अधवारा समूह योजना की पृष्ठभूमि
वर्षा में विलम्ब या अनावृष्टि के समय ऊपरी क्षेत्रों के लोग इन नदियों पर कच्चे बाँध बना कर पानी का सिंचाई के लिए उपयोग कर लेते हैं और निचले क्षेत्रों को पानी नहीं मिलता।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से अधवारा क्षेत्र को बाढ़ मुक्त रखने के लिए आवाज़ें उठना शुरू हुईं क्योंकि यहाँ की समस्याएँ भी उत्तर बिहार के अन्य क्षेत्रों से भिन्न नहीं थीं। नेपाल से हो कर भारत में प्रवेश करने वाली अधवारा समूह की नदियों के तल का ढाल नेपाल में अधिक है जिससे वहाँ बाढ़ की समस्या इतनी ज्यादा नहीं होती परंतु भारतीय क्षेत्र में तल का ढाल तथा नदियों की प्रवाह क्षमता कम होने के कारण इस घाटी में भी अक्सर बाढ़ें आती हैं। इस नदी समूह की कुछ धाराएँ तो केवल बरसात में ही सक्रिय होती हैं और अन्य मौसम में इनको खोज पाना अनजान आदमी के लिए सम्भव नहीं होता।वर्षा में विलम्ब या अनावृष्टि के समय ऊपरी क्षेत्रों के लोग इन नदियों पर कच्चे बाँध बना कर पानी का सिंचाई के लिए उपयोग कर लेते हैं और निचले क्षेत्रों को पानी नहीं मिलता। अतः जहाँ थोड़ी सी वर्षा में बाढ़ आने की संभावना रहती है वहीं वर्षा में हल्का सा विलम्ब सूखे की स्थिति पैदा कर देता है और यह अतीव उर्वर क्षेत्र बाढ़ और सूखे की मार साथ-साथ झेलता है। हथिया नक्षत्र में वर्षा तो हमेशा ही संदेहप्रद रही है। उत्तरी क्षेत्रों व नेपाल के इलाके में जमीन का ढलान अपेक्षाकृत अधिक होने के कारण बाढ़ का पानी अधिक समय नहीं टिकता और आसानी से निकल जाया करता है वहीं निचले क्षेत्रों में पानी लम्बे समय तक टिका रहता है। इस अतिरिक्त पानी के त्वरित निकास की माँग 1950 के दशक में उठनी शुरू हो गयी थी।
उन्नीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में निलहे गोरों ने इस इलाके की बाढ़ों से अपने खेतों को बचाने का प्रयास किया था। तब बहुत सी धाराओं पर तटबंध बने थे। 1838 की बाढ़ के बाद लगभग 50 मील लम्बे तटबंध इस क्षेत्र में बनाये गए थे। दरभंगा राज और नानपुर के चौधरियों ने भी इस काम में काफी मदद की थी। बाद में इस इलाके की नील की खेती भी दरभंगा राज ने खरीद ली। 1875 की भयंकर बाढ़ में पानी दरभंगा के रामबाग महल तक बढ़ आया था। फलतः काफी दिनों तक इन तटबंधों की मरम्मत दरभंगा राज की तरफ से होती रही। दरभंगा राज के प्रबंधकों और निलहे गोरों के नाम पर बहुत से तटबंध और सिंचाई की नहरें इस इलाके में बनीं जिसमें परिहार और बाजपट्टी (सीतामढ़ी) के बीच में मेयर तटबंध तथा बेनीपट्टी (मधुबनी) स्थित किंग्स बाँध और किंग्स नहरें मुख्य हैं। आर. एस. किंग दरभंगा राज में मैनेजर थे और लोग इन्हें ‘इन्द्र साहब’ कह कर पुकारा करते थे। शिवनगर के निलहे गोरों, एन्डरसन के नाम पर एन्डरसन बांध और क्रॉफ्ट के नाम पर केरापट्टी बांध भी इस इलाके में बने। 1925 तक काफी कुछ ठीक ठाक चला परंतु 1925 की बाढ़ में बहुत जगहों पर तटबंध टूटे और उसके बाद तटबंधों के अंदर और बाहर बसे लोगों में बलवा होना शुरू हुआ। अंदर बसे लोग जहाँ तटबंध काट देना चाहते थे वहीं बाहर वाले इस हरकत को रोकने के लिए ताकत का इस्तेमाल करते थे। कहा जाता है कि बिसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में बहुत से फौजदारी मामले तटबंधों के कारण दर्ज किये गए। 1915 में सीतामढ़ी के पुपरी थाने के फुलवरिया गाँव में हुए एक फसाद में एक आदमी की नाक काट ली गयी थी। यह झगड़ा तटबंधों के कारण हुआ था। 1937 में बिहार के तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. श्रीकृष्ण सिंह ने यहाँ की बाढ़ समस्या का अध्ययन करने के लिए इस क्षेत्र का स्वयं दौरा किया था।
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