसे में पर्यावरण संरक्षण में इन देशों की भूमिका कितनी विश्वसनीय है?

पर्यावरण के खतरों पर विश्व में चिंता तो बढ़ी है और कुछ पहल भी शुरू हुई है, लेकिन भारत की स्थिति इन देशों से अलग है। विकसित देशों में जमीन ज्यादा है और आबादी कम। इस कारण वहां जंगल लगाए जा रहे हैं, जबकि हमारे यहां आबादी बसाने और बांध बनाने के लिए जंगल काटे जा रहे हैं। इतना ही नहीं, खेती की जमीन को रासायनिक खादों के जरिए नशेबाज बनाया जा रहा है। पेड़ हैं नहीं सो मिट्टी बह रही है। स्थिति यह है कि जमीन का पानी समाप्त हो रहा है। इसलिए हम अब भी न चेते तो कुछ समय बाद न तो जमीन बचेगी और न हमें पानी मिलेगा।

हिमालयन पर्यावरण नीति की आप वकालत करते हैं। इसका अभिप्राय क्या है?

जलवायु परिवर्तन की समस्या पर्वतीय क्षेत्रों के लिए तो और भी गंभीर है। तापमान बढ़ने से हिमालय पिघल रहा है। दुनिया को अगर बचाना है तो हिमालय को पेड़ों से ढकना होगा। हिमालयन पर्यावरण नीति में तंग घाटी और मजबूत पहाड़ की कल्पना की गई है। पूरे हिमालय को पेड़ों के माध्यम से एक विशाल प्राकृतिक बांध बनाने की दिशा में काम करना है। वास्तव में अब वृक्षों की खेती करने की जरूरत आ पड़ी है। तेल, खाद्य, चारा और पत्ती देने वाले पेड़ हिमालय में लगाने होंगे। हमें हिमालयी क्षेत्र में लैंड यूज चेंज करने की प्रक्रिया को बेहद सख्त करना होगा। जल और मिंट्टी को बचाने के लिए तेजी से कदम उठाने चाहिए। अगर ऐसा नहीं हुआ तो आने वाले समय में पानी के लिए युद्ध की नौबत आ सकती है।

[सुंदरलाल बहुगुणा प्रसिद्ध पर्यावरणविद् हैं]

साभार- जागरण – याहू ( पूरा पढ़ें )

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