अधिक परियोजनाओं से होगा पर्यावरण का विनाश

हिमाचल प्रदेश में अनगिनत विद्युत परियोजनाओं, सीमेंट उद्योगों को स्वीकृति देना प्रदेश के पर्यावरण में असंतुलन पैदा करना है। एक छोटे से प्रदेश में कई सीमेंट उद्योगों को स्वीकृति प्रदान करना कहां तक सही है…

मंडी जिला के अलसिंडी में लाफार्ज इंडिया कंपनी को सीमेंट प्लांट स्थापित करने बारे केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा प्रदान की गई पर्यावरण स्वीकृति को राष्ट्रीय पर्यावरण अपील प्राधिकरण दिल्ली द्वारा निरस्त करना प्रदेश के पर्यावरण को बचाने के लिए एक ऐतिहासिक निर्णय हुआ है। सीमेंट प्लांट की समीप मजाठल वाइल्ड लाइफ क्षेत्र, उपजाऊ भूमि, अधिक जनसंख्या घनत्व वाला क्षेत्र आता है। पूर्व में गलत आंकड़ों के आधार पर स्वीकृति प्रदान की गई थी। स्थानीय लोगों द्वारा राष्ट्रीय पर्यावरण प्राधिकरण (अपील) दिल्ली के समक्ष स्वीकृति को चुनौती के दृष्टिगत प्राधिकरण के सदस्य जेसी काला द्वारा उन तमाम गांवों का दौरान किया गया, जो प्लांट द्वारा प्रभावित होने वाले हैं। लोगों से बातचीत एवं प्रत्यक्ष देखने के उपरांत ही उन्होंने अपना निर्णय दिया। एक विशेष बात इसमें यह भी है कि प्लांट लगने से संबंधित सारा क्षेत्र यहां के प्रसिद्ध ‘देव बड़ेयोगी’ के अधीन आता है, जिस क्षेत्र से इस प्लांट हेतु चूना पत्थर निकाले जाएंगे तथा जहां प्लांट स्थापित किया जाना है, वह क्षेत्र इसी देवता के अधीन आता है और किसी भी कार्य को करने से पहले देव आज्ञा लेना आवश्यक समझा जाता है, परंतु प्लांट के बारे में न ही तो सरकार और न ही फैक्टरी प्रबंधकों द्वारा ‘देव बड़ेयोगी’ से देवआज्ञा ली गई। देव बड़ेयोगी की तीनों देवठियों तलैहण, साहज और मड़ीवनी, जिसमें 10 पंचायतों के लोगों द्वारा पूजा-अर्चना की जाती है और देवआज्ञा को स्वीकार किया जाता है, इन पंचायत के लोगों द्वारा इस निर्णय का स्वागत किया गया है और इसे देवता का ही चमत्कार मानते हैं। हिमाचल प्रदेश में अनगिनत विद्युत परियोजनाओं, सीमेंट उद्योगों को स्वीकृति देना प्रदेश के पर्यावरण में असंतुलन पैदा करना है। एक छोटे से प्रदेश में कई सीमेंट उद्योगों को स्वीकृति प्रदान करना कहां तक सही है? इन उद्योगों से पर्यावरण को कितना नुकसान हो रहा है, इस पर ध्यान न देकर ‘राजस्व’ पर ध्यान केंद्रित कर मनुष्य के स्वास्थ्य पर आघात किए जा रहे हैं। एक एनजीओ द्वारा एकत्र आंकड़ों के अनुसार किन्नौर जिला में हो रहे अत्यधिक कटाव व बन रही सुरंगों के कारण सतलुज नदी विलुप्त हो सकती है। क्या इसके प्रति प्रदेश सरकार सचेत है? विद्युत परियोजनाओं, सीमेंट उद्योगों को स्वीकृति देकर प्रदेश के ‘कोष’ में वृद्धि तो संभव है, परंतु प्रकृति में इससे हो रहे असंतुलन के लिए आने वाली पीढि़या इसके लिए हमें कभी माफ नहीं करेंगी। पर्यावरण ईश्वर द्वरा प्रदत्त एक अमूल्य उपहार है, जो संपूर्ण मानव समाज का एकमात्र महत्त्वपूर्ण और अभिन्न अंग है। प्रकृति द्वारा प्रदत्त अमूल्य वैज्ञानिक तत्त्वों पृथ्वी, जल, आकाश, वायु और अग्नि से मिलकर पर्यावरण का निर्माण हुआ है। यदि मानव समाज प्रकृति के नियमों का भली प्रकार अनुसरण करें, तो उसे कभी भी अपनी मूलभूत आवश्यकताओं की कमी नहीं रहेगी। मनुष्य अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वायु, जल, मिट्टी, पेड़-पौधों, जीव-जंतुओं आदि पर निर्भर है और उनका दोहन करता आ रहा है। वर्तमान समय में मनुष्य स्वार्थपूर्ति के लिए प्रकृति का अत्यधिक दोहन करने लगा है, प्रकृति पर अत्याचार हो रहे हैं, परिणामस्वरूप पर्यावरण में प्रदूषण, अशुद्ध वायु, जल की कमी, बीमारियों की भरमार प्रतिदिन एक गंभीर चर्चा का विषय बनी हुई है। वर्तमान युग औद्योगिकीकरण और मशीनीकरण का युग है, जहां हर काम को सुगम और सरल बनाने के लिए मशीनों का उपयोग हो रहा है, वहीं पर्यावरण का भी उल्लंघन हो रहा है। न ही पर्यावरण संरक्षण पर ध्यान दिया जा रहा है और न ही प्रकृति द्वारा प्रदत्त अमूल्य तत्त्वों का सही मायने में उपयोग किया जा रहा है। परिणामस्वरूप प्रदूषण, बाढ़, सूखा आदि कई आपदाओं का सामना करना पड़ रहा है। पर्यावरण को प्रदूषित करने में प्रकृति के संतुलन को नष्ट करना सबसे बड़ा कारण रहा है।

वनों के कटान, पृथ्वी का खनन, पशु-पक्षियों का वध, जल का दुरुपयोग और उसमें प्रदूषित पदार्थों के मिश्रण ने पर्यावरण को दूषित किया है। ‘पर्यावरण’ और ‘ईश्वर’ प्रकृति के वे दो पहलू हैं, जिसकी पूजा और महत्ता के बिना जीवन अधूरा है। आज आधुनिकता की दौड़ में पर्यावरण और ईश्वर दोनों को भुलाया जा रहा है। पर्यावरण की महत्ता को समझाने से ही प्रकृति को सुरक्षित रखा जा सकता है।

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