गंगा नदी : औद्योगिक प्रदूषण की समस्याएं और समाधान

औद्योगिक प्रदूषण की समस्याएं और समाधान
औद्योगिक प्रदूषण की समस्याएं और समाधान

मुख्य गंगा में औद्योगिक प्रदूषण का छोड़ा जाना हमेशा से चिंता और तवज्जो का मुद्दा रहा है, किंतु बिना अधिक सफलता के समस्या यह है कि बहुत से उद्योग जो गंगा में हानिकारक रासायनिक प्रदूषक तत्व प्रवाहित करते हैं, लघु-स्तरीय हैं, और उनके लिए ट्रीटमेंट की तकनीक नाकाफी तथा अवहनीय है।

2013 के सीपीसीबी आकलन में दर्शाया गया है कि गंगा के मुख्य प्रवाह (तथा इसकी दो सहायक नदियों, काली तथा रामगंगा) पर स्थित 764 उद्योग 1.123 एमएलडी पानी का उपभोग करते हैं तथा 500 एमएलडी निःस्राव उत्सर्जित करते हैं। एक बड़ी तादाद में ऐसे उद्योग - लगभग 90 प्रतिशत नदी के उत्तर प्रदेश खंड में स्थित हैं (बॉक्स देखें यूपी के लिए शर्म की बातः प्रदूषित करने वाले उद्योग)।

विशिष्ट क्षेत्रीय औद्योगिक अपशिष्ट जल उत्पादक, जो थोक परिमाण में प्रदूषण पैदा करते हैं, मुख्यतः लुगदी और कागज उद्योग क्षेत्र हैं। चर्म-शोधन इकाइयां संख्या में अधिक हैं किंतु अपेक्षाकृत कम अपशिष्ट जल बनाती हैं। लेकिन समस्या यह है कि ये अपशिष्ट नदी के उन दोनों खंडों में अधिक संकेंद्रित हैं, जहां घोलने और पचाने की क्षमता नहीं है। इस अपशिष्ट के उच्च रासायनिक परिमाण के कारण ये खंड खासतौर पर जहरीले बन गए हैं। (ग्राफ देखेंः विशिष्ट क्षेत्रीय औद्योगिक अपशिष्ट जल उत्पादक)।
विगत वर्षों में, इन उद्योगों के प्रदूषण प्रभाव को कम करने के कई प्रयास किए गए हैं, लेकिन बहुत कम सफलता मिली है। नतीजे के तौर पर, केवल तभी वास्तविक अंतर दिखता है जब उद्योगों को बंदी या काम-बंदी का नोटिस दिया जाता है, जैसा कि हालिया कुंभ मेले के दौरान देखा गया। लेकिन यह एक स्थायी समाधान नहीं है; स्पष्ट रूप से, इन उद्योगों के द्वारा उत्पन्न प्रदूषण को कम करने के उपाय तलाशने के लिए त्वरित और प्रभावी रूप से और अधिक प्रयास किए जाने की जरूरत है।

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स्रोतः सीपीसीबी 2013, 

यूपी के लिए शर्म की बातः प्रदूषित करने वाले उद्योग

उत्तर प्रदेश में यह नदी 1,000 किमी. की दूरी में बहती है और यहाँ विकसित होते हुए बड़े शहर अवस्थित हैं। यहाँ 687 प्रदूषण पैदा करने वाले उद्योग भी हैं जो गंगा को प्रदूषित करते हैं। ये चर्मशोधक, चीनी, लुगदी तथा रसायन उद्योग 270 एमएलडी अपशिष्ट जल का योगदान करते हैं। यद्यपि चर्मशोधकों की संख्या ज्यादा है 442- ये अपशिष्ट जल में केवल 8 प्रतिशत का योगदान देते हैं, किंतु यह बेहद जहरीला होता है और कानपुर इलाके में संकेंद्रित है। चीनी, लुगदी, कागज और मद्य-उत्पादक संयंत्र अपशिष्ट जल उत्पादन में 70 प्रतिशत से अधिक का योगदान करते हैं। सीपीसीबी के निरीक्षण में प्रदर्शित किया गया है कि निरीक्षित 404 इकाइयों में केवल 23 पर किसी कार्रवाई की आवश्यकता नहीं है। शेष इकाइयां देश के कानून की शर्तों पर खरी नहीं उतरी। जून 2013 तक, प्रवर्तन कार्य कई चरणों में थे किंतु इन्हें यथार्थ के स्तर पर उतारा जाना अभी बाकी है। यह स्पष्टः है कि बड़े और कठोर स्तर पर प्रवर्तन ही मौजूदा उपाय है। (तालिका देखें)

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स्रोतः सीपीसीबी 2013

कुंभ मेला

गंगा को साफ करने के लिए क्या किया गया है और क्या प्रतिकृति देना संभव है?
इलाहाबाद के महाकुंभ का धार्मिक समागम के संदर्भ में संभवतयः दूसरा कोई समान उदाहरण नहीं है इसमें केवल 2 माह की अवधि में 10 करोड़ से ज्यादा लोग गंगा और यमुना के संगम पर स्थित इस शहर में आते हैं। 2013 के कुंभ में, प्रदूषण से मुकाबला करने के लिए केंद्र और राज्य सरकार के प्रयासों का प्रभाव दिखाई पड़ा। इन कदमों से हमें यह संदेश मिला कि गंगा और देश की अन्य सभी नदियों में प्रदूषण कम करना संभव है। जो कदम उठाए गए, वे इस प्रकार थेः

  •  नदी में अधिकाधिक जल के प्रवाह की अनुमति दी गई। यूपी सरकार ने अपने सिंचाई विभाग को, 1 जनवरी से 28 फरवरी तक इलाहाबाद के स्नान-त्थलों पर पर्याप्त गहराई और संभावित प्रदूषण भार के तनुकरण के लिए 2,500 क्यूबिक फीट प्रति सेकंड (क्यूसेक) (71 क्यूबिक मीटर प्रति सेकंड / क्यूमैक) पानी छोड़ने का आदेश दिया। इसके अलावा, प्रत्येक शाष्ठी स्नान दिवस से दो दिन पूर्व क्या एक दिन बाद तक, राज्य के सिंचाई विभाग ने न्यूनतम अपेक्षित प्रवाह से ज्यादा 11.3 क्यूमैक पानी छोड़ा।
  •  इलाहाबाद में अपशिष्ट जल को खुली नालियों के जरिए ट्रीटमेंट प्लांट तक वहन किया गया जो प्रचलन के विरूद्ध था। चूंकि शहर में भूमिगत सीवेज नहीं हैं इसलिए निर्मित प्लांटों ने कभी भी पूरी क्षमता से काम नहीं किया था। यह स्थिति कुंभ मेले के दौरान बदल गई, और बिना भूमिगत सीवेज के ही अपशिष्ट का प्रवाह और ट्रीटमेंट किया गया।
  • शहर में अपशिष्ट के ट्रीटमेंट के लिए नवीन तरीकों का प्रयोग किया गया जैव-शोधन तकनीक के उपयोग द्वारा। प्राथमिक रिपोटों में सुझाया गया कि यह प्रणाली काम कर रही है लेकिन सावधानीपूर्ण अन्वीक्षण तथा लगातार निगरानी की आवश्यकता है। इस प्रॉजेक्ट अवधि में उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण परिषद (यूपीपीसीबी) ने 30 नालियों से 19 नमूने एकत्र किए, जहां जैव-शोषन का प्रयोग चल रहा था। उनके आंकड़ों के अनुसार, इस तकनीक के इस्तेमाल से बीओडी  में 40 प्रतिशत तक की कमी आई। इस तकनीक के प्रयोग के आकलन की एक रिपोर्ट अमी के आकलन में मदद होगी। आनी है, जिससे इसकी प्रभाविता की जांच और भविष्य के लिए विकल्पों  के आकलन में मदद होगी।  
  •  सरकार ने नदी में अपशिष्ट प्रवाहित करने वाले प्रदूषणकारी उद्योगों मुख्य रूप से चर्म-परिशोधन इकाइयों तथा मधनर्माताओं के खिलाफ कठोर कदम उठाए। 2012 में, केंद्र तथा राज्य सरकार ने पहले से ही नदी के ऊपरी प्रवाह क्षेत्र के कानपुर शहर की कुछ चर्म-परिशोधन इकाइयों को अपशिष्ट प्रवाह मानकों को पूर्ण करने में विफल रहने पर बंद करने का निर्देश जारी कर दिया था। कुंभ के दौरान शहर की सभी चर्म-शोधन इकाइयों को पूर्णतः बंद रखने के आदेश दिए गए।

 लेखिकाः सुनीता नारायण

स्रोत :- सेंटर फॉर साइंस एन्ड एन्वायरन्मेंट
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वेबसाइट: www.cseindia.org

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Post By: Shivendra
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